भुआणा का तालाब गीत

आठ सौ वो फावड़ा रे राजा नव सौ कुदाली चलS
म्हारी टोपली को अंत न पार
आठ सो वो फावड़ा रे राजा नव सौ कुदाली चलS
म्हारी टोपली को अंत न पार

खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
पर कंई को पानी को सो अंश नी
खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
नहीं निकलयो पानी को तुषार
खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
पर कंई को पानी को सो अंश नी
खोदता जो खोदता रे राजा बारह बरस हुया
नहीं निकलयो पानी की तुषार
आधी से रात खSरे राजा खS सपनों सो दियो
मखSदेव बऊ बेटा रे
टूटली सी खाटली रे राजा काटलो सो बोदंरो
राजो आयो कचहरी का माय
आधी सी रातS खsरे राजा खS सपनों सो दियो
मखS देव बऊ बेटा रे
टूटली सी खाटली रे राजा काटलो सो बोंदरो
राजो आयो कचहरी का माय
आधी सी रातS खsरे राजा खS सपनों सो दियो
मखS देव बऊ बेटा रे

टूटली सी खाटली रे राजा काटलो सो बोंदरो
राजो आयो कचहरी का माय
घर मS सS राजा की राणी बोलS
आज म्हारा साहेब अनमना जी
काई जो कऊं ओ राणी बोल
आज म्हारा साहेब अनमना जी
काई जो कहूँ ओ राणी मनणा की बात
कऊं तो कही नी जाये
घर मS सS राजा की राणी बोलS
आज म्हारा साहेब अनमना जी
काई जो कऊं ओ राणी बोल
आज म्हारा साहेब अनमना जी
काई जो कहूँ ओ राणी मनणा की बात
कऊं तो कही नी जाये

आधी सी रात खS वो तिरिया तलाब सपनों सो दियो
तलाब मांगS बऊ बेटा रे
पटेल भीं बांझलो रे राजा पटवारी बांझलो
गाँव को राजो जन्म सS बांझलो
एतरी जो सुणी खSरे राजो कचहरी मS गयो
काई कचहरी मS गयो
आधी सी रात खS वो तिरिया तालाब सपनों सो दियो
तालाब मांगS बऊ बेटा रे
पटेल भी बांझलो रे राजा पटवारी बांझलो
गाँव को राजो जन्म सS बांझलो
एतरी जो सुणी खSरे राजो कचहरी मS गयो
काई कचहरी मS गयो हुकुम चालवSरे कचहरी का मामजी
जाजे ना जाजे कचेरी का थाणां रे दार हवल रे दार
जाजे छड़ीदार का दुआर
हुकुम चलावSरे कचहरी का मामजी
जाजे ना जाजे कचहेरी का थाणां रे दार हवल रे दार
जाजे छड़ीदार का दुआर
अंगणा मSतो छड़ीदार ठाड़ो रे हुयो
काई ठाड़ो रे हुयो
करी थाणांदार सS सलाम रे जी
अगणां मS ठाड़यो रे छड़ीदार सलाम रे करS
थानांदार नS कई छड़ीदार कS कचेरी बुलाव
चलजे न चलजे रे गाँव का छड़ी रे दार
अंगणा मSतो छड़ीदार ठाड़ो रे हुयो
काई ठाड़ो रे हुयो
करी थाणांदार सS सलाम रे जी
अगणां मS ठाड़यो रे छड़ीदार सलाम रे करS
थानांदार नS कई छड़ीदार कS कचेरी बुलाव
चलजे न चलजे रे गाँव का छड़ी रे दार
गाँव का सुबेरे दार

राजो बुलावS रे कचेरी का माय जी
एतरी जो सुणी नS काम्बल धरी
हाथ मS धरी लकड़ी पॉव मS छड़ीदार नS
कावड़ी सी पेरी
गॉव का सुबेरे दार
राजो बुलावS रे कचेरी का माय जी
एतरी जो सुणी नS काम्बल धरी
हाथ मS धरी लकड़ी पॉव मS छड़ीदार नS
कावड़ी सी पेरी
हुई गयो थाणादार का आगS
रसता रे रसता थाड़ादार बारह बरस हुया
कई बारह बरस हुया
कभी नS बुलायो रे कचेरी का माय जी
डरतो जो चमकतो रे छड़ीदार कचेरी मS गयो
हुई गयो थाणादार का आगS
रसता रे रसता थाड़ादार बारह बरस हुया
कई बारह बरस हुया
कभी नS बुलायो रे कचेरी का माय जी
डरतो जो चमकतो रे छड़ीदार कचेरी मS गयो
अर हाथ जोड़ी नS सामS खड़यो
डरतो जो चमकतो रे चमकतो रे घड़ीदार कचेरी मS गयो
ठाड़यो छे राजा का द्वार
रसता जो रसता राजा बारा बरस हुया
कई बारा बरस हुया
कभी न बुलायो कचहरी का माय

अपनी जो गादी खS राजा नS छोड़ी रे दी
कई छोड़ी रे दी राजा सS मिलनS लाग्यो
गादी छोड़ी खS राजो खडों रे हुयो
रसता जो रसता राजा बारा बरस हुया
कई बारा बरस हुया
कभी न बुलायो कचहरी का माय
अपनी जो गादी खS राजा नS छोड़ी रे दी
कई छोड़ी रे दी राजा सS मिलनS लाग्यो
गादी छोड़ी खS राजो खड़ों रे हुयो
कई खड़ों रे हुयो
राजो मिलS रे घड़ी का माय
छड़ीदार नS सोची रे अपणां जो मन मS
आज म्हारो राजो म्हारा संग आयो
छड़ीदार कयणां लाग्यो रे राजा खS बोली आयो
तुमारा हुकुम पS मS ठाड़यो
कई खड़ो रे हुयो

राजो मिलS रे घड़ी का माय
छड़ीदार नS सोची रे अपणां जो मन मS
आज म्हारो राजो म्हारा संग आयो
छड़ीदार नS सोची रे अपणां जो मन मS
आज म्हारो राजो म्हारा संग आयो
छड़ीदार कयणां लाग्यो रे राजा खS बोली आयो
तुमरा हुकुम पS मS ठाड़यो
छड़ीदार पुछS रे राजा सS बोली रयो
तुमरा हुकुम पS मS ठाड़यो
सुणीलS छड़ीदार म्हारा मनणां की बात
म्हारा दिलणा की बात
म्हारो दुःख कटाव
फुरमाओ फुरमाओ रे गाँव का राजा रें फुरमाओ

तुमरा हुकुम सS ठाड़या
काई जो कऊँ रे छड़ीदार मनणां की बात
कऊँ तो कई नी जाय
छड़ीदार पूछS रे राजा सS बोली रयो
तुमरा हुकुम पS मS ठाड़यो
सुणी लS छड़ीदार म्हारा मनणां की बात
म्हारा दिलणा की बात
म्हारो दुःख कटाव
फुरमाओ फुरमाओ रे गाँव का राजा रे फुरमाओ
तुमरा हुकुम सS ठाड़या
काई जो कऊँ रे छड़दार मनणां की बात
कऊँ तो कई नी जाय
गाँव को पटेल भी बांझलो रे छड़ीदार पटवारी बांझलो
राजो थारो जनम को बांझ
आधि सी रात खS छड़ीदार तलाब नS सपनो सो दियो
तलाब माँगS बऊ बेटा रे
थोड़ी छुट्टी राजा मखS दई देओ रे
गाँव को पटेल भी बांजलो रे छड़ीदार पटवारी बांझलो
राजो थारो जनम को बांझ
आधि सी रात खS छड़ीदार तलाब नS सपनो सो दियो
तलाब माँगS बऊ बेटा रे
थोड़ी छुट्टी राजा मखS दई देओ रे



मSतो जऊँ अपणां घर रे
अपणां घर रे छड़ीदार आई रे गयो
बठी गयो राई आंगण मS
घर मS सS रे छड़ीदार तिरिया खS समझावS
राजो मांगS बऊ बेटा रे
सुणी लS रे छड़ीदार तू सुणी लS रे छड़ीदार
म्हारो तो एकई बेटो रे।
मSतो जऊँ अपणां घर रे

अपणां घर रे छड़ीदार आई रे गयो

बठी गयो राई आंगण मS
घर मS सS रे छड़ीदार तिरिया खS समझावS
राजो मांगS बऊ बेटा रे
सुणी लS रे छड़ीदार तू सुणी लS रे छड़ीदार
म्हारो तो एकई बेटो रे
राजा खS रे छड़ीदार पाछो रे कओ
म्हारो तो एकई कुँवर
घर मS सS रे छड़ीदार की बाला बऊ बोलS
कई बाला बऊ बोलS
सुसर म्हारा राजा खS हव कओ
घर मS सS रे छड़ीदार की बाला बऊ बोलS
कई बाला बऊ बोलS
राजा खS दे ओ सुसरा जी हुकुम
राजा खS रे छड़ीदार पाछो रे कओ
म्हारो तो एकई कुँवर
घर मS सS रे छड़ीदार की बाला बऊ बोलS
कई बाला बऊ बोलS
सुसर म्हारा राजा खS हव कओ
घर मS सS रे छड़ीदार की बाला बऊ बोलS
कई बाला बऊ बोलS
राजा खS दे ओ सुसरा जी हुकुम
सुणजो न सुणजे सुसर म्हारा बऊ अण की बात
कई बऊ अण की बात
लछीराम बाला बऊ देओ
सासू बोली रे बुऊअण खS बात तूनS कसो दियो जबाव
सासू बोली रे बऊअण खS कयणS लागी
सुणजे न सुणजे ओ सासू म्हारी गुणवंती नार
लछीराम बाला बऊ जलम्या तलाब का लेन
छड़ीदार गयो रे कचेरी का माय
सुणजे न सुणजे सुसर म्हारा बऊ अण की बात
कई बऊ अण की बात
लछीराम बाला बऊ देओ
सासू बोली रे बुऊअण खS तूनS कसो दियो जबाव
सासू बोली रे बऊअण खS कयणS लागी
सुणजे न सुणजे ओ सासू म्हारी गुणवंती नार
लछीराम बाला बऊ जलम्या तलाब का लेन
छड़ीदार गयो रे कचेरी का माय
सुणजे न सुणजे रे कचेरी का राजा रे परजा
लछीराम बाला बऊ देओ
कचेरी को राजो रे कांई आनंद हुयो
काई आनंद हुयो
झुरया रे नगरी का लोग
हुकुम चलायो रे राजा नS कचेरी
कांई कचेरी का माय
जाओ न जाओ नगरी का लोग
देश जो देश रे राजा नS खबरा रे भेजी
कोई खबरा जो भेजी
सुणजे न सुणजे रे कचेरी का राजा रे परजा
लछीराम बाला बऊ देओ

कचेरी को राजो रे कांई आनंद हुयो
काई आनंद हुयो
झुरया रे नगरी का लोग
हुकुम चलायो रे राजा नS कचेरी
कांई कचेरी का माय
जाओ न जाओ नगरी का लोग
देश जो देश रे राजा नS खबरा रे भेजी
कोई खबरा जो भेजी
गाँव जो गाँव का सोनी बुलाया
देश जो देश रे राजा नS खबरा रे भेजी कांई खबरा रे भेजी
गाँव जो गाँव का बजाजी बुलाया
देश जो देश रे राजा नS खबरा रे भेजी
कांई खबरा रे भेजी
गाँव जो गाँव का दरजी रे दाजी बुलाया
सुणजे रे सुणजो रे गाँव का सोनी रे सराती
कांई सोनी रे सराती
लछीराम बाला बऊ को गहणो बणाओ
गाँव जो गाँव का सोनी बुलाया
देश जो देश रे राजा नS खबरा रे भेजी कांई खबरा रे भेजी
गाँव जो गांव का बजाजी बुलाया
देश जो देश रे राजा नS खबरा रे भेजी
कांई खबरा रे भेजी
गाँव जो गाँव का दरजी रे दाजी बुलाया
सुणजे रे सुणजो रे गाँव का सोनी रे सराती
कांई सोनी रे सराती
लछीराम बाला बऊ को गहणो बणाओ
सुणजो न सुणजो रे गाँव का सराती रे सोनी
लछीराम बाला बऊ को गयणो बणाओ
सुणजो न सुणजो रे गाँव का बजाजी आजो
कांई गाँव का बजाजी आजा
लछीराम बाला बऊ का कपड़ा दS
सुणजो न सुणजो रे गाँव का दाजी रे दरजी
कांई दाजी रे दरजी
लछीराम बाला बऊ का बणाव
सुणजो न सुणजो रे नगरी का लोग हुण रे
कंई नगरी का लोग हुण रे
सुणजो न सुणजो रे गाँव का सराती रे सोनी
लछीराम बाला बऊ को गयणो बणाओ
सुणजो न सुणजो रे गाँव का बजाजी आजो
कांई गाँव का बजाजी आजा
लछीराम बाला बऊ का कपडा दS
सुणजो न सुणजो रे गाँव का दाजी रे दरजी
कांई दाजी रे दरजी
लछीराम बाला बऊ का बणाव

सुणजो न सुणजो रे नगरी का लोग हुण रे
कंई नगरी का लोग हुण रे
अपनी लछीराम बाला बऊ की पालकी घड़ाव
एतरी जो सुणी खSरे नगरी का लोग हुण खाली जोनSगया
लछीराम बाला बऊ की पालकी घड़ाव

दुनिया का रे तालाब भेला रे हुया
आई खड़या तलाब भेला रे हुया
सारो संसार को रे मानुष तलाब पS खड़या
लछीराम बाला बऊ खSपिराई दिया
सिंगारी दी हालम हाल
सारा जो कपड़ा रे लछीराम बाला बऊखS पिराई दिया
सिंगारी दिया हालम हाल
अपनी लछीराम बाला बऊ की पालकी घड़ाव
एतरी जो सुणी खSरे नगरी का लोग हुण खाली जोनS गया
लछीराम बाला बऊ की पालकी घड़ाव
दुनिया का रे तालाब भेला रे हुया
सारो संसार को रे मानुष तलाब पS खड़या
लछीराम बाला बऊखS पिराई दिया
सिंगारी दी हालम हाल
सारा जो कपड़ा रे लछीराम बाला बऊखS
पिराई दिया
सिंगारी दिया हालम हाल
खातीड़ा नSरे लछीराम बाला बऊ लेण पालकी रे लाया
कांई लछीराम बाला बऊ की डोली रे सजाई
जब परजा चालण लाग्या
सब रे परजा देखण लाग्या
लछीराम का मात पिता रावणS लाग्या
सारी रे परजा लछीराम खड देखण लाग्या
मात पिता रोवण लाग्या
चलता जो चलता रे लछीराम
बाला बऊ की डोली रे चली
कांई डोली रे उतारी

खातीड़ा नSरे लछीराम बाला बऊ लेण पालकी रे लाया
कांई लछीराम बाला बऊ की डोली रे सजाई
जब परजा चालण लाग्या
सब रे परजा देखण लाग्या
लछीराम का मात पिता रावणS लाग्या
सारी रे परजा लछीराम खड देखण लाग्या
मात पिता रोवण लाग्या
चलता जो चलता रे लछीराम
बाला बऊ की डोली रे चली
कांई डोली रे उतारी
जाई नS ओ उतारी तलाब की पाल
एतरी जो सुणी खS रे राजो खडो सो हुयो

हुकुम चलाव रे संसार
एतरी जो सुणी खS रे राजो खडो सो हुयो
कांई खड़ो सो हुयो
हुकुम चलाव रे संसार
एतरी जो सुणी खS रे राजो खडो सो हुयो
हुकुम फुरमाओ रे परजा का माय
अपणां जो लछीराम बाला बऊ नीचSरे उतरया
कांईSरे उतरया
जाई नS ओ उतारी तलाब की पाल
एतरी जो सुणी खS रे राजो खडो सो हुयो
हुकुम चलाव रे संसार
एतरी जो सुणी खSरे राजो खडो सो हुयो
कांई खड़ो सो हुयो
हुकुम चलाव रे संसार
एतरी जो सुणी खSरे राजो खडो सो हुयो
हुकुम फुरमाओ रे परजा का माय
अपणां जो लछीराम बाला बऊ नीचSरे उतरया
कांई नीचSरे उतरया
जाई ठाड़या जामीन का माय
पाणी की रे राजा लहर सी उठी
कांई लहर सी उठी
तलाब मSपाणी नी समायो
एतरी जो सुणी खS रे राजो देखण लाग्यो
कांई देखण लाग्यो
घड़ीदार खSदेऊँ रे नगरी को राज रे
जाई ठाड़या जामीन का माय
पाणी की रे राजा लहर सी उठी
कांई लहर सी उठी
तलाब मSपाणी नी समायो
एतरी जो सुणी खS रे राजो देखण लाग्यो
कांई देखण लाग्यो
घड़ीदार खSदेऊँ रे नगरी को राज रे

स्रोत व्यक्ति- मंहगी बाई शांता बाई गांव, कायागांव तह व जिला हरदा

भावानुवाद


आठ सो फावड़े और नौ सो कुदाली चल रही थी। लोग टोपली पर टोपली भर भर कर मिट्टी फेंकते जा रहे थे। पर इस खुदाई का कोई ओर-छोर नही था तालाब खोदते खोदते बारह बरस का समय गुजर गया पर पानी का कोई आसार नजर नहीं आ रहा था। यहाँ तक की आल (नमी) का अंश भी नहीं दिख रहा था। राजा चिंतित था। प्रजा चिंतित थी। सब टकटकी लगाये बैठे थे। रात दिन तालाब की खुदाई जारी थी आधीक सी (आधी के लगभग) रात को राजा को सपना दिखा। तालाब ने कहा कि मुझे बहू और बेटे के भेंट दो। राज्य में पानी के कारण मचे हाहाकार के कारण राजा बहुत दुखी था। शोक में डूबा राजा राजसी वैभव की सभी सुविधाएँ त्याग चुका था। वह एक टूटली सी (टूटी-फूटी या जर्जर) सी खटिया पर कटिले से बोंदरे (कटी-फटी-मोटी और भद्दी सी गुदड़ी) को बिछा कर सोया था। बेचैन राजा सपना देखते ही उठकर अपनी कचहरी में आ गया। घर के भीतर से राजा की रानी बोली कि आज इतनी रात गये मेरे साहब अनमने से क्यों हैं? राजा बोला रानी मन की बात क्या कहूँ? कैसे कहूँ? समझ नहीं आता। कहूँ तो कहते भी नहीं बन रहा है। बात यह है कि आधीक सी रात को तालाब ने मुझे सपना दिया और सपने में कहा कि मुझे बेटे और बहू की भेंट दो। तभी तालाब में पानी आ सकता है। मैं क्या करूँ? गाँव का पटेल भी बाँझ है। पटवारी भी बाँझ है। और गाँव का राजा तो जन्म जन्मानतर से पीढ़ी दर पीढ़ी बाँझ ही रहता आया है। इतनी बात कहकर बेचैन राजा वापस कचहरी में चला गया और। और उसने कचहरी के मुंशी को कहा कि गाँव के थानेदार को हुक्म दो कि वह गाँव के छड़ीदार को बुलाकर लाये। राजा के आदेश को सुनकर थानेदार गाँव के छड़ीदार के द्वार पर पहुंच गया। थानेदार को अपने आँगन में देखकर छड़ीदार झट से हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। थानेदार बोला कि राजा का हुक्म है तुम कचहरी चलो। आखिर तुम गाँव के सूबेदार भी हो। इतना सुनना था कि छड़ीदार ने कांधे पर अपनी कम्बल रखी। हाथ में अपनी लकड़ी ली और पाँव में कावड़ी (एक प्रकार के चमड़े के जूते) पहन ली और थानेदार के आगे-आगे चलने लगा।

रास्ते में चलते चलते बारह वर्ष गुजर गये। राजा का राज्य ही इतना बड़ा था। छड़ीदार सोचने लगा कि आज तक कभी भी राजा ने मुझे नहीं बुलाया। पता नहीं क्या बात है। उसके मन में कई तरह के विचार आने लगे। खैर डरता चमकता छड़ीदार आखिर कचहरी में पहुँचा। और हाथ जोड़कर राजा के सामने खड़ा हो गया। पल भर में उसको कपकपी उठने लगी कि बारह बरस में राजा ने कभी नहीं बुलाया, पता नहीं क्या होगा। इतने में ही छड़ीदार को सामने देख राजा अपनी गद्दी से उठकर खड़ा हो गया। और उसके पास आकर खड़ा हो गया। सब दरबारी और छड़ीदार इस अनहोनी को देख हक्के-बक्के हो गये। छड़ीदार सोचने लगा कि पता नहीं यह सच है या सपना कि आज मैं राजा के बराबर खड़ा हूँ। और मेरे जैसे अदने से आदमी को देखकर स्वयं राजा उठकर खड़ा हो गया है। फिर छड़ीदार राजा से कहने लगा बताइये हुकुम मेरे लायक क्या सेवा है? मैं आपके हुकुम पर यहाँ हाजिर हूँ। राजा कातर स्वर में बोल उठा भाई छड़ीदार आज मेरे दुख को तुम ही दूर कर सकते हो। कैसे कहूं अपने मन की बात। छड़ीदार कहने लगा नहीं राजा साहब आप तो फरमाईए। मैं आपकी सेवा में हाजिर हूं। जो भी बन सकेगा, करूंगा। राजा कहने लाग कि भाई कैसे कहूँ समस्या यह है कि कहते भी नहीं बनती पर कोशिश करके कहता हूँ-बात यह है कि गाँव का पटेल भी निःसंतान है। गाँव का पटवारी भी बाँझ है। और यह दुर्भाग्यशाली तुम्हारा राजा तो जन्म जन्मान्तर से बाँझ है। मुझे आधीक सी रात को तालाब ने सपना दिया है कि मुझे बहू और बेटे की भेंट दो तभी तालाब में पानी आ सकता है। अन्यथा नहीं। राजा की बात सुनकर छड़ीदार बोला राजा साहब मुझे थोड़ी छुट्टी दे दो। कुछ वक्त के बाद ही मैं कुछ बता सकूँगा। मुझे अपने घर जाने दो।

मन में सोचता विचारता छड़ीदार अपने घर आ पहुँचा। आकर वह घर के राय आँगन में बैठ गया। और घर में अपनी तिरिया को समझाने लगा कि राजा तालाब में भेंट देने के लिए बहू और बेटा माँग रहा है। इतनी बात सुनकर छड़ीदार की तिरिया भड़क उठी और तीखे तेवर में कहने लगी कि सुन छड़ीदार मेरा तो एक ही बेटा बहू है। मैं यह कदाचित नहीं होने दूँगी। तुम पीछ पाँव लौट जाओ और राजा को साफ-साफ मना कर दो। मेरा तो एक ही कुँवर है। घर मैं बैंठी बाला बहू इतने में बोल पड़ी, सुनो ससुर जी तुम राजा को जाकर हाँ कर दो। कह दो की छड़ीदार बेटे लछीराम और बहु को राज्य की प्रजा के हित में बलिदान करने को तैयार है। यह सुनकर सास कहने लगी कि मेरे होते हुए आखिर तूने जबाव कैसे दे दिया? तुझे शर्म नहीं आती? तुझे तो मैं बहुत गुण और शील से सम्पन्न समझती थी? सास की बात सुनकर बहू बोली कि आप समझना हमारा जन्म ही तालाब के लिए हुआ है। बहू के अटल प्रण को सुनकर छड़ीदार राजा के द्वार पहुँच गया। और कहने लगा कि सुनो राजा और प्रजा राज्य हित में लछीराम और उसकी पत्नी आत्मोत्सर्ग के लिए तैयार हैं। छड़ीदार की बात सुन राजा के दरबार में आनंद उत्सव शुरू हो गया। ऐसा आनंद उत्सव जो इसके पहले राज्य में कभी नहीं हुआ था। सारी नगरी के लोग उसमें आ जुटे। देश-देश के राजाओं को खबर भेजी गई। गाँव-गाँव के बजाजों को बुलाया गया। गाँव-गाँव से दरजियों को बुलाया गया। गाँव के सोनियों और सराफों को बुलाया गया। उन सबसे लछीराम और उसकी बहू के लिए वस्त्र और गहने खरीदे जाने लगे। पूरे नगर और राज्य में बस एक ही बात सबकी जुबान पर थी कि लछीराम और उसकी नवविवाहिता प्रजा के हित में तालाब में आत्मोत्सर्ग आखिर वह समय भी आ गया। लछीराम और उसकी नववधू को पालकी में बैठाकर सोलह सिंगार किया गया। उनके इस बलिदान की करुण घड़ी को देखने लोग तो लोग संसार भर को तालाब भी वहां आ गये। सारे संसार के लोग इस लोमहर्षक और करुण घड़ी को देखने तालाब के किनारे खड़े हो गये। राजा और प्रजा की ओर से लछीराम और उसकी नववधू को वस्त्र और गहने पहना दिया गया। इतने ज्यादा कि वे दिव्य हो उठे। खाती की बनाई हुई पालकी आगे आगे चलने लगी उसके पीछे प्रजा। सारी प्रजा इस हृदय विदारक घड़ी में रोने लगी। लछीराम के माता-पिता भी विलख विलख कर रोने लगे। आखिर डोली तालाब के करीब पहुँच ही गई। और डोली को तालाब की पाल पर उतार दिया गया। डोली और उसके पीछे चलती प्रजा का कोलाहल देख राजा उठकर खड़ा हो गया। और चारों दिशाओं और देवताओं की ओर देख कर इस कठिन घड़ी में बोला आप मुझे हुक्म दो। हे प्रजा जनों! आप इस बलिदान के लिए हुक्म दो। चारों ओर सन्नाटा छा गया। सब दिशाएँ मौन हो गई। राजा और प्रजा का धर्मसंकट समझ कर स्वयं लछीराम और उसकी पत्नी डोली से नीचे उतर गए। और जाकर जमीन पर खड़े हो गए। उनके तालाब में जाते ही पानी निकला की तालाब में नही समाया। राजा रोने लगा और कहने लगा कि अब मुझे यह राज्य नहीं चाहिए। यह राज्य मै आज से छड़ीदार को दे रहा हूँ। लोक मान्यता है कि उसके बाद हर पूनम की रात में लछीराम और उसकी नववधू के हाथ दिखते थे। किन्तु लालची लोगों ने उन हाथों को गहनों के लालच में काटना चाहा तब से वे हाथ दिखना बंद हो गए।

टिप्पणी-


कायागाँव हरदा जिले का एक छोटा सा गाँव है। यहाँ एक तालाब है जो काफी बड़ा हुआ करता था। अब इसका आकार अतिक्रमण के कारण सिमटता जा रहा है। मैंने बचपने में देखा था यह तालाब बहुत बड़ा था। इस तालाब में सिंगाड़े और कमल के फूल लगते थे। तालाब का वास्तविक क्षेत्रफल कितना था इस बात की जानकारी राजस्व रिकार्ड या ब्रिटिश दौर में हुए सेटलमेंट रिकार्ड में भी नहीं मिलती। तालाब की प्राचीनता को लेकर जहाँ तथाकथिl प्रामाणिक दस्तावेज मौन है वहीं लोक जीवन में इस तालाब को लेकर एक गाथा गाई जाती है। यह गाथा अनुसूचित जाति मानी जाने वाली जाति ‘बलाही’ अथवा ‘कतिया’ समाज की महिलाओं द्वारा गाई जाती रही है। किन्तु जैसी कि अब यह सामान्य सी बात हो चली है कि पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक निधि अगली पीढ़ी तक स्थानान्तरित नहीं हो रही है। इसके कारणों की विवेचना आज मेंरा आलोच्य विषय नहीं है।


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