प्रयागराज जिला

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नील गायों से बचायें अपनी फसल
Posted on 10 Dec, 2016 03:00 PM

नीलगायों की समस्या से निजात के लिये लेखक का सुझाव है कि नर नीलगायों का वंध्याकरण अभियान च

ग्रामीण क्षेत्रों में बटेर पालन से लाभ
Posted on 10 Dec, 2016 01:00 PM

2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने शासनादेश से भी मुख्य वन संरक्षण अधिकारियों, प्रांत तथा केंद

घातक हो सकता है मूत्र संक्रमण
Posted on 10 Dec, 2016 12:49 PM
मूत्र संक्रमण (यूरिन इन्फेक्शन) एक ऐसी बीमारी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति में पायी जा सकती है। परंतु यह बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा पायी जाती है। 15 से 45 वर्ष की आयु की स्त्रियों को यह बीमारी अक्सर हो जाया करती है। इसमें मूत्र मार्ग में खुजली, मूत्र त्याग में जलन एवं सूई चुभने जैसी असहनीय पीड़ा होती है। इसके कारण रोगी मूत्र त्याग करने में भय महसूस करता है। तीव्र अवस्था म
ऊसर मृदाएँ एवं उनका प्रबंधन
Posted on 09 Dec, 2016 03:12 PM
विश्व का बहुत बड़ा भूभाग ऊसर मृदाओं के रूप में पाया जाता है। कृषि खाद्य संगठन (FAO) के अनुसार विश्व में ऊसर मृदाओं का क्षेत्रफल लगभग 952 मिलियन हेक्टेयर है। वहीं भारत में इनका क्षेत्रफल लगभग 7.0 मिलियन हेक्टेयर है जो सन 1959 ई.
कहाँ मिलते हैं मोती
Posted on 06 Dec, 2016 04:54 PM
भारत में मोतियों का उपयोग प्रागैतिहासिक काल में ही शुरू हो गया था। वेद तथा पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मोती की चर्चा मिलती है। रामायण काल में मोती का प्रयोग काफी प्रचलित था। लंका से लौटने के बाद जब भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ तो वायुदेव ने मोतियों की माला उन्हें उपहार स्वरूप दी। मोती की चर्चा बाइबिल में भी की गयी है। साढ़े तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन मोती
कृत्रिम न्यूरल तंत्र
Posted on 06 Dec, 2016 04:45 PM
कृत्रिम न्यूरल तंत्रों का विकास लगभग 70 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ। इनका प्रयोग प्रथम बार 1943 में मुक्क्ल्लोच और पिट्स ने किया था किंतु संगणक सुविधाओं के न होने कि वजह से उनका प्रयोग 20वीं सदी के अंतिम वर्ष तक न के बराबर था। इसकी अभिप्रेरणा वैज्ञानिकों की उस सोच का परिणाम थी जिसमें कृत्रिम बुद्धि के विकास का विचार था। उन्हें यह जानने की उत्सुकता थी कि एक मानव मस्तिष्क भले ही एक संगणक से गति मे
अनुमान मौसम का : घाघ और भड्डरी की कहावतें
Posted on 05 Dec, 2016 04:16 PM
विक्रम की 18वीं शताब्दी के प्राय: अंतिम भाग में कन्नौज के निकट निवासी घाघ कवि एक अनुभवी किसान हो गये, इनको खगोल का अच्छा ज्ञान था। उनकी प्रत्येक कविता उनके गुरुज्ञान और अपूर्व अनुभव की उदाहरण हैं। परंतु खेद का विषय है कि आज के विकास युग में हमें ऐसे अनुभवी पुरुष की न तो पूरी जीवनी मिलती है और न ही उनके सिद्धांतों पर वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है। घाघ की कहावतें उत्तर प्रदेश व बिहार में प्रचलित हैं
हिमालयी प्राकृतिक संपदा एवं जैवविविधता संरक्षण में सहायक हैं स्थानीय पारंपरिक ज्ञान
Posted on 05 Dec, 2016 04:09 PM
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ‘पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान’ द्वारा राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, मिर्जापुर में ‘‘जलवायु परिवर्तन के युग में धारणीय जल संसांधन प्रबंधन’’ विषयक दो दिवसीय (10-11 जनवरी, 2014) राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया।
हरित नैनोकम्पोजिट : भविष्य के पदार्थ
Posted on 05 Dec, 2016 04:05 PM

मानवीय स्वभाव है कि एक बार समस्या एवं उसका कारण स्पष्ट हो जाये तो उसके निदान के लिये नूतन

साइटोनेमीन : बहुउद्देश्यीय वाह्यकोशिकीय रंगद्रव्य
Posted on 05 Dec, 2016 12:22 PM
पृथ्वी की उत्पत्ति 3.5 खराब वर्ष पूर्व हुई थी। शुरुआती वातावरण आॅक्सीजनरहित था एवं वायुमंडल भी मौजूद नहीं था। अत: धरा लगातार पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में थी। 2.2 खरब वर्ष पूर्व नील-हरित शैवालों का पदार्पण हुआ और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम प्रकाशसंश्लेशण की शुरुआत हुई। पराबैंगनी विकिरण से बचाव हेतु एवं अपने उत्तरजीविता के लिये नील-हरित शैवालों ने अनेक प्रकार के बचाव पद्धतियों को विकसित किया
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