Magsaysay award winner & founder-editor of PARI, P Sainath analyses India's water scarcity, the agrarian crisis & farmer suicides, before asking: what can we do about it?
गाँव, रेगिस्तान और पानी। यही हमारी सांसे हैं और यही हमारी आस भी और यही कहीं हमारी पारम्परिक जल संरक्षण तकनीक की सम्पदा। रेगिस्तान में जहाँ सूरज की रजत किरणें रेत की चादर पर दरिया होने का छलावा करती हैं, वहीं लाखों मिन्नतों के बाद बादल सालभर में 10-20 सेंटीमीटर भी बरस जाएँ तो धरती के हलक में पानी की एक बूँद भी अमृत लगती है। राजस्थान के रेगिस्तान का सूखे और पलायन की त्रासदी ने कभी पीछा नहीं छोड़ा, मगर यहाँ के फौलादी हिम्मत वाले लोगों ने हार भी नहीं मानी। यहीं बुआई की, यहीं जोता और यहीं अपनी सोच और बसावट के ऐसे निशान छोड़े जिसका लोहा आज की दुनिया भी मानती है।