अरबों खर्च के बाद भी कागज़ों में ही जुड़ी नदियों

ज़मीन पर भले एक भी नदी दूसरी से न जुड़ पाई हो पर कागज़ों में नदियों को जोड़ने के नाम पर नौकरशाहों और बाबुओं ने 350 करोड़ रुपए फूंक डाले हैं। जल संसाधन मंत्रालय के तहत विभिन्न सरकारी महकमों ने यह राशि नदियों को जोड़ने के संबंध में परियोजना रिपोर्ट बनाने और विभिन्न प्रकार के अध्ययन कार्यों पर खर्च की है। अरबों खर्च के बाद भी कोई अधिकारी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि नदी जोड़ने की पहली योजना कब पूरी होगी।

जल संसाधन मंत्रालय ने 1980 में जल संसाधन विकास संबंधी एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की थी। इसके तहत जल की अधिकता वाले नदी बेसिनों से जल की कमी वाली नदियों के बेसिन-क्षेत्रों तक पानी पहुंचाने की योजना पर काम शुरू किया जाना था। तकनीकी अध्ययन कराने के लिए 1982 में जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) का गठन किया गया। यह योजना नदियों जोड़े जाने के नाम से अधिक जानी गई। बाद में केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 1999 में यह तय किया कि देश की प्रमुख नदियों को 2015 तक एक दूसरे से जोड़ा जाएगा, लेकिन केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के गठन के साथ ही नदी जोड़ो योजना कागज़ों में ही सिमट कर रह गई। दोनों ही सरकारों में सिर्फ अध्ययन और रिपोर्ट तैयार करने का काम ही होता रहा।

एनडब्ल्यूडीए ने एनपीपी के अंतर्गत नदियों के संपर्क प्रस्तावों की पूर्व व्यवहार्यता रिपोर्ट, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने, अंतरराज्यीय संपर्कों की व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने तथा इस संबंध में अन्य अध्ययन कार्य के लिए 1982 से लेकर जनवरी 2010 तक 277.72 करोड़ रुपए खर्च किए। सरकार ने दसवीं योजना 2007-12 में एनडब्ल्यूडीए द्वारा किए गए उक्त कार्यों के लिए 182.80 करोड़ रुपए का बजट परिव्यय और जारी कर दिया। मंत्रालय के अनुसार एनडब्ल्यूडीए ने फरवरी 2012 तक 350.3 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। वर्तमान में सिर्फ केन-बेतवा नदियों की परियोजना रिपोर्ट तैयार हुई है। एनडब्ल्यूडीए ने हिमालय की 14 और भारतीय प्रायद्वीप की 16 नदियों को जोड़ने की रिपोर्ट तैयार करने का दावा किया है पर योजना ज़मीन पर कब उतरेगी मंत्री, अधिकारी भी चुप रहने में भलाई समझ रहे हैं।

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