पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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भुआणा का तालाब गीत
Posted on 25 Feb, 2010 06:10 PM आठ सौ वो फावड़ा रे राजा नव सौ कुदाली चलS
म्हारी टोपली को अंत न पार
आठ सो वो फावड़ा रे राजा नव सौ कुदाली चलS
म्हारी टोपली को अंत न पार

खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
पर कंई को पानी को सो अंश नी
खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
नहीं निकलयो पानी को तुषार
खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
पर कंई को पानी को सो अंश नी
बैगा जनजाति में वर्षा गीत
Posted on 25 Feb, 2010 05:16 PM झिरामिट झिरामिट पानी बरसय रे,
खेरो अक दूबीहरि आवय रे

कोन तोरे धारय इजोली रे बीजोली कोन तोरे सीचाथय पानी।
भुमिया तोरे धारय इजोली रे बिजोली अहरा टूरा सीचाथय पानी।

लोकगीतों में वर्षा
Posted on 25 Feb, 2010 04:48 PM ग्रीष्म के प्रचंड आतप से झुलसती धरा पावसी झड़ी से उल्लसित हो उठती है। गगन में घहराते बादल उमड़-घुमड़ जब झूम-झूम बरसने लगते हैं तो बड़े सुहावने लगते हैं और वनस्पतियों की सृष्टि के कारण बनते हैं। शीतल बयार के झोंके तन-मन को आह्लादित कर जाते हैं। पर्वत, खेत-खलिहान, मैदान जहाँ तक दृष्टि जाती है, प्रकृति धानी परिधान में सुसज्जित दिखाई पड़ती है। नदी-नाले उमड़ पड़ते हैं। ऐसे मनभावने, सुखद-सुहावने, मौसम म
केमिकल न डाल दें होली के रंग में भंग
Posted on 25 Feb, 2010 11:53 AM रंगों के त्योहार होली पर जमकर धमाल करें, पर कलर में मिले केमिकल से रहें सावधान। दिल्ली के ज्यादातर बड़े बाजारों में मिलने वाले फेस्टिव कलर्स में गाढ़े केमिकल कलर के ऑप्शन में सिर्फ चाइनीज रंग-गुलाल ही मौजूद हैं, जिनमें टॉक्सिक की मात्रा होती है।
स्वयं अपने घर पर प्राकृतिक रंग बनायें
Posted on 25 Feb, 2010 11:40 AM होली रंगों का त्योहार है जितने अधिक से अधिक रंग उतना ही आनन्द, लेकिन इस आनन्द को दोगुना भी किया जा सकता है प्राकृतिक रंगों से खेलकर, पर्यावरण मित्र रंगों के उपयोग द्वारा भी होली खेली जा सकती है और यह रंग घर पर ही बनाना एकदम आसान भी है। इन प्राकृतिक रंगों के उपयोग से न सिर्फ़ आपकी त्वचा को कोई खतरा नहीं होगा, परन्तु रासायनिक रंगों के इस्तेमाल न करने से कई प्रकार की बीमारियों से भी बचाव होता है।
वराहमिहिर का उदकार्गल (भाग 3)
Posted on 23 Feb, 2010 05:50 PM स्निग्धा यतः पादपगुल्मवल्लयो निश्छिद्रपत्राश्च ततः शिरास्ति।
पद्मेक्षुरोशीरकुलाः संगुड्राः काशाः कुशा वा नलिका नलो वा।।।100।।

खर्जूरजम्ब्वर्जुनवेतसाः स्युः क्षीरान्विता का द्रुमगुल्मवल्ल्यः।
छत्रेभनागाः शतपत्रनीपाःस्युर्नक्तमालाश्च ससिन्दुवाराः।।101।।

विभीतको वा मदयन्तिका वा यत्राSस्ति तस्मिन् पुरुषत्रयेSम्भः।
वराहमिहिर का उदकार्गल (भाग 2)
Posted on 23 Feb, 2010 05:31 PM अतृणे सतृणा यस्मिन् सतृणे तृणवर्जिता मही यत्र।
तस्मिन शिरा प्रदष्ठि वक्तव्यं वा धनं तस्मिन्।।52।।

तृणहीन स्थान पर कोई तृणयुक्त स्थान हो या वहाँ सब दूर घास हो पर एक स्थान पर हरी घास न हो तो वहाँ साढ़े चार पुरुष नीचे शिरा होती है। या गड़ा धन होता है।(52)

कण्टक्यकण्टकानां व्यत्यासेSम्भस्त्रिभिः करैः पश्चात्।
विन्ध्याचल
Posted on 22 Feb, 2010 10:44 AM

विन्ध्य का पठार- मालवा पठार के उत्तर में तथा बुन्देलखण्ड पठार के दक्षिण में विन्ध्य का पठारी प्रदेश स्थित है। इस प्रदेश के अन्तर्गत प्राकृतिक रूप से रीवा, सतना, पन्ना, दमोह, सागर जिले के कुछ हिस्से शामिल हैं। इसका कुल क्षेत्रफल 31,954 किलोमीटर है। विन्ध्य शैल समूह के मध्य (आधा महाकल्प) आर्कियन युग की ग्रेनाइट का प्रदेश टीकमगढ़, पश्चिमी छतरपुर, पूर्वी शिवपुरी और दतिया में पड़ता है।

जामनेर
Posted on 22 Feb, 2010 10:39 AM

इस नदी का प्राचीन पौराणिक नाम जाम्बुला है। यह बेतवा की सहायक नदी है। जामनेर की सहायक नदी यमदृष्टा है। जो आजकल जमड़ार नाम से जानी जाती है। जमड़ार नदी टीकमगढ़ से 6 किलोमीटर दूरी पर स्थित कुण्डेश्वर शिवतीर्थ से गुजरती है। कुण्डेश्वर इस क्षेत्र की आस्था का केन्द्र है जो समुद्र तल से 1255 फुट की ऊँचाई पर स्थित ‘शिवपुरी’ नाम से भी जाना जाता है।

टोंस
Posted on 22 Feb, 2010 10:35 AM

टोंस का मैकल की पहाड़ियों तमसा कुण्ड से उद्गम हुआ है। इस नदी को टमस या तमसा भी कहते हैं। छत्रसाल के जमाने की बुन्देलखण्ड की पूर्वी सीमा टोंस नदी बनाती थी। इतना ही नहीं उनके शासित बुन्देलखण्ड की चारों दिशाओं की सीमायें प्राकृतिक रूप से चार नदियाँ ही निर्मित करती थीं। विन्ध्याचल का पूर्वी भाग कैमूर पर्वत श्रेणी है जो मिर्जापुर तक विस्तारित है। यह पर्वत श्रृंखला सोन और टोंस नदियों को एक दूसरे से अ

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