उत्तराखंड को देश के चंद हरियाली वाले राज्यों के रूप में जाना जाता है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इसका हर इलाका लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. यही कारण है कि यहां के विभिन्न पर्यटक स्थलों पर वर्ष भर देश विदेश के पर्यटकों का तांता लगा रहता है. लेकिन अभी यही प्राकृतिक सुंदरता आग की भेंट चढ़ रही है जानिए क्या है कारण?Kesar Singh posted 3 months 1 week ago
यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) के अनुसार, 22 जुलाई को पृथ्वी ने कम से कम 84 वर्षों में अपना सबसे गर्म दिन अनुभव किया, जब वैश्विक औसत तापमान 17.15 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। यह एक दिन पहले 21 जुलाई को दर्ज किये गये 17.09 डिग्री सेल्सियस के पिछले रिकार्ड को पार कर गया। रोज ब रोज तापमान के नए रिकार्ड पर लेखक आशीष सिंह की एक टिप्पणी।Kesar Singh posted 3 months 1 week ago
चुनावों के सन्दर्भ में हमारे युवा जलवायु परिवर्तन को लेकर क्या सोचते हैं? क्या वे जलवायु परिवर्तन को जरूरी चुनावी मुद्दा मानते हैं? इस सर्वे से जलवायु शिक्षा के स्तर का भी पता चलता है। 59% युवाओं को उनके स्कूलों-कॉलेजों में दी जा रही शिक्षा से जलवायु परिवर्तन के कारण और परिणामों के बारे में पर्याप्त और सही जानकारी नहीं मिलतीKesar Singh posted 3 months 1 week ago
कहते हैं कि पानी की अपनी स्मृति होती है। वो अपने आसपास से स्मृतियों को समेट कर लंबे समय तक अपने पास रखता है। व्यक्ति या व्यवस्था भले ही अपनी सुविधा या हित के लिए भूल जाए मगर पानी याद रखता है कि यहां नदी थी‚ यहां नाला था‚ यहां से होकर वो बरसात में बहता था‚ और गर्मी और सर्दी वो लौट कर वापस कहां रु कता था। इसलिए पानी की स्मृति को अनदेखा कर उसकी राह में बाधा डालने की कवायद एक विलंबित विनाश का निमंत्रण देती है।Kesar Singh posted 3 months 1 week ago
कई अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर के कई क्षेत्रों में बादल फटने की आवृति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएँ देखी जा रही हैं, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में 'दशकीय तापमान वृद्धि' 'वैश्विक तापमान वृद्धि' की दर से अधिक है। हाल ही में किए गए एक मॉडलिंग अध्ययन से भी पता चला है कि भारत के पूर्वोत्तर में हवा में 'ब्लैक-कार्बन' की बढ़ती मात्रा बारिश बढ़ा रही है। एक्सट्रीम रेनफाल अब न्यू नार्मल घटना हो गई है। लापरवाही और आपदा लेख में हम जानते हैं कि क्या करना होगा?Kesar Singh posted 3 months 1 week ago
इस बार केदारनाथ में आई आपदा ने 2013 की केदारनाथ आपदा की याद दिला दी है। केदारनाथ ही नहीं प्रदेश भर में आपदा से हो रहे नुकसान ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि किसी ने भी पिछली आपदाओं से जनता के हित में कुछ सीख नहीं ली है। पर्यटन के नाम पर पहाड़ों में भारी भीड़ को न्यौता देने की नीति को उसने और जोर- शोर से अपना लिया है। आपदाओं के मसले पर लेखक की टिप्पणीKesar Singh posted 3 months 1 week ago
प्राकृतिक कृषि पद्धति में एक देशी गाय से 30 एकड़ भूमि पर कृषि की जा सकती है और जैविक खेती में 30 गाय से मात्र एक एकड़ में कृषि हो पाएगी। प्राकृतिक कृषि पद्धति इतनी सरल है कि कोई भी किसान इसके माध्यम से खेती कर सकता है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बचेगी, जल की खपत में 70 प्रतिशत से अधिक कमी आएगी। पढ़िए बृजेंद्र पाल सिंह की टिप्पणी Kesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
ज्यादा पानी पीने से जब शरीर में नमक और इलेक्ट्रोलाइट्स पतले (Dilute) हो जाते हैं तो किडनी इसे शरीर से बाहर निकालने असमर्थ हो जाती है। इससे सूजन, पॉलीयूरिया, हाइपोनेट्रेमिया और पुअर मेटाबॉलिज्म की परेशानी हो सकती है। किडनी एक बार में केवल सीमित मात्रा में पानी को हैंडल कर सकती हैं। भारी मात्रा में तरल पदार्थ पीने से कई अंगों में सूजन हो जाते हैं। ज्यादा पानी पीने के खतरों के प्रति आगाह करता यह आलेख।Kesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
वायु प्रदूषण का सर्वाधिक दुःष्प्रभाव इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ता है। हानिकारक गैसें और धूल आदि हमारे श्वसन तंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करती है, जिससे श्वास संबंधी रोग बड़ी तेजी से फैलते हैं। पढ़िए वायु प्रदूषण के प्रभावों पर एक टिप्पणीKesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
वायु हमारे लिए कितनी आवश्यक है, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि एक मनुष्य बिना भोजन के पांच सप्ताह तक तथा बिना जल के पांच दिन तक जीवित रह सकता है, लेकिन बिना सांस लिए उसका पांच मिनट जीवित रहना भी मुश्किल है। इसलिए, जिस वायु में हम सांस लेते हैं, उसका शुद्ध व निरापद होना अनिवार्य है। यह आलेख वायु प्रदूषण पर शोधपरक टिप्पणी है।Kesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
जल शक्ति मंत्रालय ने पूरे भारत में जल निकायों की प्रथम जनगणना की है। यह एक निश्चित आंतराल पर बार-बार होते रहना चाहिए। जनगणना तालाबों और झीलों जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकायों सहित भारत के जल संसाधनों की एक सूची प्रदान करती है। जनगणना के तहत 24.24 लाख से अधिक जल निकायों की गणना की गई है। पढ़िए इस मुद्दे पर एक टिप्पणीKesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
जल निकाय से अभिप्राय उन संरचनाओं से है, जहाँ आवासीय या अन्य क्षेत्रों से हिमगलन, धाराओं, झरनों तथा वर्षा जल निकासी से जल एकत्र होता है। इनमें किसी धारा, नाले या नदी से परिवर्तित करके भंडारित किया गया जल भी शामिल है, परन्तु महासागरों, नदियों, झरनों, स्विमिंग पूलों, व्यक्तियों द्वारा बनाए गए ढके हुए जल के टैंक, कारखानों और अस्थायी जल निकायों को इस जनगणना से बाहर रखा गया है। जलस्रोतों के संरक्षण की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम हैKesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
जलवायु परिस्थितियों में स्थानिक विविधताओं की वजह से अलग-अलग राज्यों में सूखे का खतरा बना रहता है तथा संभवतः लगभग हर वर्ष सूखा पड़ता ही है। पानी की कमी होने से अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। सूखे की वजह से कृषि में किसानों की आमदनी में नुकसान और लोगों को पानी की कमी से घरेलू कामों में काफी परेशानी होती है। जरूरी है कि इसके समस्या के सारे अवयव जानेंKesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
पृथ्वी की सतह का लगभग 71% क्षेत्र पानी से बना है पानी में कई विशेषताएं हैं जैसे पानी एक बहुत अच्छा विलायक है- जो कई पदार्थों को घोलने की क्षमता रखता है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा काफी अधिक होती है। पृथ्वी की जलवायु में एक बड़ी भूमिका निभाती है इस गुण के कारण पानी पृथ्वी के वातावरण में सूर्य द्वारा प्रदत्त गर्मी को अवशोषित करता है व पर्यावरण को नियंत्रित करता है। पानी के बहुआयामी महत्व को, जरूरी है कि
हम जानें Kesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (RBA) द्वारा किये गए मूल्यांकन के अनुसार राज्य का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 31.05 लाख हेक्टेयर है, जबकि राज्य का कुल क्षेत्रफल 78.523 लाख हैक्टेयर है अर्थात असम में कुल भूमि क्षेत्र का 39.58% बाढ़ से प्रभावित है। यह देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का लगभग 9.40% है। यह दर्शाता है कि असम का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के चार गुणा से अधिक है।Kesar Singh posted 3 months 2 weeks ago
(IHP) के तत्वावधान में जल संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निस्तारण के लिए कुल 17 प्रमुख कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जिसकी हम संक्षेप में चर्चा करते जा रहे हैं। पिछले भाग 2 में 11 कार्यक्रमें की चर्चा हम कर चके हैं। आगे के क्रयक्रमें को आप यहां पढ़ सकते हैं। Kesar Singh posted 3 months 3 weeks ago
वैश्विक स्तर पर यूनेस्को के अन्तः शासकीय जलविज्ञानीय कार्यक्रम के संगर्भ में हमें यह जानना है कि (IHP) के तत्वावधान में जल संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के निस्तारण के लिए कुल 17 प्रमुख कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जिसकी हम संक्षेप में चर्चा करने जा रहे हैं:Kesar Singh posted 3 months 3 weeks ago
यूनेस्को का उद्देश्य शांति एवं सुरक्षा के लिए योगदान करना है, जिसकी पूर्ति हेतु शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के द्वारा राष्ट्रों के मध्य निकटता की भावना का निर्माण करना है। यूनेस्को ने प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान के विकास पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। यूनेस्को के माध्यम से वैज्ञानिक सहयोग की पृष्ठभूमि का उचित निर्माण हुआ है। जल संरक्षण के साथ-साथ यह संगठन मरुप्रदेशों को उर्वरक बनाने के सम्बन्ध में अनेक देशों में जो प्रयोग हो रहे हैं उसमें भी अपनी महती भूमिका निभा रहा है।Kesar Singh posted 3 months 3 weeks ago