पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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कलिजुग में दो भगत हैं
Posted on 25 Mar, 2010 08:55 AM
कलिजुग में दो भगत हैं, बैरागी औ ऊँट।
वै तुलसी बन काटहीं, ये किये पीपर ठूँठ।।


भावार्थ- घाघ व्यंग्यात्मक रूप में कहते हैं कि कलियुग में दो ही भक्त हैं- एक बैरागी, दूसरा ऊँट। बैरागी तुलसी का वन काटता रहता है और ऊँट पीपल को ठूँठा करता रहता है।

कहै घाघ घाघिन से रोय
Posted on 25 Mar, 2010 08:51 AM
कहै घाघ घाघिन से रोय,
बहु संतान दरिद्री होय।


भावार्थ- घाघ घाघिनी से रोकर कहते हैं कि अधिक संतान वाला दरिद्र होता है क्योंकि वह अपनी संतानों पर उतना ध्यान नहीं दे पाता।

एक तो बसे सड़क के गाँव
Posted on 25 Mar, 2010 08:49 AM
एक तो बसे सड़क के गाँव। दूजे बड़े बड़ेन माँ नाँव।।
तीजे भये वित्त से हीन। घग्घा हम पर बिपदा तीन।।


भावार्थ- एक तो गाँव सड़क पर बसा हो, दूसरे बड़े बड़ों में नाम हो, तीसरे द्रव्य से रहित हो तो घाघ कहते हैं कि ये तीनों विपदायें हमारे ऊपर हैं।

उधार काढ़ि ब्यौहार चलावै छप्पर डारै तारो
Posted on 25 Mar, 2010 08:47 AM
उधार काढ़ि ब्यौहार चलावै छप्पर डारै तारो।
सारे के सँग बहिनी पठवै तीनिउ का मुँह कारो।।


शब्दार्थ- ब्यौहार-सूद पर रूपया उधार देना। तारो- ताला।

भावार्थ- उधार लेकर कर्ज देने वाला, छप्पर में ताला लगाने वाला और साले के साथ बहन भेजने वाला, घाघ कहते हैं इन तीनों का मुँह काला होता है।

ऊँच अटारी मधुर बतास
Posted on 25 Mar, 2010 08:45 AM
ऊँच अटारी मधुर बतास।
घाघ कहैं, घरही कैलास।


शब्दार्थ- अटारी-कोठा, छत। बतास-हवा।

भावार्थ- यदि ऊँची अटारी हो और हवा हलकी- हलकी चल रही हो, तो समझो वह घर नहीं कैलाश पर्वत है।

अधकचरी विद्या दहे राजा दहे अचेत
Posted on 25 Mar, 2010 08:43 AM
अधकचरी विद्या दहे राजा दहे अचेत।
ओछे कुल तिरिया दहे दहे कलर का खेत।।


शब्दार्थ- कलर-कपास।

भावार्थ- यदि व्यक्ति पढ़ा लिखा हो पर अनुभवहीन हो, राजा असावधान हो, स्त्री नीच कुल की हो और खेत कपास का हो, तो यह सब दुख दायी हैं, व्यर्थ हैं। खेत में कपास बोने से खेत कमजोर हो जाता है।

आठ गाँव का चौधरी बारह गाँव का राव
Posted on 25 Mar, 2010 08:41 AM
आठ गाँव का चौधरी बारह गाँव का राव।
अपने काम न आय तौ ऐसी-तैसी जाव।।


भावार्थ- यदि आठ गाँव का चौधरी और बारह गाँव का राव हो, फिर भी वक्त पड़ने पर काम न आये तो वह अपनी ऐसी-तैसी में जाए।

अम्बा नींबू बनिया गर दाबे रस देयँ
Posted on 24 Mar, 2010 04:59 PM
अम्बा नींबू बनिया गर दाबे रस देयँ।
कायथ कौवा करहटा मुर्दा हू सों लेयँ।।


भावार्थ- आम, नींबू और बनिया ये बिना दबाये रस नहीं देते और कायस्थ कौवा और किलहटा (एक पक्षी) ये मुर्दे से भी रस निकाल लेते हैं।

आपन-आपन सब कोउ होइ
Posted on 24 Mar, 2010 04:56 PM
आपन-आपन सब कोउ होइ, दुख माँ नाहिं सँघाती कोइ।
अन बहतर खातिर झगड़न्त, कहैं घाघ ई बिपत्ति क अन्त।।


भावार्थ- अपने-अपने के लिए हर कोई होता है लेकिन दुःख में कोई किसी का साथी नहीं होता। हर कोई अन्न वस्त्र के लिए झगड़ रहा है, इससे बढ़कर विपत्ति क्या हो सकती है, ऐसा घाघ का मानना है।

आलस नींद किसानै नासै चोरै नासै खाँसी
Posted on 24 Mar, 2010 04:52 PM
आलस नींद किसानै नासै चोरै नासै खाँसी।
अँखिया लीबर बेसवै नासै बाबै नासै दासी।।


शब्दार्थ- लीबर- कीचर।

भावार्थ- आलस्य और नींद किसान का, खाँसी चोर का, कीचर लगी मुचमुचाती आँख वेश्या का तथा दासी बाबा (साधु) का नाश करती है।

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