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Meta Description
Agriculture, an important sector of our economy accounts for 14 per cent of the nation’s GDP and about 11 per cent of its exports. India has the second largest arable land base (159.7 million hectares) after US and largest gross irrigated area (88 milion hectares) in the world. Rice, wheat, cotton, oilseeds, jute, tea, sugarcane, milk and potatoes are the major agricultural commodities produced. More importantly, over 60 per cent of the country’s population, comprising several million small farming households, depends on agriculture as a principal income source and land continues to be the main asset for livelihood security. 
Meta Keywords
Flowers, trees
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Rural electrification can affect irrigation practices. Image for representation purposes only. (Image Source: IWP Flickr photos)
केंचुवा खाद - वर्मी कम्पोस्ट
Posted on 12 Mar, 2014 10:49 PM

1.वर्मी कम्पोस्ट क्या है:-


मृदा पर उपलब्ध सभी जैविक घटकों को हम ह्यूमस में परिवर्तन करने का महत्वपूर्ण कार्य एक छोटे से जीव द्वारा हैं। जिसे अर्थवर्म/ केंचुआ/ गिंडोला कहते हैं। इससे तैयार उत्पाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। अर्थात केचुओं की विष्टा को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है।

2. वर्मी कल्चर क्या है:-

पेप्सी -कोक फसलों की रक्षा में अमोघ
Posted on 03 Feb, 2014 10:17 PM वाराणसी / दुनिया भर में पेप्सी ओर कोक जैसे कोल्ड ड्रिंक का इस्तेमाल पीने के लिए हो रहा है,लेकिन बनारस के किसान इसका प्रयोग कीटनाशक के रूप में भी कर रहे है। सब्जियां और फुल इसकी फुहारों से लहलहा रहे है।
टिकाऊ खेती ने दिखाई राह
Posted on 07 Nov, 2013 10:38 AM

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कई वर्षों से प्रयासरत गोरखपुर एंवायरमेंटल एक्शन ग्रुप ने इस दिशा में अच्छा काम किया है। इस संस्था ने जिले के सरदार नगर और कैंपियरगंज ब्लाकों के गाँवों में खेती किसानी को नई राह दिखाई है। अन्य संस्थाओं के सहयोग से इसे पूर्वांचल के जिलों में फैलाने में भी मदद की है। इस संस्था ने तीन बिंदुओं पर ध्यान दिया है। पहली बात तो यह है कि कृषि के लिए बाजार के महंगे उत्पादों पर निर्भर होने के स्थान पर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध निशुल्क, संसाधनों का बेहतर प्रयोग किया जाए और इसकी वैज्ञानिक सोच को किसानों तक ले जाया जाए।

हाल के वर्षों में खेती-किसानी का जो गंभीर संकट उत्पन्न हुआ उसका एक मुख्य कारण यह था कि छोटे किसानों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ कर कृषि विकास का प्रयास किया गया। ऐसी तकनीकों का प्रसार हुआ जो न केवल महंगी है बल्कि मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊपन को क्षतिग्रस्त कर भविष्य में और ज्यादा खर्च की भूमिका भी तैयार करती हैं। पर्यावरण से खिलवाड़ कर कई नई बीमारियों और समस्याओं को निमंत्रण देती हैं। महंगी तकनीकों के कारण छोटे किसानों में कर्ज की समस्या बढ़ गई। उधर भूमि सुधार की विफलता के कारण भूमिहीन कृषि मज़दूरों को छोटे किसान बनाने का कार्य भी पीछे छूट गया। चिंताजनक स्थिति में भी उत्साहवर्धक बात यह है कि कई संस्थाओं और संगठनों के प्रयोग ने देश के करोड़ों किसानों को संकट से बाहर निकालने की राह भी दिखाई है। तमाम सीमाओं के बावजूद आर्गेनिक खेती ने अपना असर दिखाया है।
जैविक खेती का गुरू बना गोविंदपुर
Posted on 07 Nov, 2013 10:12 AM अन्न संकट दूर करने के लिए 60 के दशक में हरित क्रांति लाई गई। अधिक अन्न का उत्पादन तो जरूर हुआ, पर मिट्टी ऊसर होती गई। मिट्टी, जल व वायु प्रदूषित होती गई और मनुष्य व पशुओं की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा। कृषि विज्ञान केंद्र सरैया के मृदा वैज्ञानिक के.के. सिंह रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को गिनाते हुए कहते हैं कि पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं। पेस्टीसाइड्स और नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग करने से वायुमंडल के साथ-साथ जल प्रदूषण भी हो रहा है। फसल की पैदावार बढ़ाने के चक्कर खेतों में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल भी धड़ल्ले से हो रहा है, जिससे मिट्टी ऊसर होती जा रही है। पहले खेतों में नाइट्रोजन की मात्रा 3-5 किलो प्रति कट्ठा के हिसाब होती थी जो आज रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से 10-20 लौकी प्रति कट्ठा हो गई है। वजह साफ है किसानों का अत्यधिक मात्रा में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करना। रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से धरती दिनों दिन दूषित होती जा रही है और इससे जलवायु प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है। यह प्रकृति के साथ-साथ फसल चक्र को भी प्रभावित कर रहा है।
रसिन बांध से किसानों को पानी नहीं, होता है मछली पालन
Posted on 31 Oct, 2013 03:55 PM किसानों के लिए प्रस्तावित बुंदेलखंड की 2 फ़सलों रबी और खरीफ के लिए क्रमशः 5690 एकड़, 1966 एकड़ ज़मीन सिंचित किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन एक किसान नेता के नाम पर बने इस रसिन बांध की दूसरी तस्वीर कुछ और ही है। जो कैमरे की नजर से बच नहीं सकी। जब इस बांध की बुनियाद रखी जा रही थी तब से लेकर आज तक रह-रहकर किसानों की आवाजें मुआवज़े और पानी के विरोध स्वरों में चित्रकूट मंडल के जनपद में गूंजती रहती है। अभी भी कुछ किसान इस बांध के विरोध में जनपद चित्रकूट में आमरण अनशन पर बैठे हैं। चित्रकूट। बुंदेलखंड पैकेज के 7266 करोड़ रुपए के बंदरबांट की पोल यूं तो यहां बने चेकडेम और कुएं ही उजागर कर देते हैं, लेकिन पैकेज के इन रुपयों से किसानों की ज़मीन अधिग्रहण कर बनाए गए बांध से किसानों को सिंचाई के लिए पानी देने का दावा तक साकार नहीं हो सका। चित्रकूट जनपद के रसिन ग्राम पंचायत से लगे हुए करीब एक दर्जन मजरों के हजारों किसानों की कृषि ज़मीन औने-पौने दामों में सरकारी दम से छीनकर उनको सिंचाई के लिए पानी देने के सब्जबाग दिखाकर पैकेज के रुपयों से खेल किया गया।

उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मातहत बने चौधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना की कुल लागत 7635.80 लाख रुपया है, जिसमें बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत 2280 लाख रुपए पैकेज का हिस्सा है, शेष अन्य धनराशि अन्य बांध परियोजनाओं के मद से खर्च की गई है। बांध की कुल लंबाई 260 किमी है और बांध की जलधारण क्षमता 16.23 मी. घनमीटर है।
ਜੈਵਿਕ ਖਾਦ- ਜ਼ਰੂਰਤ ਅਤੇ ਤਕਨੀਕ
Posted on 21 Jan, 2013 11:18 AM ਸਾਡੀ ਪ੍ਰਾਪੰਰਿਕ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਕਚਰਾ, ਗੋਬਰ, ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਮਲਮੂਤਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਨਸਪਤੀ ਕਚਰੇ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਕੇ ਖਾਦ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਾਰੇ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤ ਅਤੇ ਮਿੱਟੀ ਵਿੱਚ ਜੈਵਿਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਵਿਘਟਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਤਰ੍ਹਾ ਦੇ ਸੂਖ਼ਮਜੀਵੀ ਪ੍ਰਚੂਰ ਮਾਰਤਰਾ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਜੈਵਿਕ ਖਾਦ ਦੇ ਇਸਤੇਮਾਲ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਕੁਦਰਤੀ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਮਿੱਟੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਚੰਗੀ ਫ਼ਸਲ ਦੇਣ ਦੇ ਯੋਗ ਰਹਿੰਦੀ ਸੀ। ਖ
ਕੀਟ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਇੱਕ ਅਨੋਖਾ ਸਕੂਲ
Posted on 11 Dec, 2012 01:08 PM ਇੱਕ ਕਿਸਾਨ ਜਦ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਫ਼ਸਲ 'ਤੇ ਕਿਸੇ ਕੀੜੇ ਨੂੰ ਦੇਖਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਹੜਾ ਵਿਚਾਰ ਉਸਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ?
ਕਿਵੇਂ ਆਵੇਗੀ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਖੇਤੀ ਵਿਭਿੰਨਤਾ
Posted on 14 Nov, 2012 05:04 PM ਅੱਜ -ਕਲ੍ਹ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਅਖਬਾਰਾਂ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਮਿਲ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਖੇਤੀ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਉਪਰਾਲੇ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਆਪਣੇ ਹਰ ਭਾਸ਼ਨ ਵਿਚ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਅਪਣਾਉਣ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਿਭਾਗ ਅਤੇ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀ ਵੀ ਹਰ ਕੈਪ ਵਿਚ ਇਸੇ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਜੋਰ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ।
ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਵਿਚ ਗਊ ਦਾ ਮਹੱਤਵ
Posted on 31 Oct, 2012 01:10 PM ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਗਊ ਹਮੇਸ਼ਾ ਤੋਂ ਹੀ ਖੇਤੀ ਦਾ ਧੁਰਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਸਾਡੀ ਖੇਤੀ, ਖੇਤੀ ਵਿਚਲੀਆਂ ਕਿਰਿਆਂਵਾਂ ਸਭ ਗਊ ਦੇ ਦੁਆਲੇ ਹੀ ਘੁੰਮਦੀਆਂ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਗਊ ਦੇ ਗੋਬਰ ਦੀ ਖਾਦ ਸਾਡੀ ਜਮੀਨ ਨੂੰ ਉਪਜਾਊ ਬਣਾਉਂਦੀ ਰਹੀ ਹੈ। ਪਰ ਜਦ ਰਸਾਇਣਿਕ ਖੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ ਤਾਂ ਗਊ ਦੇ ਗੋਬਰ ਦੀ ਥਾਂ ਯੂਰੀਆ ਅਤੇ ਡੀ ਏ ਪੀ ਜਹੀਆਂ ਖਾਦਾਂ ਨੇ ਲੈ ਲਈ ਜਿਸਦਾ ਨਤੀਜ਼ਾ ਅੱਜ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ
ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਦਾ ਵਿਗਆਨੀ ਕਿਸਾਨ- ਇੰਦਰਜੀਤ ਸਿੰਘ 'ਸਹੋਲੀ'
Posted on 27 Oct, 2012 03:45 PM ਆਧੁਨਿਕ ਖੇਤੀ ਦੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੱਕ ਖੇਤੀ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ ਪਰ ਜਿਉਂ ਹੀ ਰਸਾਇਣਿਕ ਖੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ ਤਾਂ ਗਿਆਨ ਕੰਪਨੀਆਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਬਣ ਗਿਆ। ਕਿਸਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨ ਦਾ ਹੌਸਲਾ ਘਟਣ ਲੱਗਿਆ। ਪਰ ਅੱਜ ਫਿਰ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਸਦਕਾ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗਸ਼ੀਲਤਾ ਵਾਲਾ ਗੁਣ ਫਿਰ ਤੋਂ ਉੱਭਰਨ ਲੱਗਿਆ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਫਿਰ ਤੋਂ ਨਵੇਂ-ਨਵੇਂ ਤਜ਼ਰਬੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਕੇ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਖੋ
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