स्वास्थ्य व स्वादवर्धक टमाटर एक नगदी फसल भी है। टमाटर के देशी बीजों के अंदर सहन क्षमता अधिक होने के कारण टपक विधि से सिंचाई कर उगाए गए टमाटर लोगों को विपरीत परिस्थितियों में नुकसान से बचा सकते हैं।
खाने को स्वादवर्धक बनाने वाला टमाटर औषधीय दृष्टि से भी उपयोगी है। विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्रोत होने के कारण टमाटर कई रोगों में फायदेमंद सिद्ध होता है। इसकी मांग एवं खपत छोटे-बड़े शहर, देहात सभी जगहों पर होती है। एवं इसका व्यावसायिक रूप अर्थात् सॉस, जैम आदि बनाकर अच्छी आय भी कमाई जा सकती है। इस प्रकार टमाटर शुद्ध रूप से नकदी फसल है, जो विपरीत परिस्थितियों के कारण लोगों के हो रहे नुकसान को कम करने में सहायक सिद्ध होता है।
बुंदेलखंड का सूखा सर्वविदित है। ऐसे में जब लोगों के लिए खेती करना दुष्कर सिद्ध हो रहा है। अगर टमाटर की खेती देशी बीजों के साथ की जाए, तो निश्चित तौर पर लाभ होगा। इसका मुख्य कारण यह है कि हाइब्रिड बीजों की अपेक्षा देशी बीजों के अंदर विपरीत परिस्थितियों को सहने की क्षमता अधिक होती है। अतः वे सूखे की स्थिति में भी अपनी उपज क्षमता बनाए रखती है। इसके साथ ही इनका स्वाद एवं पौष्टिकता भी हाइब्रिड की तुलना में अधिक होने के कारण किसान को अधिक लाभ पहुँचाती है। इसके साथ ही यदि खेती की परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए समय नियोजन कर साल में इसकी तीन फसल लें तो यह लाभ निश्चित हो जाता है।
खेत की तैयारी
टमाटर की खेती के लिए सर्वप्रथम पहली बरसात होने के बाद खेत की एक जुताई कर छोड़ देते हैं। तत्पश्चात् पौध रोपण हेतु नर्सरी तैयार करते हैं।
टमाटर की देशी प्रजाति का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में टमाटर की खेती करने के लिए 50 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।
जुलाई माह में पौध तैयार करते हैं। एक एकड़ खेत में टमाटर के पौध रोपने के लिए माह जुलाई में 2 डिसमिल परिक्षेत्र में टमाटर के बीजों की नर्सरी डाल देते हैं। इसके लिए खेत के एक भाग में क्यारी बनाकर गोबर की खाद डालते हैं तथा दो इंच ऊंची मिट्टी तैयार कर देशी बीज की बुवाई करते हैं। पुनः पौध तैयार होने पर खेत में इसकी रोपाई करते हैं।
टमाटर की देश प्रजाति के बीज से वर्ष में दो बार अगस्त व नवंबर के अंत में रोपाई कर टमाटर की फसल ले सकते हैं। नर्सरी में डाले गए बीज से उगे पौधों की लम्बाई 4-6 इंच की हो जाने पर अर्थात् 21-22 दिन के पौध, जिनमें 4-6 पत्ते आ जाएं तब इसकी रोपाई खेत में पंक्तिवार की जाती है। पौध से पौध की दूरी 15 सेमी. रखते हैं।
एक एकड़ हेतु गोबर की खाद 2 ट्राली एवं वर्मी कम्पोस्ट 50 किग्रा. की आवश्यकता होती है।
खेत में खर-पतवार उगने से पौधों की वृद्धि पर असर पड़ता है। इसलिए समय-समय पर खेत की निराई करते रहते हैं, जिससे पौधों को बढ़ने का पूरा समय व जगह मिले। पूरी फसल अवधि में खेत की दो बार गुड़ाई करते हैं।
टमाटर की खेती में नियमित रूप से नमी की आवश्यकता होती है। अतः बूंद विधि से हफ्ते-10 दिन पर सिंचाई करते रहना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में बहुत अधिक पानी न लगे, वरना पौधों में उकठा रोग लग जाता है।
अगस्त में रोपे गए पौधों में अक्टूबर में फल आने लगता है। पौधों में फल तीन बार आते हैं। पहली बार से अधिक दूसरी बार उत्पादन मिलता है, जबकि तीसरी बार में सबसे कम उत्पादन मिलता है। तीन-चार दिनों पर खेत में जाकर मांग के आधार पर अधकच्चे अथवा पके फलों की तुड़ाई करते हैं। दूसरी बार के लिए पुनः पौध तैयार कर नवंबर के अंतिम में पौध रोपते हैं, जिसका उत्पादन फरवरी के प्रथम सप्ताह में आना प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार देशी टमाटर की खेती का अधिक लाभ लिया जा सकता है।
वैसे तो टमाटर हर घर में रोज़ाना खाया जाता है। अत: बिकने की समस्या नहीं रहती है। लेकिन इससे अच्छा मुनाफ़ा बाजार में ही ले जाकर पाया जा सकता है। टमाटर के लिए मुख्य रूप से उरई एवं कानपुर का बाजार है, जहां के व्यापारी आकर गांव से ही खरीद कर ले जाते हैं।
परिचय
खाने को स्वादवर्धक बनाने वाला टमाटर औषधीय दृष्टि से भी उपयोगी है। विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्रोत होने के कारण टमाटर कई रोगों में फायदेमंद सिद्ध होता है। इसकी मांग एवं खपत छोटे-बड़े शहर, देहात सभी जगहों पर होती है। एवं इसका व्यावसायिक रूप अर्थात् सॉस, जैम आदि बनाकर अच्छी आय भी कमाई जा सकती है। इस प्रकार टमाटर शुद्ध रूप से नकदी फसल है, जो विपरीत परिस्थितियों के कारण लोगों के हो रहे नुकसान को कम करने में सहायक सिद्ध होता है।
बुंदेलखंड का सूखा सर्वविदित है। ऐसे में जब लोगों के लिए खेती करना दुष्कर सिद्ध हो रहा है। अगर टमाटर की खेती देशी बीजों के साथ की जाए, तो निश्चित तौर पर लाभ होगा। इसका मुख्य कारण यह है कि हाइब्रिड बीजों की अपेक्षा देशी बीजों के अंदर विपरीत परिस्थितियों को सहने की क्षमता अधिक होती है। अतः वे सूखे की स्थिति में भी अपनी उपज क्षमता बनाए रखती है। इसके साथ ही इनका स्वाद एवं पौष्टिकता भी हाइब्रिड की तुलना में अधिक होने के कारण किसान को अधिक लाभ पहुँचाती है। इसके साथ ही यदि खेती की परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए समय नियोजन कर साल में इसकी तीन फसल लें तो यह लाभ निश्चित हो जाता है।
प्रक्रिया
खेत की तैयारी
टमाटर की खेती के लिए सर्वप्रथम पहली बरसात होने के बाद खेत की एक जुताई कर छोड़ देते हैं। तत्पश्चात् पौध रोपण हेतु नर्सरी तैयार करते हैं।
बीज की प्रजाति एवं मात्रा
टमाटर की देशी प्रजाति का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में टमाटर की खेती करने के लिए 50 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।
नर्सरी तैयार करना
जुलाई माह में पौध तैयार करते हैं। एक एकड़ खेत में टमाटर के पौध रोपने के लिए माह जुलाई में 2 डिसमिल परिक्षेत्र में टमाटर के बीजों की नर्सरी डाल देते हैं। इसके लिए खेत के एक भाग में क्यारी बनाकर गोबर की खाद डालते हैं तथा दो इंच ऊंची मिट्टी तैयार कर देशी बीज की बुवाई करते हैं। पुनः पौध तैयार होने पर खेत में इसकी रोपाई करते हैं।
रोपाई का समय व विधि
टमाटर की देश प्रजाति के बीज से वर्ष में दो बार अगस्त व नवंबर के अंत में रोपाई कर टमाटर की फसल ले सकते हैं। नर्सरी में डाले गए बीज से उगे पौधों की लम्बाई 4-6 इंच की हो जाने पर अर्थात् 21-22 दिन के पौध, जिनमें 4-6 पत्ते आ जाएं तब इसकी रोपाई खेत में पंक्तिवार की जाती है। पौध से पौध की दूरी 15 सेमी. रखते हैं।
खाद
एक एकड़ हेतु गोबर की खाद 2 ट्राली एवं वर्मी कम्पोस्ट 50 किग्रा. की आवश्यकता होती है।
निराई-गुड़ाई
खेत में खर-पतवार उगने से पौधों की वृद्धि पर असर पड़ता है। इसलिए समय-समय पर खेत की निराई करते रहते हैं, जिससे पौधों को बढ़ने का पूरा समय व जगह मिले। पूरी फसल अवधि में खेत की दो बार गुड़ाई करते हैं।
सिंचाई
टमाटर की खेती में नियमित रूप से नमी की आवश्यकता होती है। अतः बूंद विधि से हफ्ते-10 दिन पर सिंचाई करते रहना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में बहुत अधिक पानी न लगे, वरना पौधों में उकठा रोग लग जाता है।
तैयार होने की अवधि एवं तुड़ाई
अगस्त में रोपे गए पौधों में अक्टूबर में फल आने लगता है। पौधों में फल तीन बार आते हैं। पहली बार से अधिक दूसरी बार उत्पादन मिलता है, जबकि तीसरी बार में सबसे कम उत्पादन मिलता है। तीन-चार दिनों पर खेत में जाकर मांग के आधार पर अधकच्चे अथवा पके फलों की तुड़ाई करते हैं। दूसरी बार के लिए पुनः पौध तैयार कर नवंबर के अंतिम में पौध रोपते हैं, जिसका उत्पादन फरवरी के प्रथम सप्ताह में आना प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार देशी टमाटर की खेती का अधिक लाभ लिया जा सकता है।
बाजार उपलब्धता
वैसे तो टमाटर हर घर में रोज़ाना खाया जाता है। अत: बिकने की समस्या नहीं रहती है। लेकिन इससे अच्छा मुनाफ़ा बाजार में ही ले जाकर पाया जा सकता है। टमाटर के लिए मुख्य रूप से उरई एवं कानपुर का बाजार है, जहां के व्यापारी आकर गांव से ही खरीद कर ले जाते हैं।
Path Alias
/articles/tapaka-saincaai-vaidhai-sae-tamaatara-kai-khaetai
Post By: Hindi