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किसी को व्यथित करे न करे, हिंडन पर होते अत्याचार ने मोहम्मदपुर धूमी के जयपाल को बेहद व्यथित किया। उसकी सारी रात आंखों में कटी। सुबह होते ही उसकी बेचैनी कागज पर उतर आई:
हम इसकी रेती में खेले। इस पर लगते देखे मेले।
इसने बहुत आक्रमण झेले। कहां तक इसकी व्यथा सुनायें।।
बचपन में हम भी नहाते थे। मेलों में साधु आते थे।
आज हम दोष चाहें किसी को दें, शिवनन्दी का प्रतिरूप बने हरनन्दी का पितृस्वरूप तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन इसका नाम हिंडन पड़ा। सिर्फ पितृस्वरूप मरा हो, इतना नहीं... हिंडन ने अब खुद विषधर का रूप धारण कर लिया है। जैसा कभी यमुना ने कालियादेह का रूप धरा था। हिंडन का यह रूप हमें जीवन देने वाला न होकर जीवन लेने वाला हो गया। हमारी बेवकूफी देखिए!