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पर्यावरण के अनुकूल हैं जैविक-शौचालय
Posted on 11 Sep, 2008 03:05 PM

टोक्यो/ गंदे और बदबूदार सार्वजनिक शौचालयों से निजात दिलाने के लिए जापान की एक गैर सरकारी संस्था ने ‘जैविक-शौचालय’ विकसित करने में सफलता हासिल की है। ये खास किस्म के शौचालय गंध-रहित तो हैं ही, साथ ही पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। समाचार एजेंसी ‘डीपीए’ के अनुसार संस्था द्वारा विकसित किए गए जैविक-शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं को सक्रिय करते हैं जो मल इत्यादि को सड़ने में मदद करते हैं।

जैविक-शौचालय
मानव मल से बना अनोखा दरवाजा
Posted on 11 Sep, 2008 02:57 PM

वार्ता/ नई दिल्ली। मानव मल से बनाए गए कम से कम 21 दरवाजे लीजन आर्ट गैलरी में पिछले दिनों प्रदर्शनी के लिए रखे गए। गैर सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विसेज ऑर्गेनाइजेशन के शोधकर्मियों के प्रयास से यह विशेष दरवाजे बनाए गए हैं।

सुलभ के शोधकर्ताओं ने मानव मल के शोधन से प्राप्त अपशिष्ट पदार्थ से दरवाजे और खिड़कियों के पल्ले तैयार किए हैं।

जहरीला हुआ पंजाब का पानी
Posted on 07 Sep, 2008 01:12 AM

जी क्राइम/जालंधर/पंजाब। कहते हैं 'जल ही जीवन है', लेकिन पंजाब में अब यही बात हम दावे के साथ नहीं कह सकते, क्योंकि पंज दरियाओं की इस धरती का पानी अब इतना जहरीला हो चुका है कि अगर अब भी हम न चेते तो यह जीवन देने की बजाय, जीवन ले लेगा। इसका कारण है पानी में बढ़ता केमिकल। मालवा के पानी में तो केमिकल पहले ही काफी मात्रा में मिल चुका है और अब दोआबा व माझा में भ

water pollution
भारत के पर्वतीय जल स्रोतों (स्प्रिंग्स) की स्थिति और इनके सतत प्रबंधन हेतु जल शक्ति मंत्रालय के प्रयास (भाग 2)
स्प्रिंग का स्थानीय लोग कई नामों से जानते हैं। हिकुर, सदांग, उह, निजारा, जूरी, पनिहार, नाडु, बावड़ी, चश्मा, नाग, बावली, जलधारा, ओट वेल्लम, नौला (कुमाऊं क्षेत्र में), और धारा, पनेरा (गढ़वाल क्षेत्र में) ये सब नाम स्प्रिंग के ही हैं।

Posted on 21 Jul, 2024 06:16 PM

(पिछले से आगे)

शैलेन्द्र पटेल, बावधन नौले-धारे के पास, पुणे (फोटो स्रोत: तुषार सरोदे)
तालाब या इंफिल्ट्रेशन टैंक पर कृत्रिम वर्षाजल रिचार्ज संरचनाओं की सहायता से नदियों का पुनरुद्धार ; एक केस स्टडी
तालाब, झील, पोखर, आहर, नाहर, खाव, चाल-खाल, गड्ढे ये सभी भूजल के पुनर्भरण का जरिया हैं। तालाब को पृथ्वी का रोम कूप भी कहते हैं। नदियों के किनारों के एक बड़े कैचमेंट के इन परम्परागत जलस्रोतों के पुनर्जीवन से कोई नदी भी जिंदा हो सकती है? एक केस स्टडी बहुत कुछ कहती है -  Posted on 18 Jul, 2024 09:27 PM

1(अ) * तालाब/ पोखर या इंफिल्ट्रेशन टैंक और उसमें कृत्रिम वर्षाजल रिचार्ज संरचनाओं ( Structures) का निर्माण कर नदियों के पुनरुद्धार को बढ़ाया जा सकता है। इन संरचनाओं का निर्माण तालाब / पोखर को खुदाई कर बनाते हैं और उसकी जल ग्रहण क्षमता अनुसार एक या एक से अधिक बोर वेल / ट्यूबवेल तालाब की तलहटी से कुछ ऊपर स्थापित करते हैं,  जिनसे जमीन से भूजल निकालते नहीं बल्कि सतही वर्षा

पहचानिए
तैरती खेती : जलवायु संकट से प्रभावित भूमिहीन समुदायों की आजीविका के लिए जलमग्न भूमि का उपयोग
नदी मार्ग में गाद का जमाव जल निकासी को अवरुद्ध करता है, जिससे स्थायी जल भराव की समस्या (4000 हेक्टेयर/प्रति वर्ष) लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक पानी के साथ जीने के अलावा अन्य विकल्प नहीं है। अतः बांग्लादेश के दक्षिण मध्य जिलोंः बरिशाल, गोपालगंज, मदारीपुर, सतखीरा और पिरोजपुर के किसानों ने, अपने पुरखों से विरासत में मिली सदियों पुरानी, मृदा-रहित, स्थिर, उथले पानी पर तैरती खेती/कृषि (फ्लोटिंग एग्रीकल्चर), की बाढ अनुकूलित ऐतिहासिक प्रणाली को पुनर्जीवित किया है, जो कि इसी आर्द्रभूमि इलाके में लगभग 250 साल पहले विकसित हुई थी। इन तैरते खेतों की जरूरत अब लगभग पूरे साल ही रहती है। तैरती क्यारियों के रूप में प्राप्त 40% अतिरिक्त कृषि योग्य भूमि, भूमिहीन किसान के लिए आय के अवसर पैदा करती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, इस पारंपरिक कृषि तकनीक पर भरोसा कर बांग्लादेशी किसान तैरती क्यारी के प्रति 100 वर्ग मीटर से S (डॉलर) 40/₹3280 का औसत लाभ कमाते हैं। Posted on 19 Jun, 2024 08:09 PM

बदलती "वैश्विक जलवायु" का प्रतिकूल प्रभाव हमारे जन-जीवन, पर्यावरण और कृषि व्यवसाय पर "जलवायु संकट" यानी घातक प्राकृतिक आपदाओं (तूफान, भारी वर्षा व हिमपात, बाढ़, सूखा और हिमस्खलन आदि) की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता के रुप में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बाढ़ का मुख्य कारण, वैश्विक ऊष्मन है, जिससे गर्म हवा, अधिक जल वाष्प धारण कर सकती है। परिणामस्वरूप कम समय में भारी वर्षा हो रही है, जिससे मृदा क्षरण व

तैरते खेत (फोटो साभार - netzfrauen.org)
भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में भूजल लवणताः एक महत्वपूर्ण मूल्यांकन
भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों द्वारा बढ़ी गई भूजल में लवणता की मात्रा ज्यादा होती है। जो उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालती है। Posted on 19 Jun, 2024 01:56 PM

परिचय

भूजल में लवणता भूमि की गुणवत्ता खराब कर रही है।  साभार- eos.com
भारत में आर्द्रभूमि क्षेत्रों की स्थिति, पुनरुद्धार एवं पुनर्स्थापन
पृथ्वी पर स्थित भूमि का वह क्षेत्र जहां भू-जल स्तर सामान्यतः या तो भूमि-सतह के बराबर होता है. अथवा भूमि उथले जल से आच्छादित होती है, आर्द्रभूमि (Wetlands) कहलाती है। जानिए विस्तार से Posted on 19 Jun, 2024 06:58 AM

पृथ्वी पर स्थित भूमि का वह क्षेत्र जहां भू-जल स्तर सामान्यतः या तो भूमि-सतह के बराबर होता है.

भारत में आर्द्रभूमियाँ
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