भुआ-बिछिया में, जल-प्रदाय करते थे अहीर

मंडला-रायपुर मार्ग पर भुआ नाले के दोनों और बसा 15 हजार की आबादी वाला कस्बा भुआ-बिछिया पिछले 30-40 सालों में ही बढ़ा है। देश के भिन्न-भिन्न इलाकों से आए व्यापारियों, कर्मचारियों ने ही यहाँ के अधिकांश पक्के मकान बनवाए हैं। लेकिन पानी के मामले में यह कस्बा आजकल संकटग्रस्त ही माना जाता है।

पहले इस इलाके में भी पेयजल कि लिए कुओं, बावड़ियों और झिरियों का उपयोग होता था। कस्बे के दो-तीन किलोमीटर के घेरे में अब भी कहीं-कहीं झिरियाँ दिख जाती हैं। पास के एक बड़े कस्बे सिझौरा से लगे बड़ाभेला गाँव में 70-80 साल पुरानी बारामासी पटिया-झिरिया बकायदा पानी दे रही है। इसे जामुन के पटिए से पाटा गया है। यहाँ पत्थर झिरिया और कुआँ झिरिया भी होती हैं। पत्थर झिरिया को पत्थरों से पाटा जाता है। और कुआँ झिरिया सामान्य से थोड़ी अधिक गहरी होती है। नदी-नालों के किनारे बनाई जाने वाली झिरियाँ इस इलाके में पानी के आपरूप फूटने वाले स्थानों पर भी बनाई जाती हैं। सिंचाई में भी इन झिरियों का सहयोग है लेकिन पानी सीमित होने का कारण इनसे कोदों, कुटकी, जगनी (सरसों की तरह की तिलहन), मक्का, उड़द, ज्वार या बाजरा सरीखी फसलें ही ली जाती हैं। झिरियों के आसपास आम, जामुन, कटहल और अमरूद आदि के पेड़ भी लग जाते हैं।

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Post By: tridmin
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