गंगा में उड़ेली जा रही गंदगी पर एनजीटी सख्त

नदियों में गंदगी का निरंतर प्रवाह
नदियों में गंदगी का निरंतर प्रवाह

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) भारत में एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है जिसे विशेष रूप से पर्यावरणीय मुद्दों और विवादों को संबोधित करने के लिए स्थापित किया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तराखंड समेत कई राज्यों में गंगा नदी के प्रदूषण को लेकर चिंता जताई है। विशेष रूप से, एनजीटी ने गंगा में अनुपचारित सीवेज के निर्वहन को रोकने में निष्क्रियता के लिए उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) की आलोचना की है। 

हाल के एक आदेश में, एनजीटी ने कहा कि पूरे उत्तराखंड में अनुपचारित सीवेज को नदियों में छोड़ा जा रहा है, लेकिन यूकेपीसीबी द्वारा कोई प्रभावी निवारक या उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई है यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है और कड़ी आलोचना की पात्र है। उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में अनुमानित सीवेज का उत्पादन लगभग 700 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) है, जिसमें से केवल 50% का ही उचित उपचार किया जाता है। खासकर पर्यटन और तीर्थयात्रा के मौसम के दौरान उचित सीवेज उपचार बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी की कमी समस्या को बढ़ा देती है, एनजीटी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि गंगा के कायाकल्प के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने पहाड़ी इलाकों में सीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान नहीं किया है। नदी के प्रदूषण के बारे में दशकों की चिंता के बावजूद, पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन के लिए प्रभावी कार्रवाई का अभाव रहा है। एनजीटी ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों और विभाग प्रमुखों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करके दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। गंगा और उसकी सहायक नदियों में उड़ेली जा रही गंदगी और आगे प्रदूषण को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना महत्वपूर्ण है। 
 
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायिक सदस्य डा ए सेंथिल की पीठ ने कहा कि उत्तराखंड के 13 जिलों में करीब 700 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) सीवेज का उत्पादन  हो रहा है और इसका 50 प्रतिशत भाग भी उचित तरीके से उपचारित नहीं किया जा रहा। बेशक पहाड़ी जिलों में कम मात्रा में सीवर का जनरेशन हो रहा हो, लेकिन उपचार के अभाव में इसे नदियों में उड़ेलने की प्रवृत्ति गंभीर है। गंगा और उसकी सहायक नदियों में गंदगी उड़ेलने पर अंकुश लगा पाने में एनजीटी ने राज्य की मशीनरी को असफल करार दिया है । एनजीटी ने कड़े शब्दों में कहा कि उनके पास प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को स्थानीय निकायों व संबंधित विभागों के जिम्मेदार अधिकारियों पर आपराधिक कार्रवाई के निर्देश जारी करने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता। एनजीटी ने कहा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जल अधिनियम की सुसंगत धाराओं में पिछले उल्लंघन के लिए पर्यावरणीय क्षति का मुआवजा (ईसी) वसूल करेगा। साथ ही भविष्य के उल्लंघन के लिए मुआवजे की गणना करेगा। बोर्ड को इस कार्रवाई की रिपोर्ट दो माह के भीतर उपलब्ध कराने को कहा गया है। साथ ही नेशनल मिशन  'ए फॉर क्लीन गंगा' (एनएमसीजी) को भी नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

एनजीटी की पीठ ने एमसी मेहता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जल अधिनियम के तहत निर्धारित मानकों का पालन करने के लिए दशकों से आदेश पारित किए जा रहे हैं। संबंधित अधिकारियों को पर्याप्त अवसर दिए जा चुके हैं, लेकिन नदी के पानी के सीवेज का प्रवाह निरंतर जारी है।

 इस संबंध में एनजीटी के 24 नवंबर 2023 के आदेश के क्रम में सभी जिलों से बहता सीवर जनरेशन और उसके उपचार हुए के साथ ही सालिड वेस्ट मैनेजमेंट, बहता  बायोमेडिकल वेस्ट व अन्य तरह के के कचरे/गंदगी और उसके निस्तारण पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई थी। इस सुनवाई में एनजीटी की पीठ ने सभी जिलों की रिपोर्ट का परीक्षण किया। साथ ही याचिकाकर्ता और राज्य का पक्ष भी जाना। जिसके क्रम में एनजीटी ने कहा कि सीवर लाइन  बिछाना और घरों तक कनेक्टिविटी अभी भी अनसुलझा मुद्दा है। पर्यटन सीजन के दौरान पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की आमद से सीवेज के जनरेशन में वृद्धि होती है। सीवरेज के पर्याप्त नेटवर्क के अभाव में होटल और धर्मशाला मुख्य रूप से सेप्टिक टैंक और सोक पिट पर ही निर्भर हैं। जिलों की रिपोर्ट बताती है कि संबंधित स्थानीय निकायों में अभी भी सीवर सीधे या सहायक नदियों के माध्यम से गंगा में छोड़ा जा रहा है। इससे गंगा नदी में प्रदूषण बढ़ रहा है। क्योंकि सीवर को काफी हद तक अनुपचारित या आंशिक रूप से ही उपचारित किया जाता है। नदी में अनुपचारित सीवर का निरंतर प्रवाह न सिर्फ जल अधिनियम 1974 के प्रविधानों का उल्लंघन है, बल्कि यह अपराध भी है।

जिलों में सीवर जनरेशन और निस्तारण की स्थिति (एमएलडी में)

s.n जिला जनरेशन   निस्तारण  क्षमता    निस्तारण     कमी
1 बागेश्वर 4.0 0 0 4.0
2 रुद्रप्रयाग 3.45 0.525 0.239 3.2
3 देहरादून 143 148 90 53
4 पौड़ी 37.49 7.39 6.46 30.54

5

पिथौरागढ़ 9.0 6.25 1.70 7.30

6

चमोली 5.98 9.42 4.9 5.4

7.

चंपावत 5.72 0 0 5.72
8.

 

टिहरी 11.16 15 9.7 1.41
9.

 

हरिद्वार 236 152 152 84.74

10.

ऊधमसिंहनगर 117 0 0 117
11. उत्तरकाशी  5.31 2.5 2.5 2.81
12.

 

अल्मोड़ा  2.0 1.0 0.2 1.8
13 नैनीताल 70.42 49.45 25.93 54.49

 

एसटीपी परियोजनाओं में ढुलमुल रवैया-

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि सीवेज के निस्तारण की दिशा में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की परियोजनाएं या तो डीपीआर से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं या डीपीआर तैयार की जा रही है। कुछ मामलों में निर्माण कार्य प्रगति पर भी हैं। इस दिशा में उचित परिश्रम, शीघ्रता और तत्परता का अभाव दिख रहा है।

एसटीपी परियोजनाओं में ढुलमुल रवैया, एनएमसीजी पर भी सवाल

एनजीटी में गंगा और उसकी सहायक नदियों में गंदगी के निरंतर प्रवाह के पीछे एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) परियोजनाओं में देरी को भी एक कारण माना है । इसके लिए भी अधिकारियों की सक्रियता पर सवाल उठाए गए हैं। एननजीटी ने अपने आदेश में कहा कि सीवेज के निस्तारण की दिशा में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की परियोजनाएं या तो डीपीआर से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं या डीपीआर तैयार करने तक ही सिमित है। कुछ मामलों में निर्माण कार्य प्रगति पर भी हैं। इस दिशा में उचित परिश्रम, शीघ्रता और तत्परता का अभाव दिख रहा है।

एनजीटी ने यह भी पाया कि जिस नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) पर विशेष रूप से गंगा के पुनरुद्धार की जिम्मेदारी है, उसने पहाड़ी क्षेत्रों में सीवेज और सालिड वेस्ट मैनेजमेंट की जटिलताओं के पहलू, पर ध्यान नहीं दिया। यह भी कारण है कि एसटीपी की तमाम परियोजनाएं विभिन्न जटिलताओं से जूझ रही हैं।

एनजीटी ने नदी के पानी की गुणवत्ता बताने वाली रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए हैं। पीठ ने कहा कि कुछ रिपोर्ट में कहा गया है  कि नदी के पानी की गुणवत्ता मानदंडों के अनुरूप है। ऐसी रिपोर्ट आउटलेट पर सीवर की स्थिति का परीक्षण किए बिना प्रस्तुत की गई है। कुछ जगह बताया गया है कि पानी के साथ सीवर का पतला पानी विद्यमान है। जो सही तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं है।एनजीटी के मुताबिक "हम यह देखकर आश्चर्यचकित है कि नदियों में सीवर छोड़ने की प्रवृत्ति के बाद भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोई निवारक, दंडात्मक और उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की। पीसीबी अपनी वैधानिक जिम्मेदारी भूलकर मूकदर्शक बना है।"

स्रोत-दैनिक जागरण 

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