देश भर के जलाशयों के भंडार खाली, खतरे में खेती

जलाशयों के जलभंडारों में उल्लेखनीय कमी
जलाशयों के जलभंडारों में उल्लेखनीय कमी

भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण की क्षमता में 36% की कमी आई है। इनमें से छह जलाशयों में जल भंडारण का कोई आंकड़ा नहीं मिला है, जबकि 86 जलाशयों में भंडारण क्षमता 40% या उससे कम है। सेंट्रल वाटर कमीशन (CWC) के अनुसार, इन जलाशयों में से अधिकांश दक्षिण भारत, महाराष्ट्र, और गुजरात में स्थित हैं। केंद्रीय जल आयोग के नवीनतम आंकड़े भारत में बढ़ते इसी जल संकट की गंभीरता को ही दर्शाते हैं। ये आंकड़े देश भर के जलाशयों के स्तर में आई चिंताजनक गिरावट की तस्वीर उकेरते हैं। रिपोर्ट के अनुसार 25 अप्रैल 2024 तक देश में प्रमुख जलाशयों में उपलब्ध पानी में उनकी भंडारण क्षमता के अनुपात में तीस से पैंतीस प्रतिशत की गिरावट आई है। यह हाल के वर्षों की तुलना में बड़ी गिरावट है, जो सूखे जैसी स्थिति की ओर इशारा करती है। इसके मूल में अल नीनो घटनाक्रम का प्रभाव एवं वर्षा की कमी को बताया जा रहा है। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। मानव एवं जीव-जंतुओं के अलावा जल कृषि के सभी रूपों और अधिकांश औद्योगिक उत्पादन प्रक्रियाओं के लिये भी बेहद आवश्यक है। परंतु आज भारत गंभीर जल-संकट के साए में खड़ा है। अनियोजित औद्योगिकीकरण, बढ़ता प्रदूषण, घटते रेगिस्तान एवं ग्लेशियर, नदियों के जलस्तर में गिरावट, वर्षा की कमी, पर्यावरण विनाश, प्रकृति के शोषण और इनके दुरुपयोग के प्रति असंवेदनशीलता भारत को एक बड़े जल संकट की ओर ले जा रही है।

देश भर के जलाशय खतरनाक स्तर तक खाली 

भारत भर में 150 प्रमुख जलाशयों में जलस्तर वर्तमान में 31 प्रतिशत है। दक्षिण भारत में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है, जिसके 42 जलाशय वर्तमान में केवल 17 प्रतिशत क्षमता पर हैं। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में देखी गई सबसे कम जल क्षमता का प्रतीक है। स्थिति अन्य क्षेत्रों में भी चिंताजनक है, पश्चिम में 34 प्रतिशत और उत्तर में 32.5 प्रतिशत जलाशय क्षमता है। हालाँकि, पूर्वी और मध्य भारत की स्थिति बेहतर हैं, उनके पास अपने जलाशयों की सक्रिय क्षमता का क्रमशः 40.6 प्रतिशत और 40 प्रतिशत है, पिछले वर्ष वर्षा कम थी, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, 2023 का मानसून असमान था क्योंकि यह अल नीनो वर्ष भी था एक जलवायु पैटर्न जो आम तौर पर इस क्षेत्र में गर्म और शुष्क परिस्थितियों का कारण बनता है। इससे काफी चिंता पैदा हुई है. वर्तमान में, सिंचाई भी प्रभावित हो रही है, और देश भर में पीने के पानी की उपलब्धता और जलविद्युत उत्पादन पर प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ रही हैं। भविष्य को देखते हुए, आने वाले महीनों में और अधिक गर्मी पड़ने की आशंका है, जो दर्शाता है कि आने वाले दिनों में बड़ा जल संकट उभरने वाला है।

प्री मानसून कम होना 

लंबे समय तक पर्याप्त बारिश न होने के कारण जल भंडारण में यह कमी आई है। जिसके चलते कई क्षेत्रों में सूखे जैसे और असुरक्षित हालात पैदा हो गये हैं। जिससे विभिन्न फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि देश की आधी कृषि योग्य भूमि आज भी मानसूनी बारिश के निर्भर है। ऐसे में सामान्य मानसून की स्थिति पर कृषि का भविष्य पूरी तरह निर्भर करता है। वास्तव में लगातार बढ़ती गर्मी के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। इसके गंभीर परिणामों के चलते आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पानी की कमी ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। देश का आईटी हब बेंगलुरु गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। जिसका असर न केवल कृषि गतिविधियों पर पड़ रहा है बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। ऐसे में किसी आसन्न संकट से निपटने के लिये जल संरक्षण के प्रयास घरों से लेकर तमाम कृषि पद्धतियों और औद्योगिक कार्यों तक में तेज करने की जरूरत है। जल भंडारण और वितरण दक्षता में सुधार के लिये पानी के बुनियादी ढांचे और प्रबंधन प्रणालियों में बड़े निवेश की तात्कालिक जरूरत भी है। 

पानी का संरक्षण पर जोर देने की जरूरत

पानी के संरक्षण और समुचित उपलब्धता को सुनिश्चित कर हम पर्यावरण को भी बेहतर कर सकते हैं तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या का भी समाधान निकाल सकते हैं। आप सोच सकते हैं कि एक मनुष्य अपने जीवनकाल में कितने पानी का उपयोग करता है, किंतु क्या वह इतने पानी को बचाने का प्रयास करता है? जलवायु परिवर्तन के कारण 2000 से बाढ़ की घटनाओं में 134 प्रतिशत वृद्धि हुई है और सूखे की अवधि में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पानी धरती पर जीवन के अस्तित्व के लिए आधारभूत आवश्यकता है। आबादी में वृद्धि के साथ पानी की खपत बेतहाशा बढ़ी है, लेकिन पृथ्वी पर साफ पानी की मात्रा कम हो रही है। जलवायु परिवर्तन और धरती के बढ़ते तापमान ने इस समस्या को गंभीर संकट बना दिया है। दुनिया के कई हिस्सों की तरह भारत भी जल संकट का सामना कर रहा है। वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत हिस्सा भारत में निवास करता है, लेकिन चार प्रतिशत जल संसाधन ही हमें उपलब्ध है। भारत में जल संकट की समस्या से निपटने के लिये प्राचीन समय से जो प्रयत्न किये गये है, उन्हीं प्रयत्नों को व्यापक स्तर पर अपनाने एवं जल-संरक्षण क्रांति को घटित करने की अपेक्षा है।

2,86,000 गांवों में आसन्न जलसंकट

इसके अलावा, 2,86,000 गांव गंगा बेसिन पर स्थित हैं, जहां पानी की उपलब्धता धीरे-धीरे घट रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह चिंता की बात है, क्योंकि यहां कृषि भूमि कुल बेसिन क्षेत्र का 65.57% है। देश के सात राज्यों के 8220 ग्राम पंचायतों में भूजल प्रबंधनों के लिए अटल भूजल योजना चल रही है। स्थानीय समुदायों के नेतृत्व में चलने वाला यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। नल से जल, नदियों की सफाई, अतिक्रमण हटाने जैसे प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चलाए जा रहे हैं। हमारे यहां जल बचाने के मुख्य साधन हैं नदी, ताल एवं कूप। इन्हें अपनाओं, इनकी रक्षा करो, इन्हें अभय दो, इन्हें मरुस्थल के हवाले न करो। ग्रामीण स्तर पर लोगों के द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करने की शुरुआत करनी चाहिये। उचित रख-रखाव के साथ छोटे या बड़े तालाबों को बनाकर या उनका जीर्णोद्धार करके बरसात के पानी को बचाया जा सकता है। धरती के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है।

स्रोत - मिशन मेरा देश, वर्ष 1, अंक 2, मई 2024

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Post By: Kesar Singh
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