जल प्रदूषित होने का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा औद्योगिक कचरे को जलधाराओं में प्रवाहित करना है। रासायनिक तत्व पानी में मिलकर जलजनित बीमारियों को जन्म देते हैं। अशुद्ध पानी पीने से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में से 22 लाख मौतें होती हैं। पृथ्वी पर कुल 71 प्रतिशत जल उपलब्ध है इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी खारा होने की वजह से पीने के योग्य नहीं है। सारी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है। पानी की कमी के चलते पानी का निजीकरण होता जा रहा है। शहर में ज्यादातर लोग बोतल बंद पानी खरीदकर पीते हैं। डेनमार्क के आरहस विश्वविद्यालय मेें हुए अनुसंधान की एक रिपोर्ट के अनुसार आने वाले तीन दशकों में एक विश्वव्यापी सूखे की स्थिति आ जाएगी। पानी का यह संकट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंताजनक बना हुआ है फिर वह चाहे कृष्णा-कावेरी जल विवाद हो या रावी-व्यास जल विवाद हो। राज्य एक दूसरे से पानी के वितरण पर लड़ रहे हैं और इसके बीच पिस रही है आम जनता जो पीने के पानी तक के लिए तरस रही है।
देश में 14 बड़ी, 55 लघु व 100 छोटी नदियों में मल-मूत्र, दूषित जल व औद्योगिक कचरा उंडेला जा रहा है। इसी के चलते धरती के प्राणी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 प्रतिशत बीमारियों का कारण अशुद्ध जल है। भारत में बच्चों की मौत की एक बड़ी वजह जलजनित बीमारियां हैं।
जल प्रदूषित होने का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा औद्योगिक कचरे को जलधाराओं में प्रवाहित करना है। रासायनिक तत्व पानी में मिलकर जलजनित बीमारियों को जन्म देते हैं। अशुद्ध पानी पीने से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में से 22 लाख मौतें होती हैं। पृथ्वी पर कुल 71 प्रतिशत जल उपलब्ध है इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी खारा होने की वजह से पीने के योग्य नहीं है। सारी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है।
पानी की कमी के चलते पानी का निजीकरण होता जा रहा है। शहर में ज्यादातर लोग बोतल बंद पानी खरीदकर पीते हैं। घर-घर वाटर प्यूरीफायर यंत्र लगे हुए हैं। किसी-न-किसी रूप में लोग बोतल बंद पानी का प्रयोग कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर गांव के लोगों के पास एक तो पेयजल को शुद्ध करने की जानकारी नहीं है या वह सक्षम नहीं हैं कि पानी को साफ करके पी सकें। ऐसे में केंद्र एवं राज्य सरकार की शुद्ध पेयजल और जल संरक्षण योजनाएं केवल बजट एवं घोषणाओं में ही अधिक दिखती है।
जम्मू एवं कश्मीर में भी पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। जम्मू प्रांत का सरहदी जिला पुंछ सरहद पर होने की वजह से तमाम मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। मेंढर तहसील से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव टोपा में भी पानी की समस्या ने लोगों का जीना मुहाल किया हुआ है।
गांव में पानी की समस्या के बारे में भारतीय सेना के भूतपूर्व कर्मचारी मोहम्मद शब्बीर (52) कहते हैं कि हमारे इलाके में वैसे तो बहुत सारी परेशानियां हैं लेकिन यहां सबसे बड़ी परेशानी पानी की है। हमारे गांव में पानी के लिए टैंक बना हुआ है लेकिन इसमें पानी साल या दो साल में एक बार आता है और वह भी लोगों तक नहीं पहुंच पाता। मायूसी के साथ वह आगे कहते हैं कि हमारे गांव में टैंक होते हुए भी हम लोगों को गाड़ी वाले को किराया देकर पानी मंगवाना पड़ता है। एक या दो दिन के बाद पानी खत्म हो जाता है फिर हमें 3 हज़ार रुपए देकर पानी मंगवाना पड़ता है।
सरकार की ओर से पानी के लिए बनाए गए टैंक और पाइप लाइनें हमारे किसी काम की नहीं हैं। पानी अनमोल है इसलिए हमें सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है। पानी की समस्या को झेलती गांव की एक और स्थानीय महिला ने बताया कि पानी का टैंक हमारे घर के बिल्कुल पास है लेकिन सप्लाई के लिए कोई लाइनमैन नहीं आता है जिसकी वजह से गांव में पानी नहीं पहुंच पाता है, सिर्फ हमारे दो तीन घरों को ही पानी मिलता है, वह भी सप्ताह में सिर्फ एक बार।
हम लोग पानी स्टोर करके रख लेते हैं और पूरे सप्ताह इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं। गांव में पानी की समस्या के बारे में पेशे से अध्यापक मोहम्मद आजि़म कहते हैं कि इस गांव में पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है जिसकी ओर सरकार को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि इस गांव के ज्यादातर लोगों को पीने का पानी तक मुहैया नहीं हो पा रहा है।
भारत में पानी के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों के अनुसार बढ़ते हुए शहरीकरण और उद्योग क्षेत्र के विस्तार से पानी की गंभीर समस्या हो रही है। पानी की समस्या ने कई राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और विशाल कृषि क्षेत्र ने पानी की सप्लाई पर दबाव बढ़ा दिया है।
रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि देश में मौजूद पानी का 80 फीसदी खेती में इस्तेमाल होता है जबकि उद्योग इस पानी का 10 फीसदी से भी कम इस्तेमाल करता है।
भारत के केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक कम बारिश के चलते देश में भूजल का स्तर काफी घटा है। पानी की समस्या दिन-ब-दिन एक विकराल रूप लेती जा रही है। अगर पानी की समस्या से निपटने के लिए जल्द ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें न की गई तो यह बात सच साबित होते देर न लगेगी कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के मुद्दे पर होगा।
देश में 14 बड़ी, 55 लघु व 100 छोटी नदियों में मल-मूत्र, दूषित जल व औद्योगिक कचरा उंडेला जा रहा है। इसी के चलते धरती के प्राणी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 प्रतिशत बीमारियों का कारण अशुद्ध जल है। भारत में बच्चों की मौत की एक बड़ी वजह जलजनित बीमारियां हैं।
जल प्रदूषित होने का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा औद्योगिक कचरे को जलधाराओं में प्रवाहित करना है। रासायनिक तत्व पानी में मिलकर जलजनित बीमारियों को जन्म देते हैं। अशुद्ध पानी पीने से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में से 22 लाख मौतें होती हैं। पृथ्वी पर कुल 71 प्रतिशत जल उपलब्ध है इसमें से 97.3 प्रतिशत पानी खारा होने की वजह से पीने के योग्य नहीं है। सारी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है।
पानी की कमी के चलते पानी का निजीकरण होता जा रहा है। शहर में ज्यादातर लोग बोतल बंद पानी खरीदकर पीते हैं। घर-घर वाटर प्यूरीफायर यंत्र लगे हुए हैं। किसी-न-किसी रूप में लोग बोतल बंद पानी का प्रयोग कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर गांव के लोगों के पास एक तो पेयजल को शुद्ध करने की जानकारी नहीं है या वह सक्षम नहीं हैं कि पानी को साफ करके पी सकें। ऐसे में केंद्र एवं राज्य सरकार की शुद्ध पेयजल और जल संरक्षण योजनाएं केवल बजट एवं घोषणाओं में ही अधिक दिखती है।
जम्मू एवं कश्मीर में भी पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। जम्मू प्रांत का सरहदी जिला पुंछ सरहद पर होने की वजह से तमाम मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। मेंढर तहसील से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव टोपा में भी पानी की समस्या ने लोगों का जीना मुहाल किया हुआ है।
गांव में पानी की समस्या के बारे में भारतीय सेना के भूतपूर्व कर्मचारी मोहम्मद शब्बीर (52) कहते हैं कि हमारे इलाके में वैसे तो बहुत सारी परेशानियां हैं लेकिन यहां सबसे बड़ी परेशानी पानी की है। हमारे गांव में पानी के लिए टैंक बना हुआ है लेकिन इसमें पानी साल या दो साल में एक बार आता है और वह भी लोगों तक नहीं पहुंच पाता। मायूसी के साथ वह आगे कहते हैं कि हमारे गांव में टैंक होते हुए भी हम लोगों को गाड़ी वाले को किराया देकर पानी मंगवाना पड़ता है। एक या दो दिन के बाद पानी खत्म हो जाता है फिर हमें 3 हज़ार रुपए देकर पानी मंगवाना पड़ता है।
सरकार की ओर से पानी के लिए बनाए गए टैंक और पाइप लाइनें हमारे किसी काम की नहीं हैं। पानी अनमोल है इसलिए हमें सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है। पानी की समस्या को झेलती गांव की एक और स्थानीय महिला ने बताया कि पानी का टैंक हमारे घर के बिल्कुल पास है लेकिन सप्लाई के लिए कोई लाइनमैन नहीं आता है जिसकी वजह से गांव में पानी नहीं पहुंच पाता है, सिर्फ हमारे दो तीन घरों को ही पानी मिलता है, वह भी सप्ताह में सिर्फ एक बार।
हम लोग पानी स्टोर करके रख लेते हैं और पूरे सप्ताह इसी पानी का इस्तेमाल करते हैं। गांव में पानी की समस्या के बारे में पेशे से अध्यापक मोहम्मद आजि़म कहते हैं कि इस गांव में पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है जिसकी ओर सरकार को तुरंत ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि इस गांव के ज्यादातर लोगों को पीने का पानी तक मुहैया नहीं हो पा रहा है।
भारत में पानी के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों के अनुसार बढ़ते हुए शहरीकरण और उद्योग क्षेत्र के विस्तार से पानी की गंभीर समस्या हो रही है। पानी की समस्या ने कई राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और विशाल कृषि क्षेत्र ने पानी की सप्लाई पर दबाव बढ़ा दिया है।
रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि देश में मौजूद पानी का 80 फीसदी खेती में इस्तेमाल होता है जबकि उद्योग इस पानी का 10 फीसदी से भी कम इस्तेमाल करता है।
भारत के केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक कम बारिश के चलते देश में भूजल का स्तर काफी घटा है। पानी की समस्या दिन-ब-दिन एक विकराल रूप लेती जा रही है। अगर पानी की समस्या से निपटने के लिए जल्द ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें न की गई तो यह बात सच साबित होते देर न लगेगी कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के मुद्दे पर होगा।
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Post By: vinitrana