जहां कहीं भी मीठे जल के चिरस्थाई स्त्रोत हैं वहां मत्स्य पालन व्यवसाय काफी तेजी से फलफूल रहा है। ग्रामीण भी नित नयी तकनीके अपना कर इस व्यवसाय से आर्थिक रूप से स्वावलंबी एवं सम्पन्न हो रहे हैं। वहीं इनके जीवन स्तर में भी पर्याप्त बदलाव देखने को मिल रहा है। इसका दूसरा पहलू यह है कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत तो होती ही है, साथ ही ग्रामीण युवा बेरोजगारों को रोजगार के अवसर भी मिलते हैं। इसलिए इस व्यवसाय को जिंदा रखना बेहद जरुरी है, परंतु यह तभी संभव है, जब विभिन्न प्रजाति की मछलियों के स्वस्थ, शुद्ध व विसंक्रमित बीज समय पर उपलब्ध हों। दूसरी ओर इनके उत्पादन केंद्र सीमित होने से इन बीजों की हर समय जबरदस्त मांग रहती है। इनकी आपूर्ति कम होने की स्थिति में इन बीजों के दाम और भी अधिक बढ़ जाते है।
अधिकांश ग्रामीण व आदिवासी पिछड़े क्षेत्रों में मत्स्य बीजोत्पादन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। जिस कारण मत्स्य पालाकों को अन्य राज्यों में स्थित दूरस्थ बीजोत्पादन केन्द्रों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे स्थानों से मत्स्य बीजों की परिवहन लागत तो महंगी पड़ती ही है, साथ ही मत्स्य बीजों की मृत्यु होने का जोखिम भी रहता है। ऐसे में यदि बेरोजगार ग्रामीण युवा एवं कृषक मत्स्य बीजोत्पादन का प्रशिक्षण ले कर इस व्यवसाय को अपने क्षेत्र में ही शुरू करें तो यह आमदनी का बेहतरीन ज़रिया हो सकता है। इससे न केवल इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी बल्कि गाँव के कई बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार मिल सकेगा। इस स्वःरोजगार पर बैंक ऋण भी उपलब्ध कराता है। वहीं राज्य सरकारें इसके लिए प्रोत्साहन राशि भी मुहैया करती है।
मत्स्य बीज उत्पादन
मछलियाँ बारिश में नदी, तालाबों इत्यादि जलाशयों में प्रजनन करती हैं। इस दौरान इन जलाशयों में इनके लाखों की तादाद में अंडे निषेचित होते हैं, जिनसे मछलियों के बच्चे बाहर निकल आते हैं, जो समय के साथ अपनी शारीरिक वृद्धि करते रहते हैं। इन्हें मत्स्य बीज ( हैचलिंग्स, स्पान, फ्राई व फिंगरलिंग्स) कहा जाता है। ये इन जलाशयों में सिर्फ एक प्रजाति की मछलियों के नहीं बल्कि कई प्रजाति की मछलियों के होते हैं। इसलिए इनका संग्रहण करना खतरों से भरा होता है क्योंकि इनके साथ परभक्षी मछलियों के बीज होने की संभावना भी बराबर रहती है। ऐसे में पालने योग्य अथवा चाही गई मछलियों के शुद्ध बीज प्राप्त करने का एक मात्र तरिका जो विकसित हुआ है वो है प्रेरक प्रजनन, जो सरल भी है और हर जगह संभव भी हो सकता है। वर्तमान में मत्स्य पालक इस तरीके को ही ज्यादा अपनाते व पसंद करते हैं तथा इस पर भरोसा भी अधिक करते हैं।
प्रेरक प्रजनन ज्यादा सुविधाजनक
इसको छोटे-बड़े प्राकृतिक चिरस्थाई व बारिश से भरे तालाबों में या फिर आधुनिक तरीके से बनी हैचरियों में अपनी-अपनी सहुलियत के अनुसार किया जाता है। यद्यपि कुछ प्रजातियों की प्रजनन योग्य वयस्क मछलियाँ तेज बारिश के दौरान प्रजनन कर लेती हैं। लोग अब इन मछलियों (ब्रूडर्स) में निश्चित मात्रा में हार्मोन्स के इंजेक्शन देकर इन्हें प्रजनन हेतु जल्दी से प्रेरित कर देते हैं। ये हार्मोन रसायन बाजार में हर जगह उपलब्ध हो जाते हैं। स इससे इन मछलियों में अंडजनन व निषेचन प्रकिया जल्दी से हो जाती है स यह प्रकिया प्रजनन कुंड या तालाब में रखे मच्छरदानी के कपड़े से निर्मित आयाताकार बक्सा जिसे हापा कहते हैं उसमें भी कराई जा सकती है लेकिन इसमें वर्षा का इंतजार करना पड़ता है स परंतु लोग अब अलग से हैचरी का निर्माण कर उसमें कृतिम वर्षा यानी फव्वारों को चलाके इन मछलियों को प्रेरित करके इनमें प्रजनन कराने लगें हैं स इससे फायदा यह की इससे शत प्रतिशत स्वस्थ व शुद्ध पालने हेतु चाही गयी। मछली के बीज प्राप्त होतें है स निषेचित अण्डों से निकले नन्हें-नन्हें हेचलिंग्स को नेट द्वारा अन्य कुंडों में संगृहीत कर लेतें है जो बाद में स्पान (जलांडक), फ्राई (पोना) व फिंगरलिंग्स (अंगुलिकाएँ) के रूप में विकसित होतें है जिन्हें बीजों के रूप में मत्स्य पालन हेतु बेचा जा सकता है स एक एकड़ के मौसमी तालाब में मत्स्य बीज उत्पादन कर दो माह में करीब साठ हजार रुपया से अधिक शुद्ध धन राशि अर्जित की जा सकती है स शेष माह में उसी तालाब में मत्स्य अंगुलिकाओं या फिर मछली उत्पादन कर तकरीबन अस्सी हजार रुपयों से अधिक अलग से और आमदनी की जा सकती है स एक प्रकार से इस स्वःरोजगार को करने से दोहरा आर्थिक लाभ होता है स
मत्स्य बीज उत्पादन करना इतना सरल भी नहीं कि इसे हर कोई कर ले। इसमें जौखिम भी है जिससे आर्थिक नुकसान होने की संभावना भी रहती हैै। लेकिन यह आसान भी हो जाता है जब उत्पादनकर्ता इसके बारे में सम्पूर्ण तकनीकी जानकारी व प्रशिक्षण प्राप्त कर लेता है। इससे संबंधित तकनीकी जानकारियाँ, प्रशिक्षण व बीजों का प्रंबंधन कृषि विश्वविद्यालयों, मात्सिकीय महाविद्यालयों, राजकीय मत्स्य विकास अधिकारियों, मात्सिकीय शोध संस्थानों व आईसीएआर, नई दिल्ली से प्राप्त की जा सकती है।
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