सुपौल जिला

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दुधारी नदी का सुख-दुख
Posted on 15 Jan, 2017 02:05 PM
नदियों के साथ बरती गई नासमझी से रूबरू कराती कोसी के संग-संग हफ्ते भर की यात्रा
नदियाँ हमारे जीवन का दर्पण हैं। नदियों की तरह हमें भी तंग नजरिए से मुक्त होकर जीवन के प्रवाह को विस्तार देते रहना चाहिए

बाढ़ के नैहर में सूखे की मार
Posted on 10 Nov, 2015 03:29 PM उत्तर बिहार के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में सूखा बड़ी मारक होती है। वहाँ की महीन बालूई मिट्टी को पानी की अधिक जरूरत होती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में पानी को रोककर रखने की क्षमता कम होती है। इसलिये सिंचाई अधिक बार करनी होती है। बाढ़ के साथ आई मिट्टी से खेतों का भूगोल बदल जाये, तब कुछ अधिक इन्तजाम करना होता है।

परन्तु जब वर्षा अधिक होती थी तो बाढ़ की चर्चा ही अधिक होती थी, तब उसके बाद के सूखा की चिन्ता नहीं होती थी। बाद में नलकूपों का समाधान उपलब्ध हो गया। लेकिन सिंचाई की आवश्यकता लगातार बढ़ती गई है। वर्षा कम होने लगी है। डीजल महंगा होते जाने से उत्तर बिहार में सूखा का संकट अधिक विकराल हो गया है।

जबकि बाढ़ में अधिक पानी को सम्भालने और उसके बाद पानी की बढ़ी हुई आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्राचीन काल में पोखरों की बेहतरीन व्यवस्था विकसित हुई थी।
traditional irrigation system
क्यों शोक का कारण बन जाती हैं उत्तर बिहार की नदियाँ
Posted on 19 Sep, 2015 03:57 PM

विश्व नदी दिवस 27 सितम्बर 2015 पर विशेष


मीठे जल के स्रोत के रूप में अनादि काल से इंसानों को हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराने वाली नदियाँ क्या किसी मानव समूह के लिये निरन्तर दुख की वजह बन सकती हैं? जिस नदियों के किनारे दुनिया भर की सभ्यताएँ विकसित हुई हैं, उद्योग-धंधे पाँव पसारने को आतुर रहते हैं, खेती की फसलें लहलहाती हैं, उन्हीं नदियों के किनारे बसी उत्तर बिहार की एक बड़ी आबादी गरीबी और लाचारी भरा जीवन जीने को विवश है।

दुनिया भर में नदियों के किनारे बसे लोग लगातार समृद्ध होते रहे हैं, मगर इन इलाकों के लोग आज भी अठारहवीं सदी वाला जीवन जी रहे हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? कहा जाता है कि सालाना बाढ़ की वजह से ऐसा होता है, मगर क्या बात इतनी सरल है?

नेपाल की सीमा से सटे उत्तर बिहार के तराई इलाकों से होकर बिहार में सात बड़ी नदियाँ गुजरती हैं।
उत्तर बिहार : अच्छे दिन कब आएँगे
Posted on 17 Sep, 2015 03:51 PM

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष


उत्तर बिहार में बहुत सी नदियों के किनारे तटबन्ध बने हुए हैं। इन तटबन्धों के बीच बहुत से गाँव बसे हुए है जिनका पुनर्वास होना चाहिए था मगर लोग पुनर्वास स्थलों पर या तो गए ही नहीं या जाकर लौट आये। कारण यह था कि उन्हें खेती की ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं दी गई थी और मजबूरन उनकी वापसी हुई।

कोसी के अलावा दूसरी नदियों में या तो घर बनाने के लिये कुछ रुपए दे दिये गए या फिर बागमती में जैसा हुआ कि सिर्फ घर उठा कर पुनर्वास में सामान ले जाने की लिये कुछ रुपये दे दिये गए और हो गया पुनर्वास। कई जगहों पर पुनर्वास स्थलों में जल-जमाव हो गया और लोग अपने पुश्तैनी ज़मीन पर वापस आने के लिये मजबूर हुए।

आमतौर पर उत्तर बिहार की सभी नदियों के साथ यही हुआ। आज कोसी तटबन्धों के बीच 380 गाँव भारत के और 61 गाँव नेपाल के फँसे हुए है और इनकी आबादी अब 15 लाख के आस-पास होगी।
बाढ़ के इलाके में भूजल का अकाल
Posted on 12 Sep, 2015 01:20 PM पहले पानी 45 फीट पर आता था, आज 60 फीट पर मिलता है। उसमें गंध रहता है और थोड़ी देर रखने पर पानी के उपर एक परत नजर आती है। कुल्हड़िया में पहले पानी 20 फीट पर था, अब 60 फीट पर है। कपड़े धोने पर पीले पड़ जाते हैं, पानी को स्थिर रखने पर ऊपर एक परत जम जाती है। पेयजल के माध्यम से मानव शरीर में एकत्र लौहतत्वों की अधिकता से कई बीमारियाँ होती हैं। जिनमें बाल गिरने से लेकर किडनी-लीवर की बीमारी के अलावा चिड़चिड़ापन व मस्तिष्क की बीमारियाँ भी शामिल हैं। भूजल घटने से पूरा देश, बल्कि दुनिया के अधिकतर देश चिन्तित हैं। फिर भी बाढ़ग्रस्त कोसी क्षेत्र के भूगर्भीय जल भण्डार घटने और दूषित होने की खबरें चौंकाती हैं, सचेत करती हैं। 18 गाँवों के सर्वेक्षण में पता चला कि पहले जहाँ 10-15 फीट गहराई पर पानी था, अब 70-80-100 फीट नीचे चला गया है।

लोग हर काम के लिये भूजल पर निर्भर हैं। पेयजल के लिये चापाकल और सिंचाई के लिये नलकूप का प्रयोग लगातार बढ़ता गया है। करीब 79 प्रतिशत सिंचाई नलकूपों से होती है। वर्षाजल की हिस्सेदारी महज 15 प्रतिशत है। नदी और तालाब की हिस्सेदारी महज 5-6 प्रतिशत है।

यह बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र हैं। बाढ़ में आई पतली मिट्टी (सिल्ट या विभिन्न जैविक उर्वरकों से युक्त गाद) -बालू के कारण क्षेत्र की मिट्टी बलुआही है। उसकी जलधारण क्षमता कम है। इसलिये बरसात में जलनिकासी की समस्या भी उत्पन्न होती है और जल-जमाव होता है। कोसी तटबन्ध बनने के बाद बाढ़ विकराल हुई। उसका रूप बदला, वह विध्वंसक हो गई।
Ground water
भूख मिटाने के लिये बच्चों की मजदूरी पर निर्भर हैं किसान
Posted on 12 Sep, 2015 12:22 PM सुपौल और मधुबनी जिले के 18 गाँवों की कहानी है जो पश्चिमी कोसी तटबन्
Child labour
वर्षाजल संचयन की प्रकृति सम्मत उपयोगी व्यवस्था
Posted on 27 Aug, 2015 11:08 AM

वर्षा की बूँदें जहाँ गिरे वहीं रोक लेना और संग्रहित जल का विभिन्न प्रयोजनों में उपयोग करना सर्वोत्तम जल-प्रबन्धन है। इसकी कई तकनीकें प्रचलित हैं। कुछ तकनीकें प्राचीन और परम्परासिद्ध हैं तो कुछ नई विकसित हुई हैं। संग्रह और वितरण की इन प्रणालियों में भूजल कुण्डों के पुनर्भरण का समावेश भी होता है जिसका उपयोग संकटकालीन अवस्थाओं में हो सकता है। अतिरिक्त जल की

rainwater harvesting
शोक नदी कोसी के इलाके में जलप्रबन्धन
Posted on 03 Mar, 2015 01:35 PM

सुपौल जिला के ग्रामीणों और ग्राम्यशील द्वारा 200 एकड़ प्रत्यक्ष जल जमाव क्षेत्र एवं अप्रत्यक्ष 1

water management
कोसी कंसोर्टियम की बैठक आयोजित
Posted on 29 Aug, 2012 11:46 AM 20 अगस्त 2012, सुपौल। कुसहा त्रसदी के चार वर्ष पूरा होने पर भारतीय नदी घाटी मंच, कोसी कंसोर्टियम व पानी पंचायत बचाओ अभियान के संयुक्त तत्वावधान में बैठक आयोजित की गयी। नंदा झा ने इसकी अध्यक्षता की। भगवान जी पाठक ने कहा कि जब तक कुसहा त्रासदी के लिए जिम्मेवार लोगों को चिह्न्ति कर समुचित कार्रवाई नहीं की जाती है, तब तक सरकार द्वारा कुसहा त्रासदी पर चर्चा करना आम लोगों के साथ बेमानी होगी।
कोसी में तैयार हो रही है प्रलय की पृष्ठभूमि
Posted on 04 Jul, 2011 03:57 PM

सरिसृप वर्ग के कई जंतुओं में हाइबर्नेशन (सुसुप्तावस्था में रहने की प्रवृत्ति) पर जाने की विशिष्ट प्रवृत्ति होती है। हाइबर्नेशन पीरियड में ये जंतु अपने-अपने बिलों से बाहर नहीं निकलते। महीनों तक सोये रहते हैं, न हिलते हैं, न डोलते हैं। आंख-कान दोनों बंद कर लेते हैं। बरसात आने के साथ ही इनका हाइबर्नेशन टूटता है और जब टूटता है, तो यह चार-चार हाथ उछलने लगते हैं। चारों ओर अजीब-सा कोलाहल मच जाता है।

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