श्योपुर जिला

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गर्मी में बहती है ठंडी बयार
Posted on 14 Apr, 2015 11:48 AM

पृथ्वी दिवस पर विशेष


अब तक लगाए 11 लाख पौधे, आसपास का बदल गया है पर्यावरण

 

 

मीणा के इस समर्पण की भाषा वन्य प्राणी भी समझने लगे हैं, तभी तो जब वे मोर को पुकारते हैं, तो वह उनके पास आकर दाना चुगने लगता है और हिरण और अन्य छोटे जानवर उनके पास कुलाँचे भरने में भयभीत नहीं होते। वृक्ष मित्र होने के नाते श्री मीणा लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे ज्यादा-से-ज्यादा पौधा लगाएँ और हाँ, जो लोग यह सोचते हैं कि पानी के अभाव में पौधा कैसे लगा सकते हैं, तो उन्हें वे सन्देश देते हैं कि एक पौधे को जीवित रखने के लिये बहुत ही कम पानी की जरूरत होती है, जिसे ड्रॉप तकनीक का उपयोग कर पौधारोपण किया जा सकता है।

राजस्थान की सीमा से लगे मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के एक छोटे से गाँव बांसोद में प्रवेश करते ही आसपास के इलाके से वहाँ कुछ अलग ही वातावरण मिलता है। मुख्य सड़क से गाँव को जोड़ने वाली सड़क के दोनों किनारे नीम, आम, जामुन, पीपल के बड़े-बड़े पेड़ और ठंडक का अहसास।

श्योपुर भले ही पालपुर कुनो नेशनल पार्क के सघन जंगल के कारण जाना जाता है, पर इसके कई इलाकों में सूखे जैसी स्थिति है। लेकिन इन सबसे हटकर बांसोद और उसके आसपास का इलाका हरियाली से ढँका हुआ है। यह किसी प्राकृतिक कारण से नहीं, बल्कि एक जुनूनी शख्सियत जयराम मीणा के कारण सम्भव हुआ है।

जयराम मीणा को आसपास के लोग वृक्ष मित्र के रूप में जानते हैं। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बड़ोदा विकासखण्ड से थोड़ा आगे से दाईं ओर मुड़कर 10 किलोमीटर चलने के बाद बांसोद आता है। इस बीच कहीं भी वृक्ष मित्र के बारे में पूछा जाए, कोई शख्स उनका पता बताने में असमर्थ नहीं दिखता है।

पानी की जुगाड़ में गुजर रही है आधी जिन्दगी
Posted on 31 Mar, 2015 12:43 PM

विश्व जल दिवस पर विशेष


एक हजार की आबादी और ढाई सौ परिवार वाले आमेठ में इन दिनों कोई चहल-पहल नहीं दिखती। बारिश के कुछ महीनों में बड़े और बच्चों की चहलकदमियों से गुलजार रहने वाले इस गाँव का जीवन अन्य महीनों में सूख जाता है।
भय फैलाते अभ्यारण्य
Posted on 04 Mar, 2013 11:36 AM सहरियाओं की दुर्गति यहीं समाप्त नहीं होती। राज्य ने अब कुनो के नजद
मध्यप्रदेश में कुपोषण
Posted on 01 Sep, 2011 04:39 PM

शारीरिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं कि वे 100 घनफीट की खुदाई का काम सात घंटे में कर सकें। जिस गर

इतनी सिमट गई है चंबल कि कर सकते हैं एक छलांग में पार
Posted on 28 Jul, 2011 01:31 PM

मध्यप्रदेश की सीमा में चंबल नदी को अब लांघकर पार किया जा सकता है। चंबल नदी की धार की चौड़ाई (लेट्रल डिस्ट्रीब्यूशन) 14 जगहों पर डेढ़-दो फीट ही रह गई है। जबकि बारिश के मौसम में इन्हीं स्पॉट पर चंबल 900 मीटर की चौड़ाई में बहती है। वन मंत्रालय के एक सर्वे में यह खुलासा हुआ है।

चंबल नदी
बीहड़ों में तब्‍दील होती उपजाऊ भूमि
Posted on 28 Jul, 2011 01:20 PM

कहने को तो भारत कृषि प्रधान देशों की श्रेणी में आता है, इसके बावजूद हम गेहूं से लेकर अन्य खाद्य पदार्थों का आयात करने पर मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे पास अन्न पैदा करने के लिए उपजाऊ भूमि और अन्य साधनों की कमी है। यहां तो 800 एकड़ कृषि योग्य भूमि ही बीहड़ों में तब्दील होकर बर्बाद हो रही है। मनुष्य धरती की संतान है, इसलिए मनुष्य सब कुछ पैदा कर सकता है, लेकिन धरती पैदा नहीं कर सकता है। दुनिया म

चंबल का उपजाऊ भूमि अब बंजर हो रहा है
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