बेंगलुरु का गला सूखा, दुबई में बाढ़ : सबक क्या है

जलसंकट का दौर
जलसंकट का दौर

लोकनायक तुलसीदास जी ने अपने महान ग्रंथ 'रामचरितमानस' में लिखा है 'क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व मिलि रचा शरीरा।' स्पष्ट है कि बिना जल के शरीर की रचना संभव नहीं है। जब रचना ही संभव नहीं है तो जीवन का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसीलिए जल को जीवन कहा जाता है। जल मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिये एक जीवनदायी तत्व है। इस संसार की कल्पना जल के बिना नहीं की जा सकती है। लेकिन वर्तमान में जिस प्रकार झीलों का शहर बेंगलूरू जल बिना तड़प रहा है, तो दूसरी ओर रेगिस्तान में स्थित दुबई और ओमान जल की अधिकता से डूबते दिखे, उससे स्पष्ट है कि प्रकृति में जल तत्व का संतुलन बिगड़ रहा है।

जल से जुड़ा संकट सिर्फ किसी देश या प्रदेश तक सीमित नहीं है। एक उदाहरण हरियाणा का है। हरियाणा में लगातार घट रहे भूजल से 14 जिलों में स्थिति गंभीर है। यही नहीं, 1648 गांव रेड जोन में पहुंच चुके हैं। इसके साथ ही 141 खंडों में से 85 ब्लॉक डार्क जोन की श्रेणी में आ चुके हैं। प्रदेश के 14 जिलों में भूजल स्तर 30 मीटर से भी नीचे खिसक चुका है। हर साल 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी से जूझ रहे हरियाणा प्रदेश में 34.66 लाख करोड़ लीटर पानी चाहिए, जबकि उपलब्ध सिर्फ 20.63 लाख करोड़ लीटर पानी है। आगामी दो वर्षों में 6.63 लाख करोड़ लीटर पानी की डिमांड बढ़ने का अनुमान है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार, हरियाणा के लगभग 40 हजार वर्ग किमी में से लगभग 24 हजार वर्ग किमी यानी 61 प्रतिशत क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। 7287 गांवों में से रेगिस्तान में स्थित दुबई और ओमान जल की अधिकता से डूबते दिखे, उससे स्पष्ट है कि प्रकृति में जल तत्व का संतुलन बिगड़ रहा है।

जल से जुड़ा संकट सिर्फ किसी देश या प्रदेश तक सीमित नहीं है। एक उदाहरण हरियाणा का है। हरियाणा में लगातार घट रहे भूजल से 14 जिलों में स्थिति गंभीर है। यही नहीं, 1648 गांव रेड जोन में पहुंच चुके हैं। इसके साथ ही 141 खंडों में से 85 ब्लॉक डार्क जोन की श्रेणी में आ चुके हैं। प्रदेश के 14 जिलों में भूजल स्तर 30 मीटर से भी नीचे खिसक चुका है। हर साल 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी से जूझ रहे हरियाणा प्रदेश में 34.66 लाख करोड़ लीटर पानी चाहिए, जबकि उपलब्ध सिर्फ 20.63 लाख करोड़ लीटर पानी है। आगामी दो वर्षों में 6.63 लाख करोड़ लीटर पानी की डिमांड बढ़ने का अनुमान है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार, हरियाणा के लगभग 40 हजार वर्ग किमी में से लगभग 24 हजार वर्ग किमी यानी 61 प्रतिशत क्षेत्र में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। 7287 गांवों में से तीव्र गति से जलस्रोतों को अनुचित शैली में दोहन कर रहा है वह भविष्य के लिये खतरे का संकेत है। बोरिंग अथवा नलकूपों के माध्यम से अत्यधिक पानी निकालकर हम कुदरती भूगर्भ जल भंडार को लगातार खाली कर रहे हैं। शहरों में कंक्रीट का जाल बिछ जाने के कारण बारिश के पानी के रिसकर भूगर्भ में पहुँचने की संभावना कम होती जा रही है।

ऐसी स्थिति में राहत की बात यह है कि मॉनसून को लेकर जारी पूर्वानुमान इस बार जून से सितंबर तक सामान्य से कुछ अधिक बारिश होने की संभावना है। मानसून के चार महीनों के दौरान देश भर में 106 प्रतिशत बारिश होने की संभावना है। इस दौरान सामान्य तौर पर 87 सेंटीमीटर बारिश होती है। देशभर की 70 प्रतिशत बारिश मानसून के दौरान होती है। 70 से 80 प्रतिशत किसान फसलों के लिए बारिश पर निर्भर है। लेकिन इस खुशखबरी के साथ वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अब भारी बारिश वाले दिनों की संख्या कम हो रही है। बहुत तेज बारिश वाले दिनों की संख्या बढ़ रही है। इसकी वजह से महनसून में सूखा और बाढ़ भी बढ़ रही है। तेज बारिश की स्थिति में अमृत के रूप में आसमान से बरसने वाला अधिकांश जल व्यर्थ बह जाता है। इससे जलभराव और बाढ की स्थिति भले ही बन जाती है, लेकिन कम समय में भारी मात्रा में बरसा यह पानी भूजल स्तर बचाने में सहायक नहीं बनता। ऐसे में यदि हमें पानी को सहेजना है तो नदी, झील, तालाब और पोखर जैसे जल पात्रों की दशा सुधारनी होगी।

मानव जाति को वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को इस खतरे से बचाने के लिये जल संरक्षण के उपायों पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। हम वर्षा के जल को भूगर्भ जलस्रोतों में पहुँचाकर जल की भूमिगत रिचार्जिंग कर सकते हैं। वर्षाजल को एकत्रित करने की प्रणाली चार हजार वर्ष पुरानी है। इस तकनीक को आज वैज्ञानिक मापदण्डों के आधार पर फिर पुनर्जीवित किया जा सकता है। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की विधियाँ निम्नलिखित है- रिचार्ज पिट, रिचार्ज ट्रेंच, रिचार्ज ट्रेंच कम बोरवेल, तालब-पोखर, सूखा कुआँ, बावली, सतही जल संग्रहण, छोटे-छोटे चेक डेम आदि। तकनीक का चयन स्थानीय हाइड्रोजियोलॉजी पर निर्भर करता है। भूगर्भ जल रिचार्जिंग की कोई भी विधि अपनाने के लिये निर्माण कार्य महीने से सवा-महीने में पूरा हो जाता है। छोटे अथवा मध्यम वर्ग के घरों की छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को सिर्फ एक बार कुछ हजार रुपये खर्च करके भूगर्भीय जलस्रोतों में पहुंचाया जा सकता है। इस कार्य को करने के लिये यह जानकारी होना आवश्यक है कि किस इलाके में कौन सी विधि वैज्ञानिक पैमाने पर उपयुक्त रहेगी और छत का क्षेत्रफल कितना है। छोटे-बड़े सभी शहरों में वर्षाजल संचयन को जमीन पर उतारने के लिये योजनाबद्ध ढंग से धरातल पर काम करना होगा। वर्षा जल के भूजल में मिलने से जहां जलस्तर में कमी आएगी, भूजल की गुणवत्ता भी बेहतर होगी। भारत को जलसंकट से बचाने के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक अपने स्तर से सहयोग करे। जल संरक्षण की दिशा में किए गए हमारे छोटे-छोटे प्रयास जल के आसन्न संकट से बचाने का बड़ा माध्यम बन सकते हैं।।

स्रोत - लोकसम्मान, अप्रैल-मई 2024


 

Path Alias

/articles/bengaluru-ka-gala-sukha-dubai-mein-baadh-sabak-kya-hai

Post By: Kesar Singh
×