जलवायु परिवर्तन

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गर्म होते महासागर
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ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (Effects of Global Warming in Hindi)
पृथ्वी का औसत बार्षिक तापमान लगभग 15° C है। यदि ग्रीनहाऊस गैस न हो तो पृथ्वी का तापमान गिरकर लगभग 20°C हो जाएगा। पृथ्वी को गर्म रखने की वायुमंडल की यह क्षमता ग्रीनहाऊस गैसों की उपस्थिति पर निर्भर करती है। यदि इन ग्रीनहाऊस गैसों की मात्रा में वृद्धि हो जाए तो ये अल्ट्रावॉयलेट (पराबैंगनी किरणों को अत्यधिक मात्रा में अवशोषित कर लेंगी। Posted on 24 Apr, 2023 04:57 PM

हमारी पृथ्वी के चारों ओर का वायुमंडल एक कांच की खिड़की की तरह है जो सूर्य से आने वाले अधिकांश विकिरण को पृथ्वी के धरातल तक प्रवेश करने तो देता है, किन्तु पृथ्वी द्वारा वापस भेजे जाने वाले लंबे विकिरण को अंतरिक्ष में जाने से रोकता है। बाहर जाने वाले इस लंबे अवरक्त विकिरण को ग्रीनहाऊस गैस द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है जो कि वायुमंडल में साधारण रूप में मौजूद रहती हैं। वायुमंडल पुनः इसके कुछ भाग क

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इजराइल : जल अनैतिकता और अन्याय ही विस्थापन, विश्वयुद्ध को बुला रहा है
अनैतिकता और अन्याय करके जल प्रसिद्धि प्राप्त करने वाला देश इजराइल है। इसने जॉर्डन नदी के जल पर, जॉर्डन देश के साथ जल समझौता तो 26 फरवरी 2015 को किया है। इससे पहले तो अपने पड़ोसी देशों के जल पर कब्जा किए ही था। उसी में कुछ फेर-बदल करके अभी दबाव का समझौता जॉर्डन से कर लिया है। फिलिस्तीन अब भी इजराइल से ही जल खरीद कर जीता है। फिलिस्तीनी इसके डर से लाचार-बेकार बनकर अपना देश छोड़ने हेतु मजबूर हैं। जॉर्डन और फिलिस्तीन के विस्थापन का मूल कारण इजराइल की तकनीक है। यह इसे दुनिया को बेचकर पैसे वाला बन गया और फिर पड़ोसी देशों की जॉर्डन नदी के जल पर ही पूरा कब्जा करके दुनिया में अपने आप पानीदार बन गया। जॉर्डन और फिलिस्तीन को बेपानी बनाकर उन्हीं का जल अपने मनमाने भाव पर बेचकर पैसे वाला भी बना है। पैसा और प्रसिद्धि भी पा ली है। यह सब अनैतिक तकनीक से मिली है। इसकी अनैतिकता ने स्वयं को स्वयंभू बना लिया है। पड़ोसियों को उजाड़ दिया है। Posted on 25 Jan, 2023 12:13 PM

अनैतिकता और अन्याय करके जल प्रसिद्धिऔर पैसा प्राप्त करने वाला देश इजराइल है। इसने जॉर्डन नदी के जल पर, जॉर्डन देश के साथ जल समझौता तो 26 फरवरी 2015 को किया है। इससे पहले तो अपने पड़ोसी देशों के जल पर कब्जा किए ही था। उसी में कुछ फेर-बदल करके अभी दबाव का समझौता जॉर्डन से कर लिया है। फिलिस्तीन अब भी इजराइल से ही जल खरीद कर जीता है। फिलिस्तीनी इसके डर से लाचार-बेकार बनकर अपना देश छोड़ने हेतु मजबूर

स्वाल यात्रा
विस्थापन व युद्ध से बचाव हेतु विश्वशांति जलयात्रा : चीन
भारत अपनी प्रकृति रक्षा की आस्था से शांति कायम करने की दिशा पकड़ सकता है। लेकिन वर्तमान में इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जिस अच्छे संस्कार हेतु हम दुनिया में जाने जाते थे, उन्हें अब अपना नहीं रहे हैं। चीन अपनी पूंजी बढ़ाने वाला देश व दुनिया का नेता बनना चाहता है। इसलिए यहां का भौतिक विकास बहुत तेजी से बढ़ा है। इससे यहां का प्राकृतिक विनाश बहुत हुआ है। परिणामस्वरूप इसी देश से कोविड-19 महामारी फैलनी शुरू हुई है। यहीं से वर्ष 2002 में भी ऐसे ही वायरस ने कनाडा, अमेरिका आदि देशों में कहर मचाया था।
चीन अतिक्रमणकारी राष्ट्र है। अफ्रीका-मध्य-पश्चिम-एशिया के बहुत से देशों के भू-जल भंडारों पर जल समझौता के तहत या लीज लेकर अपने जल बाजार हेतु कब्जा कर रहा है। इस देश ने भविष्य में जल व्यापार की नीति बनाकर, जल को तेल और सोने की तरह पूंजी मानकर सुरक्षित-संरक्षित कर लिया है।
ब्रह्मपुत्र नदी
भारत में आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की कई सहायक एवं उप-नदियों पर बांध बनाकर जल के बड़े भंडार बना लिए हैं। इन भंडारों को युद्ध और व्यापार व उद्योगों में काम लेने का पूरा मन बना लिया है। भारत के लिए ये हाईड्रोजन बम की तरह उपयोग किये जा सकते हैं।
विकास और पूंजी का लालची राष्ट्र दुनिया का सामरिक, व्यापारिक, आर्थिक सभी रूप में अगुवा बनने की चाह रखता है। इसीलिए वायरस की महामारी पैदा कर रहा है। यह विकास मॉडल अच्छा और टिकाऊ नहीं है। फिर भी भारत जैसे विकासशील देश विकसित बनने हेतु चीन विकास, मॉडल को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
खैर मैंने भी भारत से अपनी यात्रा अपने पड़ोसी देश चीन से ही आरंभ की। कोविड-19 के कारण शांति केवल ऊपर से दिखाई देती है। यह एक विशेष महामारी का भय है। जीने की चाह हेतु जलवायु को स्वस्थ रखना जब समझ आयेगा, तभी से ग्रस्त इंसान भी लड़ने की तैयारी कर लेगा। यही क्षण “मरता सब कुछ करता” बना देता है। यही शोषित और शोषक के बीच युद्ध करवाता है। तीसरा विश्वयुद्ध इसीलिए शुरू होगा। इससे बचने की पहल भारत ने ही शुरू की है। यह विश्वयुद्ध अभी तक के युद्धों से बिल्कुल भिन्‍न है। इसलिए इसे रोकने हेतु छोटी-छोटी पहल करने की जरूरत है।
मैं, 9 अप्रैल 2015 को ही डॉ. एसएन सुब्बाराव तथा देश भर के गांधीवादी और विविध सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गांधी शांति प्रतिष्ठान में विश्व शांति के लिए जल हेतु सद्भावना बनाने के विषय पर बातचीत करके शंघाई-चीन हेतु प्रस्थान किया।
अगले दिन प्रातः 8 बजे शंघाई पहुंचे। यहां साउथ-नॉर्थ नदी के अनुभवों को जानने के लिए कुछ लोगों से बातचीत करके शंघाई शहर में घूमे। इस शहर को देखकर लगा कि, यहां किसी को प्रकृति की चिंता नहीं है। साझे भविष्य को लेकर लोगों में चिन्तन दिखाई नहीं दिया। सिर्फ व सिर्फ पूंजी के लिए काम होता है। लाभ की विश्व प्रतियोगिता में सबसे आगे निकलकर विश्व नेता बनने का ही इनका लक्ष्य है।
अब सब जगह साम्यवादी और पूंजीवादी ही दिखाई देते हैं। समाजवाद अर्थात साझी सुरक्षा, जिसे भारतीय भाषा में शुभ कहते हैं; पहले उसके लिए ही काम करते थे।
पहले सभी की भलाई हेतु विचारते और काम करते थे, अब इनके जीवन में साझी सुरक्षा की चिंता नहीं है। अब केवल लाभ प्रतियोगिता के जाल में फंसे हुए हैं।
लाभ कमाने में चीन दुनिया में सबसे आगे निकलना चाहता है। अब चीन पूरी दुनिया के भू-जल भंडार खरीद रहा है। जमीन खरीद रहा है। यह भौतिक जगत में रावण की तरह चीन को "सोने की लंका” बनाने के स्वप्न देख रहा है। कोरोना वायरस ने इसकी पोल खोल दी है। अब सारी दुनिया इसके रावणीय काम के लिए थू-थू कर रही है।
एयरपोर्ट पर उतरते हुए लॉन व पार्कों में केवल सरसों के फूल दिखाई दिये। जब हमने यह पूछा कि, यहां इसको ही क्यों पैदा करते हैं, तो कहा कि ये देखने में सुन्दर लगते हैं और इसके तेल का भी उपयोग करते हैं। यहां हर वस्तु के उत्पादन में केवल लाभ की ही गणना करते हैं। इसलिए यहां सभी काम केवल लाभ के लिए होते हैं। मैंने यह बात कई लोगों से सुनी।
यहां का विकास दुनिया के दूसरे शहरों के विकास से थोड़ा अलग है। यहां के नदी-नालों में सफाई दिखती है! लेकिन वातावरण में सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। ये प्राकृतिक सौंदर्य में भी केवल कमाई ही देखते हैं। यहां के औद्योगिक क्षेत्रों में हरियाली दिखाई देती है। देखने में भोजन और पीने में पानी स्वादिष्ट ही लगा। यहां की महिलाएं अंग्रेजी में बात करती हैं और पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी ज्यादा घमंडी होती हैं, यहां के पुरुष अपेक्षाकृत विनम्र हैं।
आज का पूरा दिन शंघाई के होटल में मैनेजर, कार्यकर्ताओं व शहर बाजार व विकास में लगे इंजीनियरों के साथ बातचीत करने में ही बीता। यदि संक्षेप में कहें तो यहां प्रकृति के प्रति कोई आस्था या पर्यावरण के रक्षण का विचार दिखाई नहीं दिया। ये दुनिया में जलवायु परिवर्तन संकट पैदा करके स्वयं भी नहीं बचेंगे। इन्होंने कोविड-19 में भी दुनिया के अर्थतंत्र को बिगाड़ने वाली लॉकडाउन की दिखावटी चाल चली है।
Posted on 24 Jan, 2023 08:41 AM

भारत अपनी प्रकृति रक्षा की आस्था से शांति कायम करने की दिशा पकड़ सकता है। लेकिन वर्तमान में इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जिस अच्छे संस्कार हेतु हम दुनिया में जाने जाते थे, उन्हें अब अपना नहीं रहे हैं। चीन अपनी पूंजी बढ़ाने वाला देश व दुनिया का नेता बनना चाहता है। इसलिए यहां का भौतिक विकास बहुत तेजी से बढ़ा है। इससे यहां का प्राकृतिक विनाश बहुत हुआ है। परिणामस्वरूप इसी देश स

राजेन्द्र सिंह की स्वाल नदी यात्रा
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पुराने बिजली संयंत्र बंद किए जाएं
Posted on 10 May, 2022 11:24 AM

जब दुनिया के देश जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) द्वारा आयोजित 26वें सम्मेलन में जलवायु कार्रवाई पर अपने–अपने रुख पर चर्चा करने और विचार–विमर्श करने की दिशा में बढ़ रहे हैं‚ तो इस बीच विकासशील देशों में तीखी बहस चल रही है कि वे कोयले पर अपनी निर्भरता कैसे कम कर सकते हैं क्योंकि अक्षत ऊर्जा को अपनाने की दिशा में समर्पित प्रयास आगे बढ़े हैं। कॉप 26 के

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