विदिशा जिला

Term Path Alias

/regions/vidisha-district

पर्यावरण और जल संरक्षण को धार देता कुल्हार
Posted on 01 Feb, 2016 03:14 PM

 

भोपाल-बीना रेल लाइन पर स्थित कुल्हार गाँव में इसकी शुरुआत सन 1983 में हुई जब तत्कालीन सरपंच वीरेंद्र मोहन शर्मा ने क्रमश: 14 हेक्टेयर, 26 हेक्टेयर, 05 हेक्टेयर और 10 हेक्टेयर शासकीय भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया और भूमि, जल एवं वन प्रबन्धन की आधुनिक सोच के साथ इस जमीन का विकास किया। यह काम पढ़ने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है हकीक़त में उतना ही मुश्किल था। दबंगों के कब्जे से अतिक्रमित भूमि को मुक्त कराना, गाँव वालों के उसके सार्वजनिक उपयोग के लिये समझाना तथा उससे जुड़े लाभों को उनके समक्ष पेश करना कतई आसान नहीं था।

विदिशा जिले के गंज बासोदा तहसील में पहुँचते-पहुँचते हमें पानी के संकट का अन्दाजा होने लगा था। आम लोगों से बातचीत में पता चला कि तहसील के 90 प्रतिशत बोरवेल विफल हो चुके हैं यानी उनमें पानी नहीं रहा, वहीं जलस्तर 300 फीट से भी नीचे जा चुका है। हमारी इस यात्रा का मकसद भी पानी और पर्यावरण से जुड़ा हुआ था लेकिन कहीं सकारात्मक अर्थों में।

गंज बासोदा तहसील का कुल्हार गाँव, ग्रामीण भारत के लिये स्थायी विकास का एक अनुकरणीय मॉडल पेश करता है। एक ऐसा मॉडल जिसमें ग्राम पंचायत, गाँववासियों, किसानों, पर्यावरण और जल सब एक दूसरे पर आश्रित हैं और एक दूसरे के काम आते हैं।

कुल्हार मॉडल के निर्माण का श्रेय जाता है गाँव के पूर्व सरपंच वीरेंद्र मोहन शर्मा को।

कहाँ गुम होते जा रहे हैं -हम
Posted on 03 Jan, 2016 11:42 AM

इस योजना का प्रमुख अंग था हिमालय के समानान्तर एक बड़ी नहर का निर्माण करके उसे मध्य देश और

कहाँ गुम होते जा रहे हैं ये तालाब
Posted on 03 Jan, 2016 11:22 AM

सचमुच, ये धरती माता, एक मटके के समान ही है, जिसमें से लगातार पानी उलीचा जा रहा है। हमारे

अटारी खेजड़ा का रास्ता
Posted on 03 Jan, 2016 10:42 AM

अटारी खेजड़ा गाँव के लोग पशुओं को पानी उपलब्ध कराने के मामले में निश्चिंत हैं। चालीस साल त

हैदरगढ़ - भूला हुआ सबक
Posted on 03 Jan, 2016 10:35 AM

इस सदी की शुरुआत में जब रियासतों के आपसी युद्ध कम हो गए और सुरक्षा का अहसास बढ़ गया तो नवा

पानी तो है पर कब तक
Posted on 02 Jan, 2016 04:05 PM

बारिश में जब सरकारी नलों से गन्दा और मटमैला पानी आता है, कुइयों का पानी साफ और निर्मल रहत

चन्द दिनों की ही जिन्दगी बाकी है
Posted on 02 Jan, 2016 04:01 PM

सन 1903 से 1916 के बीच तालाबों पर जो काम हुआ, उसमें मजदूरी ‘कुड़याब’ से दी जाती थी यानि मि

अब तो बस यादों में ही बचे हैं उदयपुर के तालाब
Posted on 02 Jan, 2016 03:56 PM

चन्द साल पहले पानी के लिये जब हाय-हाय शुरू हुई तो नल-जल योजना वालों ने केवटन नदी से पाइप

सिरोंज तालाब-कभी स्टेडियम तो कभी हेलीपैड
Posted on 02 Jan, 2016 11:40 AM

सिरोंज में जहाँ घर-घर खारे पानी के कुएँ हैं, तालाब किनारे और नदी पेटे के इन अमृत कुंडों न

×