महोबा जिला

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दलहन फसल के साथ मिश्रित खेती
Posted on 08 Apr, 2013 10:19 AM (ज्वार + मूंग + अरहर + रोसा + कचरिया)

दलहनी फसलें जहां मानव जीवन के लिए प्रोटीन का काम करती है, वहीं उनकी जड़ों में फ़िक्स नाइट्रोजन मृदा उर्वरता को बढ़ाता है व सुखाड़ की स्थिति में भी ये फसलें कुछ बेहतर उपज दे जाती हैं।

परिचय

चने की खेती : सूखे में भी बेहतर उपज
Posted on 07 Apr, 2013 04:11 PM उबड़-खाबड़ एवं ऊसर प्रवृत्ति के खेतों में सिंचाई का न होना एक प्रमुख समस्या हो जाती है। ऐसे में स्वयंसेवी संगठन द्वारा जल संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों ने सूखे में भी चने की खेती की आस जगाई।

परिचय

सूखे में कठिया गेहूं की खेती
Posted on 07 Apr, 2013 11:55 AM पहाड़ी पर बसे कबरई विकास खंड के मुगौरा गांव की जमीन असमतल, उबड़-खाबड़ होने के कारण प्राकृतिक पानी खेतों में संचित नहीं हो पाता व निजी साधन पहुंच से बाहर होने के कारण लोगों ने कठिया गेहूं को प्राथमिकता दी।

परिचय

कठिया गेहूं
सूखे के दौरान जौ की खेती से लाभ
Posted on 06 Apr, 2013 04:12 PM बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता एवं सरकारी उदासीनता ने किसानों को खेती से विमुख बनाया क्योंकि खेती से उनका जीवन-यापन बमुश्किल ही होता था, ऐसे में सूखे में भी होने वाली जौ की खेती लोगों के लिए सहारा बनी।

परिचय

टपक सिंचाई विधि से टमाटर की खेती
Posted on 06 Apr, 2013 04:06 PM स्वास्थ्य व स्वादवर्धक टमाटर एक नगदी फसल भी है। टमाटर के देशी बीजों के अंदर सहन क्षमता अधिक होने के कारण टपक विधि से सिंचाई कर उगाए गए टमाटर लोगों को विपरीत परिस्थितियों में नुकसान से बचा सकते हैं।

परिचय

जल संरक्षण से सूखे का मुकाबला
Posted on 03 Apr, 2013 12:43 PM सूखे की स्थितियों से निपटने के लिए समुदाय की सामूहिक रणनीति के तहत जल संरक्षण की गतिविधि बेहतर साबित हुई जिससे न सिर्फ सिंचाई की समस्या हल हुई वरन भयंकर गर्मी में पशुओं की प्यास भी बुझी।

संदर्भ


जनपद महोबा के विकास खंड कबरई में अत्यंत पिछड़ा व दुर्गम रास्ते वाला गांव चकरिया नाला के दोनों तरफ बसा हुआ है। जिला मुख्यालय व महोबा कानपुर रोड से लगभग 7 किमी. की दूरी पर उत्तर व पश्चिम के बीच यह गांव स्थित है, जो महोबा-कानपुर रोड से एक पक्के सम्पर्क मार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। 2555 लोगों की आबादी वाले इस गांव की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। कृषिगत भूमि का रकबा लगभग 2400 एकड़ है, जिसमें से केवल 100 एकड़ ज़मीन सिंचित है। यहां पर सिंचाई के साधनों में व्यक्तिगत कुआं ही हैं। कुल कृषि योग्य भूमि में से 1100 भूमि राकड़ है, जो ढालू तथा उबड़-खाबड़ है। ढलान की स्थिति यह है कि कहीं-कहीं पर खेत का ढाल 1 मीटर तक है। अतः यहां पर बरसात का पानी रुकता नहीं है। मात्र 200 एकड़ ज़मीन ही समतल व उपजाऊ किस्म की है।
उर्मिल बांध से भी नहीं सुलझी पेयजल समस्या
Posted on 13 Feb, 2013 12:45 PM उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों के बीच 1978 में हुए करार के बाद दोनो राज्यों के महोबा व छतरपुर जनपदों की तहसील में उर्मिल बांध का निर्माण शुरू हुआ था। यह 1995 में 33.22 करोड़ की लागत से पूरा हुआ। अनुबंध के अनुसार 40-60 फ़ीसदी जल बंटवारा व बांध के रख-रखाव पर होने वाला खर्च भी इसी मानक से तय किया गया था। लेकिन बांध के निर्माण के बाद से मध्यप्रदेश सरकार ने आज तक एक फूटी कौड़ी उत्तर प्रदेश सरका
चंदेल व मुगलकालीन तालाबों को बचाने की नहीं हो रही कोशिश
Posted on 26 Jul, 2012 12:30 PM

बुंदेलखंड में परंपरागत जल स्रोत खत्म होने से बढ़ रहा है जल संकट

बंपर फसल का तांडव
Posted on 13 Jul, 2012 05:21 PM

बुंदेलखंड में गत वर्ष अच्छी बारीश होने से फसल भी बढ़िया पैदा हुआ। जिससे किसान भी खुब खुश थे कि अपना कर्ज मुक्त ह

मंगल सिंह का मंगल कार्य
Posted on 18 Jun, 2012 02:58 PM

पानी उठाने के अलावा जलचक्र मशीन से अन्य अनेक ग्रामीण कार्य जैसे आटा पिसाई, गन्ना पिराई, फसल गहाई, तेल प्रसंस्करण

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