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झीलें, तालाब और आर्द्रभूमि
आश्वस्त हुई काली बेई
Posted on 14 Sep, 2008 05:34 PMदेश में तालाबों को पुनर्जीवित करने की मुहिम शुरू हो गई है। जिसका श्रेय निर्विवाद रूप से पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र को जाता है। देश में जगह-जगह 'आज भी खरे है तालाब' की लाखों प्रतियां विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो कर लोगों तक पहुंची हैं। उनकी प्रेरणा से राजेन्द्र सिंह का राजस्थान में तालाब का काम चालू हुआ। फिर राजस्थान में तालाबों के संरक्षण से पहली बार कुछ किलोमीटर की 'अरवरी नदी' का पुनर्जन्म हुआ।
तालाबों ने किया सिंगारी गांव का कायाकल्प
Posted on 11 Sep, 2008 05:21 PMसुधीर पाल, भारतीय पक्ष/उन्हें नहीं पता कि देशभर की नदियों को जोड़ने की योजना बनाई जा चुकी है। इस योजना से होने वाले नफा-नुकसान से भी उनका कोई सरोकार नहीं है। उनके पास तो नदियां हैं ही नहीं, बस तालाब हैं और वे इसे ही जोड़ने की योजना पर काम कर रहे हैं। तालाबों को जोड़ने के लिए उनके पास श्रम की पूंजी है और नतीजे के रूप से चारों ओर लहलहाती फसल। यही वजह है कि झारखंड के इस गांव में अब कोई प्या
बूँद बूँद कर बना सरोवर
Posted on 11 Sep, 2008 03:55 PMबूंद-बूंद से सागर कैसे भरता है इसकी मिसाल बिहार के माणिकपुर गांव में देखी जा सकती है। पटना से करीब सौ किलोमीटर दूर इस गांव के कमलेश्वरी सिंह ने सात साल तक अकेले ही खुरपी और बाल्टी की मदद से 60 फीट लंबा-चौड़ा और 25 फीट गहरा तालाब खोद डाला। आज जब दक्षिण बिहार के ज्यादातर गांवों के तालाब और कुएं पानी का संकट झेल रहे हैं, कमलेश्वरी के पसीने की बूंदों से तैयार
जल निकाय का परिचय
Posted on 10 Sep, 2008 09:01 PMदेश के अन्तर्देशीय जल संसाधन निम्न रूप में वर्गीकृत हैं नदियां और नहरें, जलाशय, कुंड तथा तालाब; बीलें, आक्सबो झीलें, परित्यक्त जल; तथा खारा पानी। नदियों और नहरों से इतर सभीजल निकायों ने लगभग 7 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र घेर रखा है। जहां तक नदियों और नहरों का सवाल है, उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है क्योंकि उसकी नदियों और नहरों की कुल लम्बाई 31.2 हजार किलोमीटर है जो कि देश के भीतर नदियों और नहरों की
जल-स्प्रिंग की भण्डारण क्षमता का आंकलन
Posted on 09 Sep, 2008 03:03 PM जल-स्प्रिंग पर जलापूर्ति हेतु कई गॉंव के लोग निर्भर हैं। इसलिए यह आकलन भी आवश्यक है कि किसानों की पेयजल, गृह कार्यो, पशु पेयजल तथा सिंचाई की मॉंग हेतु कितने जल भण्डारण की आवश्यकता होगी। इस दृष्टि से प्रतिमाह जल की मॉंग के अनुरूप कम से कम जल-स्प्रिंग-1 व जल-स्प्रिंग-2 के लिए क्रमशः 694.79 तथा 184.9 घन मी0 क्षमता के टैंक या टैंक-समूहों की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार इन जल-स्प्रिंगों के लिए जल की मॉंगप्राकृतिक जल स्रोतों का पुनर्जीवीकरण एवं उपयोग
Posted on 09 Sep, 2008 01:56 PMजल एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना जीवन सम्भव नहीं है, तथा जिसकी कमी के कारण जीवन की प्रत्येक कार्य प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त कृषि कार्यो में आरम्भ से अन्त तक जल का विशेष महत्व है, तथा जल की कमी के कारण कृषि उत्पादन में भारी कमी आ जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत् आबादी कृषि पर आधारित है, परन्तु यहॉं लगभग 11 प्रतिशत् पर्वतीय भागों में ही उपलब्ध है, अर
प्राकृतिक जल स्रोत
Posted on 09 Sep, 2008 01:31 PMपर्वतीय क्षेत्रों में भूगर्भ स्थिति के अनुसार, पर्वतों से भू-जल स्रोत बहते हैं। ऐसे स्रोत मौसमी या लगातार बहने वाले होते हैं।
कुछ तथ्य-
पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 60 प्रतिशत् जनसंख्या अपनी प्रतिदिन की जलापूर्ति हेतु जल-स्प्रिंग पर निर्भर है।
गत दो दशकों में पर्यावरण असंतुलन के कारण लगभग आधे जल-स्प्रिंग या तो सूख गये हैं या उनका बहाव बहुत कम हो गया है।
मुद्दा : वर्षा-बूंदों को सहेजना जरूरी
Posted on 08 Sep, 2008 02:05 PMरेशमा भारती/ राष्ट्रीय सहारा/ देश के अधिकांश शहरों में अत्यधिक दोहन के कारण भूमिगत जलस्तर तो तेजी से घट ही रहा है, नदी, तालाब, झीलें आदि भी प्रदूषण, लापरवाही व उपेक्षा के शिकार रहे हैं। नदी जल बंटवारे या बांध व नहर से पानी छोड़े जाने को लेकर प्राय: शहरों का अन्य पड़ोसी क्षेत्रों से तनाव बना रहता है। शहरों के भीतर भी जल का असमान वितरण सामान्य है। जहां कुछ
नाला बंध निर्माण
Posted on 07 Sep, 2008 07:33 PMचिकनी मिट्टी द्वारा निर्मित यह संरचना नाला के ढलान को काटते हुए बनाई जाती है। यह संरचना अपवाह वेग को कम करने, भूमि में जल रिसाव के बढ़ाने तथा नमी को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाई जाती है। यह संरचना मृदा एंव जल संरक्षण के साथ साथ भूजल का स्तर बढ़ाती है एंव रबी की फसल के लिये सिंचाई का जल भी उपलब्ध करवाती है।कैसे सहज और व्यवस्थित हो तालाब निर्माण
Posted on 06 Sep, 2008 01:32 PMवेब दुनिया - मणिशंकर उपाध्याय/ पिछले एक दशक में भूमिगत पानी के अत्यधिक दोहन तथा अल्प वर्षा के चलते प्रदेश में पानी की कमी को देखते हुए नागरिक इसके संचय और संरक्षण के प्रति जागरूक हुए हैं। प्रदेश शासन ने भी वर्षा जल के संचय, जलस्रोत पुनर्भरण के लिए अनेक योजनाएँ कार्यान्वित की हैं। इनमें से वर्षा जल को तालाबों के माध्यम से सहेजने का प्रयास भी शामिल है। ताला