Posted on 25 Mar, 2010 08:55 AM कलिजुग में दो भगत हैं, बैरागी औ ऊँट। वै तुलसी बन काटहीं, ये किये पीपर ठूँठ।।
भावार्थ- घाघ व्यंग्यात्मक रूप में कहते हैं कि कलियुग में दो ही भक्त हैं- एक बैरागी, दूसरा ऊँट। बैरागी तुलसी का वन काटता रहता है और ऊँट पीपल को ठूँठा करता रहता है।
Posted on 25 Mar, 2010 08:43 AM अधकचरी विद्या दहे राजा दहे अचेत। ओछे कुल तिरिया दहे दहे कलर का खेत।।
शब्दार्थ- कलर-कपास।
भावार्थ- यदि व्यक्ति पढ़ा लिखा हो पर अनुभवहीन हो, राजा असावधान हो, स्त्री नीच कुल की हो और खेत कपास का हो, तो यह सब दुख दायी हैं, व्यर्थ हैं। खेत में कपास बोने से खेत कमजोर हो जाता है।
Posted on 24 Mar, 2010 04:56 PM आपन-आपन सब कोउ होइ, दुख माँ नाहिं सँघाती कोइ। अन बहतर खातिर झगड़न्त, कहैं घाघ ई बिपत्ति क अन्त।।
भावार्थ- अपने-अपने के लिए हर कोई होता है लेकिन दुःख में कोई किसी का साथी नहीं होता। हर कोई अन्न वस्त्र के लिए झगड़ रहा है, इससे बढ़कर विपत्ति क्या हो सकती है, ऐसा घाघ का मानना है।