1. शासन को तत्काल रेल उत्खनन एवं बोल्डर की खुदाई, मिट्टी की खुदाई बंद करवा देना चाहिए।
2. जन जागरण की अति आवश्यकता है।
3. नदी में जहर या करंट फैलाने वाले व्यक्तियों पर आपराधिक मामला कायम होना चाहिए।
4. पलकमती के किनारों पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए जिसकी जवाबदारी स्थानीय नागरिकों, ग्रामीणों को दी जानी चाहिए।
5. पलकमती के किनारे या मध्य में किए गए अतिक्रमण को तत्काल रोका जाना चाहिए।
6. शहर या ग्रामों के गंदे पानी का निकास नदी में जाने से रोक लगाना चाहिए।
7. पलकमती नदी में कपड़े धोना या किसी भी तरह के केमिकल के उपयोग पर रोक लगाना चाहिए।
8. पलकमती नदी में कूड़ा करकट, मैला फेंकने पर रोक लगना चाहिए ताकि इसका जल स्वच्छ रह सके।
9. जन भागीदारी, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से शाला, महाविद्यालय स्तर पर तथा ग्राम स्तर, पंचायत स्तर पर जन जागरूकता रैली, पेम्पलेट पोस्टर आदि से जागरूकता लाना आवश्यक है।
10. पलकमती नदी-पवित्र नदी नर्मदा को जीवित रखे हुए हैं यह जागृति फैलना चाहिए।
1. पलकमती नदी के किनारे जो वनस्पतियां थी वह तेजी से खत्म हो रही हैं।
2. कई प्रजातियाँ समाप्त हो गई।
3. पलकमती नदी में रहने वाली या किनारे पर रहने वाली जीव-जंतु की प्रजातियों में तेजी से कमी आई है। आने वाले समय में यह लगभग तीन से पांच वर्षों में समाप्त हो जाएगी। कुछ उदाहरण ही काफी होंगे- पांच वर्ष पूर्व नदी में केंकड़ों का प्रतिशत 84.4 प्रतिशत था अब यह 25.5 प्रतिशत रह गया है तथा पातल, मेंढक 56.6 प्रतिशत थे वहीं अब 45.5 प्रतिशत रह गए। जल मुर्गी 95.5 प्रतिशत थी वह अब 20 प्रतिशत रह गई, कछुआ 21.1 प्रतिशत थे अब वह 5.5 प्रतिशत ही शेष रह गए हैं, जबकि मगर, टिटहरी, झींगा पूरी तरह से लुप्त हो गए हैं।
4. पलकमती नदी से प्रतिवर्ष 1,78,20,450/- रुपए का लाभ निजी रूप से लिया जाता है जिसमें पानी, धोबी, खेती, जानवरों को पानी पिलाना, बोल्डर आदि हैं एवं शासन द्वारा लीज पर देना, रेत की रायल्टी अतिरिक्त है।
5. पलकमती नदी को बचाने हेतु प्रतिवर्ष निजी व शासकीय रूप से एक रुपया भी खर्च नहीं किया जाता है।
6. पलकमती नदी से रेत, बोल्डर, पानी, मछली, या अन्य वनस्पति का उपयोग प्रतिवर्ष किया जाता है लेकिन निजी रूप से उसकी साफ-सफाई पर निजी व्यक्तियों द्वारा 0 प्रतिशत भी कार्य नहीं किया गया।
7. स्थानीय नागरिकों, ग्रामीणों को यह ज्ञात है कि पलकमती नदी दिन-प्रतिदिन समाप्ति की ओर जा रही हैं लेकिन जन जागरूकता के अभाव में यह नदी समाप्ति की ओर लगातार बढ़ती जा रही हैं।
8. पलकमती नदी में मात्र एक लांघा नदी महुआखेड़ा, अजबगांव के मध्य मिलती हैं जिसके चलते वहां जल स्तर काफी बना रहता है अन्यथा काफी स्थानों पर नदी वर्ष के 6 माह सूखी रहती है।
9. लांघा नदी भी एक पहाड़ी नदी हैं जिसमे तवा डेम की केनाल का पानी बारह मास रिसता रहता है जिससे वह धीमी गति से बहकर पलकमती को मात्र 7-8 कि.मी. तक जीवनदान देती है।
10. पलकमती अन्य जाति के बच्चे मित्रता करते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में:- नदी का अस्तित्व आने वाले 5 वर्षों में समाप्त हो जाएगा और शेष रह जाएगी तेज गति से बढ़ती हुई बेशरम की झाड़ियां। इसमें मिलने वाले नालों पर अतिक्रमण के चलते भी इसका जल स्तर कम होता चला गया है।
2. जन जागरण की अति आवश्यकता है।
3. नदी में जहर या करंट फैलाने वाले व्यक्तियों पर आपराधिक मामला कायम होना चाहिए।
4. पलकमती के किनारों पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए जिसकी जवाबदारी स्थानीय नागरिकों, ग्रामीणों को दी जानी चाहिए।
5. पलकमती के किनारे या मध्य में किए गए अतिक्रमण को तत्काल रोका जाना चाहिए।
6. शहर या ग्रामों के गंदे पानी का निकास नदी में जाने से रोक लगाना चाहिए।
7. पलकमती नदी में कपड़े धोना या किसी भी तरह के केमिकल के उपयोग पर रोक लगाना चाहिए।
8. पलकमती नदी में कूड़ा करकट, मैला फेंकने पर रोक लगना चाहिए ताकि इसका जल स्वच्छ रह सके।
9. जन भागीदारी, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से शाला, महाविद्यालय स्तर पर तथा ग्राम स्तर, पंचायत स्तर पर जन जागरूकता रैली, पेम्पलेट पोस्टर आदि से जागरूकता लाना आवश्यक है।
10. पलकमती नदी-पवित्र नदी नर्मदा को जीवित रखे हुए हैं यह जागृति फैलना चाहिए।
अंतिम निष्कर्ष
1. पलकमती नदी के किनारे जो वनस्पतियां थी वह तेजी से खत्म हो रही हैं।
2. कई प्रजातियाँ समाप्त हो गई।
3. पलकमती नदी में रहने वाली या किनारे पर रहने वाली जीव-जंतु की प्रजातियों में तेजी से कमी आई है। आने वाले समय में यह लगभग तीन से पांच वर्षों में समाप्त हो जाएगी। कुछ उदाहरण ही काफी होंगे- पांच वर्ष पूर्व नदी में केंकड़ों का प्रतिशत 84.4 प्रतिशत था अब यह 25.5 प्रतिशत रह गया है तथा पातल, मेंढक 56.6 प्रतिशत थे वहीं अब 45.5 प्रतिशत रह गए। जल मुर्गी 95.5 प्रतिशत थी वह अब 20 प्रतिशत रह गई, कछुआ 21.1 प्रतिशत थे अब वह 5.5 प्रतिशत ही शेष रह गए हैं, जबकि मगर, टिटहरी, झींगा पूरी तरह से लुप्त हो गए हैं।
4. पलकमती नदी से प्रतिवर्ष 1,78,20,450/- रुपए का लाभ निजी रूप से लिया जाता है जिसमें पानी, धोबी, खेती, जानवरों को पानी पिलाना, बोल्डर आदि हैं एवं शासन द्वारा लीज पर देना, रेत की रायल्टी अतिरिक्त है।
5. पलकमती नदी को बचाने हेतु प्रतिवर्ष निजी व शासकीय रूप से एक रुपया भी खर्च नहीं किया जाता है।
6. पलकमती नदी से रेत, बोल्डर, पानी, मछली, या अन्य वनस्पति का उपयोग प्रतिवर्ष किया जाता है लेकिन निजी रूप से उसकी साफ-सफाई पर निजी व्यक्तियों द्वारा 0 प्रतिशत भी कार्य नहीं किया गया।
7. स्थानीय नागरिकों, ग्रामीणों को यह ज्ञात है कि पलकमती नदी दिन-प्रतिदिन समाप्ति की ओर जा रही हैं लेकिन जन जागरूकता के अभाव में यह नदी समाप्ति की ओर लगातार बढ़ती जा रही हैं।
8. पलकमती नदी में मात्र एक लांघा नदी महुआखेड़ा, अजबगांव के मध्य मिलती हैं जिसके चलते वहां जल स्तर काफी बना रहता है अन्यथा काफी स्थानों पर नदी वर्ष के 6 माह सूखी रहती है।
9. लांघा नदी भी एक पहाड़ी नदी हैं जिसमे तवा डेम की केनाल का पानी बारह मास रिसता रहता है जिससे वह धीमी गति से बहकर पलकमती को मात्र 7-8 कि.मी. तक जीवनदान देती है।
10. पलकमती अन्य जाति के बच्चे मित्रता करते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में:- नदी का अस्तित्व आने वाले 5 वर्षों में समाप्त हो जाएगा और शेष रह जाएगी तेज गति से बढ़ती हुई बेशरम की झाड़ियां। इसमें मिलने वाले नालों पर अतिक्रमण के चलते भी इसका जल स्तर कम होता चला गया है।
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