उबड़-खाबड़ एवं ऊसर प्रवृत्ति के खेतों में सिंचाई का न होना एक प्रमुख समस्या हो जाती है। ऐसे में स्वयंसेवी संगठन द्वारा जल संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों ने सूखे में भी चने की खेती की आस जगाई।
जनपद महोबा बुंदेलखंड का सूखा प्रभावित क्षेत्र है, जहां की ज़मीन उबड़-खाबड़ एवं ज़मीन की प्रवृत्ति ऊसर है। सिंचाई के साधनों का अभाव होने की वजह से यहां पर खेती पूर्णतया वर्षा आधारित होने की परिस्थिति में खरीफ मौसम में पूरी कृषि योग्य भूमि के तीन चौथाई भाग में तिल व उर्द बोया जाता है जबकि रबी मौसम की मुख्य फसल गेहूं, चना, मसूर व मटर है।
इसी जनपद के कबरई विकास खंड का गांव चुरबरा जो पूर्व व उत्तर में ग्रेनाइट के पहाड़ों से घिरा है तथा दूसरी तरफ पश्चिम में एक किमी. की दूरी पर सलारपुर नहर स्थित है। वर्ष 2003 में वर्षा बहुत कम मात्रा में हुई और उसके बाद के वर्षों में भी यही निरंतरता बनी रही, जिस कारण संचित भूमिगत जल समाप्त होने से स्थिति विकट होने लगी। कबरई बांध में पानी खत्म होने के कारण नहर भी सूख गई। ऐसी स्थिति में खरीफ की फसल तो एकदम ही खत्म हो गयी, रबी पर भी इस सूखे का असर स्पष्ट दिखने लगा। गांव में स्थित 20-25 निजी बोरों ने भी ऐसी स्थिति में पानी देना बंद कर दिया था।
ग्राम चुरबरा में सूखा मुक्ति अभियान के अंतर्गत एक किसान समूह का गठन किया गया है। पिछले वर्ष 2008 माह सितम्बर में किसान समूह की एक बैठक में श्री आशाराम पांचाल ने प्रस्ताव रखा कि ग्रामोन्नति संस्थान के माध्यम से चलाई गई योजना के द्वारा कुओं का गहरीकरण तथा खेतों में मेड़बंदी का कार्य चल रहा है। जिसके तहत् गांव के पंचम् पुत्र धर्मदास के कुओं का गहरीकरण एवं खेत की मेंडबंदी हुई है, जिससे इनके कुएं का जलस्तर पिछले वर्ष की अपेक्षा 2 मीटर बढ़ा है। इस बढ़े पानी से 2 एकड़ खेत की सिंचाई की जा सकती है और मेड़बंदी के द्वारा खेतों में नमी भी संरक्षित हुई है। अतः परीक्षण के तौर पर इनके खेत में चने की खेती की जा सकती है, क्योंकि चने की खेती सूखे में भी होती है, बशर्ते बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी हो।
खेत की तैयारी
चने की खेती करने के पहले ट्रैक्टर के कल्टीवेटर में नुकीले तार लगाकर एक गहरी जुताई की जाती है। तत्पश्चात् पानी चलाकर पलेवा कर दिया जाता है। पुनः बुवाई के समय एक जुताई कल्टीवेटर में फरुआ लगाकर किया जाता है।
चने की देशी प्रजाति के बीजों का प्रयोग करते हैं।
एक एकड़ में 40 किग्रा. बीज लगता है।
माह नवम्बर में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई सीडड्रिल से की जाती है।
चने के खेत में पोला नामक खर-पतवार दिखता है, जो आम तौर पर 30-35 दिनों बाद दिखना शुरू हो जाता है। इसकी निराई समय-समय पर करके इसे नष्ट करते रहना चाहिए।
सिंचाई के लिए बुवाई से पूर्व ही खेत में नमी बनाई जाती है, जिसके लिए खेत की चारों तरफ से मेड़बंदी कर उसमें नमी संरक्षित किया जाता है।
चने में होने वाले उकठा रोग व इल्ली/सूड़ी न लगे इसके लिए प्रत्येक 15 दिनों पर 12 ली. मट्ठा, 125 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करते हैं, जिससे रोग नियंत्रण भी होता है और कीटों का प्रकोप भी नहीं होता है।
मार्च माह के प्रारम्भ में चने की फसल पककर तैयार हो जाती है।
इसकी कटाई हाथ से दरांती की सहायता से की जाती है व मड़ाई थ्रेसर से की जाती है।
एक एकड़ में 5.20 कुन्तल चने की उपज होती है।
परिचय
जनपद महोबा बुंदेलखंड का सूखा प्रभावित क्षेत्र है, जहां की ज़मीन उबड़-खाबड़ एवं ज़मीन की प्रवृत्ति ऊसर है। सिंचाई के साधनों का अभाव होने की वजह से यहां पर खेती पूर्णतया वर्षा आधारित होने की परिस्थिति में खरीफ मौसम में पूरी कृषि योग्य भूमि के तीन चौथाई भाग में तिल व उर्द बोया जाता है जबकि रबी मौसम की मुख्य फसल गेहूं, चना, मसूर व मटर है।
इसी जनपद के कबरई विकास खंड का गांव चुरबरा जो पूर्व व उत्तर में ग्रेनाइट के पहाड़ों से घिरा है तथा दूसरी तरफ पश्चिम में एक किमी. की दूरी पर सलारपुर नहर स्थित है। वर्ष 2003 में वर्षा बहुत कम मात्रा में हुई और उसके बाद के वर्षों में भी यही निरंतरता बनी रही, जिस कारण संचित भूमिगत जल समाप्त होने से स्थिति विकट होने लगी। कबरई बांध में पानी खत्म होने के कारण नहर भी सूख गई। ऐसी स्थिति में खरीफ की फसल तो एकदम ही खत्म हो गयी, रबी पर भी इस सूखे का असर स्पष्ट दिखने लगा। गांव में स्थित 20-25 निजी बोरों ने भी ऐसी स्थिति में पानी देना बंद कर दिया था।
सूखे में मुकाबला हेतु प्रयास
ग्राम चुरबरा में सूखा मुक्ति अभियान के अंतर्गत एक किसान समूह का गठन किया गया है। पिछले वर्ष 2008 माह सितम्बर में किसान समूह की एक बैठक में श्री आशाराम पांचाल ने प्रस्ताव रखा कि ग्रामोन्नति संस्थान के माध्यम से चलाई गई योजना के द्वारा कुओं का गहरीकरण तथा खेतों में मेड़बंदी का कार्य चल रहा है। जिसके तहत् गांव के पंचम् पुत्र धर्मदास के कुओं का गहरीकरण एवं खेत की मेंडबंदी हुई है, जिससे इनके कुएं का जलस्तर पिछले वर्ष की अपेक्षा 2 मीटर बढ़ा है। इस बढ़े पानी से 2 एकड़ खेत की सिंचाई की जा सकती है और मेड़बंदी के द्वारा खेतों में नमी भी संरक्षित हुई है। अतः परीक्षण के तौर पर इनके खेत में चने की खेती की जा सकती है, क्योंकि चने की खेती सूखे में भी होती है, बशर्ते बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी हो।
प्रक्रिया
खेत की तैयारी
चने की खेती करने के पहले ट्रैक्टर के कल्टीवेटर में नुकीले तार लगाकर एक गहरी जुताई की जाती है। तत्पश्चात् पानी चलाकर पलेवा कर दिया जाता है। पुनः बुवाई के समय एक जुताई कल्टीवेटर में फरुआ लगाकर किया जाता है।
बीज की प्रजाति
चने की देशी प्रजाति के बीजों का प्रयोग करते हैं।
बीज की मात्रा
एक एकड़ में 40 किग्रा. बीज लगता है।
बुवाई का समय व विधि
माह नवम्बर में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई सीडड्रिल से की जाती है।
निराई-गुड़ाई
चने के खेत में पोला नामक खर-पतवार दिखता है, जो आम तौर पर 30-35 दिनों बाद दिखना शुरू हो जाता है। इसकी निराई समय-समय पर करके इसे नष्ट करते रहना चाहिए।
सिंचाई
सिंचाई के लिए बुवाई से पूर्व ही खेत में नमी बनाई जाती है, जिसके लिए खेत की चारों तरफ से मेड़बंदी कर उसमें नमी संरक्षित किया जाता है।
रोग नियंत्रण
चने में होने वाले उकठा रोग व इल्ली/सूड़ी न लगे इसके लिए प्रत्येक 15 दिनों पर 12 ली. मट्ठा, 125 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करते हैं, जिससे रोग नियंत्रण भी होता है और कीटों का प्रकोप भी नहीं होता है।
पकने की अवधि
मार्च माह के प्रारम्भ में चने की फसल पककर तैयार हो जाती है।
कटाई-मड़ाई
इसकी कटाई हाथ से दरांती की सहायता से की जाती है व मड़ाई थ्रेसर से की जाती है।
उपज
एक एकड़ में 5.20 कुन्तल चने की उपज होती है।
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