Posted on 21 Sep, 2014 04:24 PMकश्मीर का अधिकांश झीलें आपस में जुड़ी हुई थीं और अभी कुछ दशक पहले तक यहां आवागमन के लिए जलमार्ग का इस्तेमाल बेहद लोकप्रिय था। झीलों की मौत के साथ ही परिवहन का पर्यावरण-मित्र माध्यम भी दम तोड़ गया। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण की मार, अतिक्रमण के चलते कई झीलें दलदली जमीन में बदलती जा रही हैं। खुशलसार, गिलसार, मानसबल, बरारी नंबल, जैना लेक, अंचर झील, वसकुरसर, मीरगुड, हैईगाम, नरानबाग,, नरकारा जैसी कई झीलों के नाम तो अब कश्मीरियों को भी याद नहीं हैं। कश्मीर का अधिकांश भाग चिनाब, झेलम और सिंधु नदी की घाटियों में बसा हुआ है। जम्मू का पश्चिमी भाग रावी नदी की घाटी में आता है। इस खूबसूरत राज्य के चप्पे-चप्पे पर कई नदी-नाले, सरोवर-झरने हैं। विडंबना है कि प्रकृति के इतने करीब व जल-निधियों से संपन्न इस राज्य के लोगों ने कभी उनकी कदर नहीं की। मनमाने तरीके से झीलों को पाट कर बस्तियां व बाजार बनाए, झीलों के रास्तों को रोक कर सड़क बना ली।
यह साफ होता जा रहा है कि यदि जल-निधियों का प्राकृतिक स्वरूप बना रहता तो बारिश का पानी दरिया में होता ना कि बस्तियों में कश्मीर में आतंकवाद के हल्ले के बीच वहां की झीलों व जंगलों पर असरदार लोगों के नजायज कब्जे का मसला हर समय कहीं दब जाता है, जबकि यह कई हजार करोड़ रुपए की सरकारी जमीन पर कब्जा का ही नहीं, इस राज्य के पर्यावरण को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देने का मामला है। कभी राज्य में छोटे-बड़े कुल मिला कर कोई 600 वेटलैंड थे जो अब बमुश्किल 12-15 बचे हैं।
Posted on 21 Sep, 2014 10:07 AMपानी के रास्तों में लगातार रुकावट और पानी की जगहों पर कब्जा ‘पानी’ को बर्दाश्त नहीं है। झीलों, तालाबों और वेटलैंड पर कब्जा करके हमने पानी की जगहों को कम किया है। परिणामतः पानी हमारी जगहों में यानी हमारे घरों में घुसने लगा है। मुंबई, लेह-लद्दाख, बाड़मेर और केदारनाथ के बाद कश्मीर में आई बाढ़ को प्राकृतिक आपदा कहकर भूलने की कोशिश कर रहे हैं। पर क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है। ये ऐसी जगहें हैं या तो प
Posted on 13 Sep, 2014 01:01 PMएक दिन होगी प्रलय भी मत रहेगी झोपड़ी मिट जाएंगे नीलम-निलय भी ...मौत रानी के यहां उस दिन बड़े दीपक जलेंगे। भवानीप्रसाद मिश्र
Posted on 09 Sep, 2014 12:58 PMकश्मीर में बाढ़ एक सामान्य मौसमी बदलाव होता है जिससे कोई असाधारण भय या आशंका पैदा नहीं होती। घाटी में बहने वाली प्रमुख नदी वितस्ता या झेलम शायद ही कभी रौद्र रूप धारण करती हो। लोग इस सरल और शांत नदी के साथ जीना सीख गए हैं, वे भी जिनके तटवर्ती घरों के आंगन में बरसात में कभी-कभी यह प्रवेश कर ही जाती है। नदी का घरों में घुसना भी इतना शांत होता है मानो जैसे आने
Posted on 18 Aug, 2014 12:28 PM दुनिया भर की सभ्यताओं के विकास में नदियों का योगदान किस कदर रहा है, यह बताने के लिए इतिहास की किताबों में अनेकों घटनाएं दस्तावेजों की भांति मौजूद हैं। सिंधु घाटी से निकले हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से लेकर नील नदी की छत्रछाया में पले-बढ़े मैसोपोटामिया के आधुनिक मिस्त्र बनने तक का सफरनामा भी बताता है कि सिर्फ नदियों की मदद से ही मानव ने जीवनयापन की बुनियादी जरूरत
Posted on 25 Jul, 2014 11:28 AMजब से कश्मीर में दहशतगर्दी कुछ थमी है, गर्मियों में सैलानियों का जमघट रहने लगा है। कभी-कभी तो इतने लोग पहुंच जाते हैं कि होटलों में कमरे कम पड़ जाते है