चंदेल व मुगलकालीन तालाबों को बचाने की नहीं हो रही कोशिश

बुंदेलखंड में परंपरागत जल स्रोत खत्म होने से बढ़ रहा है जल संकट


इन तालाबों में पानी भरने के लिए 1990 से 2000 के दशक में व्यवस्था थी पर धीरे-धीरे आबादी बढ़ने से इनमें अधिकांश तालाबों की जल निकासी न होने से गंदा पानी सड़ांध मारने लगा है। बारिश का पानी भरने का बंदोबस्त अब नहीं रहा। हमीरपुर जिले में चरखारी रियासत को खूबसूरत तालाबों के साथ कुएं जुड़े मिलते थे, जो खंडहर में तब्दील हो गए हैं। यहां तालाबों और कुओं को ऐसे बनाया गया है कि बारिश हो तो एक बूंद पानी भी बाहर न जाए। ऐसे तालाबों-कुओं का निर्माण अब संभव नहीं।

जल ही जीवन का संदेश मौजूदा परिदृश्य में झूठ लगने लगा है। बुंदेलखंड को तालाबों का खंड कहा जाता था, जहां दसवीं सदी से लेकर तेरहवीं सदी तक के सैकड़ों तालाब देखने को मिल सकते हैं। इसके साथ-साथ मुगलों के शासन में भी तालाब बनवाए गए। यही नहीं तालाबों के सहारे शुद्ध पेयजल के लिए कुएं भी बनाए जाते थे। इन कुओं में पानी तालाबों के सहारे रीचार्ज होकर कुओं को जीवित रखते थे। तालाबों को बरसात के पानी से भरने के लिए पहले से बंदोबस्त होता था। जिससे उसका पानी दूषित न हो। तालाबों के पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होती थी। बड़े तालाबों में पानी की स्वच्छता के लिए मछली पालन कराया जाता था इसके अलावा कंकरीट भी तालाबों में डलवाई जाती थी। जिससे तालाब का पानी फिल्टर होकर पीने लायक बना रहे। यह सब मनुष्य की इच्छा शक्ति से होता था पर जैसे-जैसे आबादी का विस्तार हुआ, सबसे पहले स्वार्थी लोगों ने तालाबों की खाली पड़ी जमीन पर कब्जा कर इमारतें खड़ी कर दीं। यही नहीं जो नालियां तालाबों को भरने का काम करती थी, उनको हमेशा के लिए बंद कर दिया।

बुंदेलखंड में पिछले 20 बरस से तालाबों को बचाने के लिए सरकार ने कोई खाका तैयार नहीं किया है और न आगे कोई योजना है। वोट की खातिर सरकार जल के परंपरागत स्रोतों को खत्म कर जीवन के लिए संकट पैदा करने का काम कर रही है। सरकार ने बेरोजगारी भत्ता, वकीलों की पेंशन, लैपटॉप व टेबलेट वितरण के लिए हजारों करोड़ के बजट का प्रावधान किया है। यह मंजूर भी हो गया, क्योंकि राज्य सरकार के घोषणापत्र में यह सब शामिल थे। लेकिन इन सबको पाने के लिए जीवन होना जरूरी है, जीवन तभी होगा, जब जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो। बुंदेलखंड में जल प्रबंधन की सरकारी योजना ऐसी नहीं जिसे बानगी के तौर पर देखा जा सके। ऐसा भी नहीं कि तालोबों में काम कराने की कमी हो। जनता के सामने पानी की सबसे बड़ी समस्या है। आने वाले दिनों में यदि तालाबों को जीवित नहीं किया गया, तो हैंडपंप और नलकूप सूख जाएंगे।

यह भी झूठलाया नहीं जा सकता कि चंदेलकालीन और मुगलकालीन तालाबों का जो डिजाइन हैं वह आज भी इंजीनियरों के लिए चुनौती है। इसी प्रकार मेहराबदार दीवारों से कुओं का जो निर्माण कराया जाता था, वह भी लुप्त हो गए। जो कुएं बुंदेलखंड पैकेज से महोबा व ललितपुर में बनाए जा रहे हैं। उनके डिजाइन देख बुंदेलखंड में सौ से अधिक चंदेलकालीन तालाब हैं। ये सभी तालाब अपने सौंदर्य को खोते जा रहे हैं। वाल्मीकि तालाब को छोड़ कर सभी तालाब शहर की आबादी से घिर चुके हैं। जल निकासी के सभी स्रोत बंद कर दिए हैं। इन तालाबों को बरसात के पानी से भरने के लिए कोई इंतजाम नहीं है, यह है जल प्रबंधन का हाल। इसी तरह महोबा के मदन सागर तालाब, कल्याण सागर तालाब, कीरत सागर तालाब, बीझा नगर तालाब, सागर तालाब यह सभी चंदेलकालीन हैं।

विकास का दंश झेल रहा मदन सागर तालाबविकास का दंश झेल रहा मदन सागर तालाबये सभी तालाब बड़े क्षेत्रफल में फैले हैं। इनमें पानी भरने के लिए 1990 से 2000 के दशक में व्यवस्था थी पर धीरे-धीरे आबादी बढ़ने से इनमें अधिकांश तालाबों की जल निकासी न होने से गंदा पानी सड़ांध मारने लगा है। बारिश का पानी भरने का बंदोबस्त अब नहीं रहा। हमीरपुर जिले में चरखारी रियासत को खूबसूरत तालाबों के साथ कुएं जुड़े मिलते थे, जो खंडहर में तब्दील हो गए हैं। तालाब सूख गए हैं। इन्हें भी सरकारी बजट की दरकार है। यहां तालाबों और कुओं को ऐसे बनाया गया है कि बारिश हो तो एक बूंद पानी भी बाहर न जाए। ऐसे तालाबों-कुओं का निर्माण अब संभव नहीं। बुंदेलखंड में तालाबों की भरपाई के लिए चेकडैम बड़ी संख्या में बनवाए गए, जिससे पानी जमा होकर रिचार्जिंग हो सके। चेकडैम में पानी ही नहीं है, तो कैसे रिचार्जिंग होगी। सरकारी मशीनरी ने भी कोई परवाह नहीं की।

जल संरक्षण पर काम कर रहे परमार्थ समाज सेवी संस्था के सचिव संजय सिंह का कहना है कि जल संरक्षण के लिए तालाबों का होना जरूरी है। तालाबों से अच्छा जल का संरक्षण और कोई दूसरा नहीं कर सकता। आज भी प्रत्येक गांव में एक या दो प्राचीन कुएं देखने को मिल जाते हैं। इन कुओं के लिए थोड़ा बहुत प्रयास हो, तो हजारों लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। मध्य प्रदेश की तरह तालाब बचाने के लिए उत्तर प्रदेश में भी सख्त कानून बनना चाहिए तभी तालाब सुरक्षित रह सकेंगे।

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