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नदियां
गंगा सफाई : जल निकासी पर ध्यान देगी सरकार
Posted on 28 Oct, 2014 10:50 AMनई दिल्ली, एजेंसी। गंगा नदी की सफाई के लिए कमर कसते हुए सरकार ने प्रदूषण फैलाने वाली जल निकासी प्रणाली पर ध्यान देने और नदी के संरक्षण के संदेश को फैलाने के लिए गंगा वाहिनी का गठन करने जैसे कदम उठाने का निर्णय किया है। केंद्र सरकार साबरमती नदी रिवरफ्रंट परियोजना की तर्ज पर गंगा नदी के तट पर स्थित कई शहरी निकायों के रिवरफ्रंटों का विकास करने की संभावना पर विचमानव फांस में उलझी यमुना
Posted on 27 Oct, 2014 09:20 AMदिल्ली का मीडिया और केंद्र सरकार यमुना सफाई पर फतवे जारी करते रहते हैं, लेकिन नजफगढ़ नाले से लेकर 16 बड़े नालों ने दिल्ली में यमुना का जो हाल कर रखा है वह यमुना के मानव फांस का ही द्योतक है। शुक्र है आज कृष्ण नहीं हुए वरना वे कालिंदी के उद्धार के लिए दिल्ली को ही नाथते। दिल्ली ही आज का वह ‘कालिया नाग’ है जिसने यमुना को विषैला कर रखा है। जरूरी है कि या तो वह अपनी आदत सुधार ले या यमुना को छोड़कर कहीं और चला जाए।यम द्वितीया के दिन जब यम फांस से मुक्ति के लिए मृत्यु लोक के वासी यमुना में डुबकी लगाकर अपने को तार रहे थे तो यमुना मानव फांस से मुक्ति के लिए छटपटा रही थी। कहते हैं कि यम द्वितीया के दिन मथुरा में स्नान का विशेष पुण्य होता है और इसीलिए भाई-बहन के इस पर्व को सफल बनाने के उद्देश्य से प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए थे। तीन हजार क्यूसेक पानी विशेष तौर पर छोड़ा गया था। अफसरों की मुस्तैदी से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चलते रहे, सीवेज पंपिंग स्टेशन ओवर फ्लो नहीं हुए। लेकिन, न यमुना को ताजा पानी नसीब हुआ, न ही उसके भक्तों को। अगर आस्था के आगे मनुष्य ने आंख और नाक बंद करने की कला न सीखी होती तो उस पानी में डुबकी लगाना और अपना उद्धार करना मुश्किल था।प्राचीनतम नदी क्षिप्रा को प्रदूषण मुक्त बनाने की रूपरेखा तैयार
Posted on 24 Oct, 2014 12:01 PMमध्यप्रदेश के उज्जैन में वर्ष 2016 में होने वाले सिंहस्थ महापर्व के मद्देनजर देश की सबसे प्राचीनतम नदियों में से एक क्षिप्रा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के प्रयासों में तेजी लाई जाएगी। सबसे प्राचीन ग्रंथ स्कंद पुराण में रेखांकित करते हुए लिखा गया है कि (नास्ति वास मही पृष्ठे क्षिप्राया सदृश नदी) यानी कि इसके स्मरण मात्र से मनुष्य के जन्म जमांतर के पापों का नानदी की तरफ पीठ करके बैठी एक सभ्यता
Posted on 20 Oct, 2014 10:28 AMइंसान नदियों के किनारे बसते ही इसलिए थे कि नदियां इंसानों के जीवन में हर तरह से सुविधा का इंतजाम करती थी। नहाने-धोने-खाने-पकाने से लेकर घर के हर काम में आने वाली पानी की जरूरत नदियां पूरी करती थी। फिर खेतों की सिंचाई से लेकर परिवहन तक में नदियां सहायक रही हैं। इसी वजह से नदियां लोगों के लिए बाद में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का केंद्र बनी। मगर जैसे ही इंसान ने मशीनों की मदद से धरती के अंदर से पानी निकालने का हुनर सीखा नदियां उसके लिए नकारा होने लगी।यह कहानी अगर किसी और नदी की हो तो फर्क नहीं पड़ता, मगर जब सांस्कृतिक रूप से समृद्ध कोसी-मिथिला के इलाके के लोग नदी की तरफ पीठ करके बैठ जाएं तो सचमुच अजीब लगता है। मगर यह सच है, लगभग पिछले पचास सालों से हम कोसी वासी अपनी सबसे प्रिय नदी कोसी की तरफ पीठ करके बैठे हैं।
गंगा: आस्था से जुड़ा कल्याणकारी आन्दोलन
Posted on 19 Oct, 2014 10:20 AMआज लाखों लोग गंगा के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं। वे गंगा-जल की निर्मलता चाहते हैं, गंगा में नालों, सीवरों और उद्योगों के केमिकल युक्त कचरों के मिला देने से गंगा मैली हो गई है। गंगा भारत की नदियों में प्रमुख पवित्र नदी है। गंगा किसी के लिए आस्था, श्रद्धा और विश्वास है, तो किसी के लिए मोक्षदायनी। गंगा अपने अविरल प्रवाह से पर्यावरण को हरा भरा बनाती है, खेतों को सींचती है, अन्न और औषधियां उगाती है, तो तटवर्ती हजारों हाथों को अनेक प्रकार से रोजगार देती है, गंगा हर प्रकार से जीवनदायनी नदी है।
छोटी नदियों का संरक्षण जरूरी
Posted on 17 Oct, 2014 10:51 AMनदियों में ही मनुष्य का जीवन बसता है। इसलिए इसे जीवनदायिनी कहा जाता है। सारी सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुई हैं, जो अब तक हैं भी, इसलिए इसे जीवन से जोड़ा जाता है। लेकिन मसला यह है कि जहां देश की बड़ी नदियों को बचाने के लिए सरकार ने पूरा विभाग ही बना डाला तथा हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए लेकिन छोटी-छोटी नदियों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया और न ही ज
जल संरक्षण के साथ-साथ जल बचत भी आवश्यक...
Posted on 09 Oct, 2014 09:19 AMउज्जैन नगर को जलप्रदाय करने अर्थात इसकी प्यास बुझाने का एकमात्र स्रोत है यहाँ से कुछ दूरी पर बना हुआ बाँध जो 1992 वाले कुम्भ के दौरान गंभीर नदी पर बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि गंभीर नदी, चम्बल नदी की सहायक नदी है, जो कि नर्मदा नदी की तरह वर्ष भर “सदानीरा” नहीं रहती उज्जैन नगर को जलप्रदाय करने अर्थात इसकी प्यास बुझाने का एकमात्र स्रोत है यहाँ से कुछ दूरी पर बना हुआ बाँध जो 1992 वाले कुम्भ के दौरान गंभीर नदी पर बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि गंभीर नदी, चम्बल नदी की सहायक नदी है, जो कि नर्मदा नदी की तरह वर्ष भर “सदानीरा” नहीं रहती आधुनिक युग में जैसा कि हम देख रहे हैं, प्रकृति हमारे साथ भयानक खेल कर रही है, क्योंकि मानव ने अपनी गलतियों से इस प्रकृति में इतनी विकृतियाँ उत्पन्न कर दी हैं, कि अब वह मनुष्य से बदला लेने पर उतारू हो गई है। केदारनाथ की भूस्खलन त्रासदी हो, या कश्मीर की भीषण बाढ़ हो, अधिकांशतः गलती सिर्फ और सिर्फ मनुष्य के लालच और कुप्रबंधन की रही है। इस वर्ष की मीडिया चौपाल, नदी एवं जल स्रोत संरक्षण विषय पर आधारित है।परंपरा की दुहाई आखिर कब तक!
Posted on 06 Oct, 2014 11:29 AMइलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि अगले साल से उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले में गंगा और यमुना में मूर्ति विसर्जन न किया जाए। न्यायालय का यह फैसला सराहनीय है। गंगा और यमुना जैसी नदियां आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं। जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदियों की हालत इतनी खराब होगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा। गंगा को तो देश की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। इस
तो नदियों को जोड़ो तालाबों से
Posted on 30 Sep, 2014 10:27 AMदो खबरें- देश की पहली नदी जोड़ योजना बुंदेलखंड में ही होगी, यहां केन और बेतवा को जोड़ा जाएगा। इस पर 10 हजार करोड़ का खर्चा अनुमानित है। दूसरी खबर-बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में बराना के चंदेलकालीन तालाब को जामनी नदी से नहर द्वारा जोड़ा जाएगा। इस पर 15 करोड़ रुपए खर्च होंगे और 18 गांव के किसान इससे लाभान्वित होंगे।यह किसी से छिपा नहीं हैं कि देश की सभी बड़ी परियोजनाएं कभी भी समय पर पूरी होती नहीं हैं, उनकी लागत बढ़ती जाती है और जब तक वे पूरी होती है, उनका लाभ, व्यय की तुलना में गौण हो जाता है। यह भी तथ्य है कि तालाबों को बचाना, उनको पुनर्जीवित करना अब अनिवार्य हो गया है और यह कार्य बेहद कम लागत का है और इसके लाभ अफरात हैं।
जोड़ने की या उजाड़ने की योजना
Posted on 26 Sep, 2014 11:29 AM प्रसिद्ध खजुराहो के मंदिरों से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर एक नया आकर्षण जन्म ले रहा है। यह कुछ और नहीं बल्कि देश भर में सैकड़ों नदियों को एक-दूसरे से कुछ बेढब और निरा अवैज्ञानिक किस्म से जोड़ने की कोशिश है। हम इस नए अप्राकृतिक या कृत्रिम योजना को देखने के आकर्षण में पन्ना टाइगर रिजर्व के गंगऊ द्वार की तरफ बढ़ चले।बाढ़ और सुखाड़ से निपटारा!
अब दशक से ठंडे बस्ते में पड़ी योजना को साकार किया जा रहा है। केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को नरेंद्र मोदी सरकार की मंजूरी मिलने के बाद फिजां में नए गुंताड़े चल रहे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि केन में अक्सर आने वाली बाढ़ में बर्बाद होने वाला पानी अब बेतवा में पहुंचकर हजारों एकड़ खेतों में फसलों को सिंचित करेगी और हमारे अनाज उत्पादन में अप्रत्याशित तौर पर बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी।