पानी उठाने के अलावा जलचक्र मशीन से अन्य अनेक ग्रामीण कार्य जैसे आटा पिसाई, गन्ना पिराई, फसल गहाई, तेल प्रसंस्करण, चारा कटाई आदि कार्य उपर्युक्त मशीन को चलाकर किए जा सकते हैं। जिन विशेषज्ञ अधिकारियों व संस्थानों ने मंगल टर्बाइन की जांच कर इसकी उपयोगिता की प्रशंसा की उनकी सूची काफी लंबी है। आई.आई.टी. दिल्ली व विज्ञान शिक्षा केंद्र, बुंदेलखंड के अध्ययन में कहा गया है कि मंगल टर्बाइन की बुंदेलखंड का जल संकट कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
भारत में व अनेक अन्य देशों में प्रायः किसान नदी-नालों से सिंचाई या अन्य उपयोग का पानी उठाने के लिए डीजल व बिजली से चलने वाले पंपिंग सेट का उपयोग करते हैं। कुछ वर्ष पहले भारत के एक ग्रामीण वैज्ञानिक मंगल सिंह ने मंगल टर्बाइन का आविष्कार किया जिसका उपयोग कर डीजल या बिजली के बिना ही ऐसे अनेक स्थानों से किसान पानी लिफ्ट (उठा) कर सकते हैं। ऐसा तो नहीं है कि इस टर्बाइन का उपयोग हर स्थान पर हो सकता हो, पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि देश व दुनिया में नदियों-नालों पर ऐसे अनगिनत अनुकूल स्थान हैं जहां चेकडैम पर मामूली खर्च कर डीजल व बिजली की अपार बचत की जा सकती है। किसानों को तो लाभ मिलेगा उसके साथ इससे ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी व पर्यावरण की रक्षा करने में भी मदद मिलेगी। बुंदेलखंड निवासी मंगल सिंह को मंगल टर्बाइन के संदर्भ में पेटेंट तो काफी पहले प्राप्त हो गया था व उन्होंने अनेक स्थानों पर इसका सफल प्रदर्शन भी किया था। सरकारी व गैर सरकारी स्तर के अनेक उच्च कोटि के विशेषज्ञों ने मंगल टर्बाइन की सफलता व संभावनाओं की रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर दी थी।इस सब के बावजूद भ्रष्टाचार, लालफीताशाही व अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण मंगल टर्बाइन का वैसा तेज प्रसार देश व दुनिया में नहीं हो पाया जिसकी उम्मीद थी। अब जिस तरह किसानों का अर्थिक संकट बढ़ रहा है व साथ ही ग्रीनहाऊस गैसों का उत्सर्जन भी खतरनाक सीमा छू रहा है तो समय आ गया है कि इस गंभीर गलती को दूर किया जाए व मंगल टर्बाइन की संभावनाओं का पूरा लाभ प्राप्त किया जाए। मंगल टर्बाइन की जरूरी तकनीकी जानकारी देते हुए मंगल सिंह बताते हैं, ईंधन रहित मंगल जलचक्र टर्बाइन पम्प या पी.टी.ओ. मशीन में एक जलचक्र होता है जो एक स्टील शाफ्ट पर मजबूती से जुड़ा रहता है और यह शाफ्ट दो बियरिंग ब्लाक पर सधा रहता है। बियरिंग ब्लाक जलचक्र के दोनों तरफ बनाई गई मजबूत दीवालों पर बोल्टों द्वारा कसे रहते हैं। स्टील शाफ्ट गियर बाक्स से यूनिवर्सल कपलिंग द्वारा जुड़ा रहता है। गियर बाक्स द्वारा आऊटपुट शाफ्ट के चक्कर बढ़ाए जाते हैं, जिसके द्वारा सेंट्रीफ्यूगल पम्प द्वारा पानी उठाया जाता है। आऊटपुट शाफ्ट के दूसरे शाफ्ट पर पी.टी.ओ. पुली लगी रहती है जिसके द्वारा अन्य मशीनें चलाई जा सकती हैं। जलचक्र टर्बाइन मशीन की डिजाइन सरल है। जो कि विभिन्न माप में उपलब्ध है और बदलती हुई जरूरतों को पूरा करती है।
मंगल टर्बाइन की कुछ मुख्य विशेषताएं बताते हुए वे आगे कहते हैं कि पम्प या किसी अन्य मशीन को चलाने के लिए डीजल अथवा बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है। जलचक्र मशीन का डिजाइन सरल है अतः यह मशीन बनाने एवं चलाने में सरल है। पानी उठाने के अलावा जलचक्र मशीन से अन्य अनेक ग्रामीण कार्य जैसे आटा पिसाई, गन्ना पिराई, फसल गहाई, तेल प्रसंस्करण, चारा कटाई (कुट्टी कटाई) आदि कार्य उपर्युक्त मशीन को चलाकर किए जा सकते हैं। जिन विशेषज्ञ अधिकारियों व संस्थानों ने मंगल टर्बाइन की जांच कर इसकी उपयोगिता की प्रशंसा की उनकी सूची काफी लंबी है। आई.आई.टी. दिल्ली व विज्ञान शिक्षा केंद्र, बुंदेलखंड के अध्ययन में कहा गया है कि मंगल टर्बाइन की बुंदेलखंड का जल संकट कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
इतनी मान्यता प्राप्त करने के बावजूद ‘मंगल टर्बाइन’ के अविष्कारक की राह में बाधाएं उत्पन्न करने वाले अधिकारियों की कोई कमी नहीं रही है। इसकी एक वजह यह रही है कि मंगल सिंह एक बहुत प्रतिभाशाली ग्रामीण वैज्ञानिक होने के साथ-साथ किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और इस कारण समय-समय पर शक्तिशाली व्यक्तियों से उलझते रहते हैं। मंगल सिंह से हुए तरह-तरह के अन्याय की शिकायतें मिलने पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसकी जांच करवाई व इस जांच की रिपोर्ट अब सूचना के अधिकार का उपयोग कर प्राप्त हुई है। जांचकर्ता डॉ. बी.पी. मैथानी (पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान) ने इस रिपोर्ट में मंगल सिंह की प्रतिभा और साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए मंगल टर्बाइन के प्रसार की संस्तुति की है व साथ ही अब तक के अन्याय के लिए मंगल सिंह की क्षतिपूर्ति की संस्तुति भी की है। उन्होंने विभिन्न षड़यंत्रों का पर्दाफाश भी किया है, जिनके कारण मंगल सिंह का उत्पीड़न हुआ व साथ ही राष्ट्रीय संपत्ति व प्रतिभा की क्षति भी हुई।
जिस तरह मौजूदा समय में मंगल टर्बाइन की उपयोगिता निरंतर बढ़ती जा रही है, उसे ध्यान में रखते हुए सरकार को इसे देश में अनुकूल स्थानों पर उपयोग करने के लिए भरपूर प्रयास करने चाहिए व किसानों को इस बारे में जरूरी जानकारी उपलब्ध करवानी चाहिए।
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