बंपर फसल का तांडव

बुंदेलखंड में गत वर्ष अच्छी बारीश होने से फसल भी बढ़िया पैदा हुआ। जिससे किसान भी खुब खुश थे कि अपना कर्ज मुक्त हो जाएगा। इस वर्ष गेहूं की जबरदस्त फसल को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी कर्ज वसूली हेतु आक्रामक हो गए और गिरवी रखी भूमि की जब्ती हेतु धमकियां देने लगे। लेकिन खरीदी क्रेंद पर अधिकारियों के जानबूझ कर देरी करने से किसानों को निराशा हाथ लग रही है और अपना खेत बचाने के लिए आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं।

बाबूसिंह कुशवाह को दाहसंस्कार के लिए श्मशान ले जाया चुका है। उन्होंने ऋण न चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर ली थी। बुंदेलखंड को अजीब मर्मांतक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर गेहूं का बंपर स्टॉक है तो दूसरी ओर किसान आत्महत्याओं में जबरदस्त उछाल। किसान भयभीत होकर सरकारी गेहूं खरीदी केंद्र में और दूसरी ओर दुखी होकर पोस्टमार्टम गृह के बाहर बैठे हैं। उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के छोटे से नगर ओरई में ये दोनों स्थान कुछ ही गज के फासले पर स्थित हैं। किसान कृष्ण यादव का कहना है, ‘किसान के लिए यही जीवन एवं मृत्यु के बीच की दूरी है।’ अन्य किसानों की तरह यादव भी यहां पिछले एक हफ्ते से किराये के ट्रैक्टर पर अपना तीन टन गेहूं लादे डेरा डाले हुए हैं। पर सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। केंद्र के अधिकारी मल्कान सिंह का कहना है ‘हमारे पास भंडारण के लिए जूट के बोरे नहीं हैं।‘अधिकारियों के इस दावे के बाद कि उनके पास बोरों की कमी है, सरकारी खरीदी केंद्र पर कोई काम नहीं हो रहा है। लेकिन उनका यह कथन यादव के लिए मृत्युदंड से कमतर नहीं है। ट्रैक्टर का किराया असहनीय होते जाने की वजह से वह अब और इंतजार नहीं कर सकता।

उसका कहना है ‘कोई नहीं जानता कि बोरे कब आएंगे। मुझे अपना गेहूं 1285 रुपए प्रति क्विंटल के सरकारी मूल्य की बजाए 900 रुपए क्विंटल पर निजी व्यापारी को बेचना पड़ेगा। ‘वर्ष 2007 में पड़े भयंकर अकाल की वजह से उस पर पहले से ही पचास हजार रुपए का ऋण चढ़ गया है। यदि यादव को उसके गेहूं का सरकारी मूल्य नहीं मिला तो वह भी ऋण के जाल में फंस जाएगा और संभव है अनेक किसानों की तरह उसे भी अंततः पोस्टमार्टम गृह में ही पाया जाए। बसंतलाल के बेटे ने अपने पिता का किसान क्रेडिट कार्ड दिखाया, जिसकी मदद से जमीन को गिरवी रखा गया था। बसंत ने स्वयं का अंत कर लिया। कालीचरण कुशवाहा के बड़े भाई ने 14 जून को आत्महत्या कर ली। पोस्टमार्टम गृह के बाहर अपने भाई का शव लेने आए कबीलपुरा गांव के कुशवाहा का कहना था कि ‘उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से पच्चीस हजार रुपए का ऋण लिया लेकिन वापस नहीं कर पाए। उन्होंने औने-पौने दाम पर निजी व्यापारी को गेहूं बेच दिया।’ पिछले दो महीनों में ओरई में इस तरह के आठ मामले सामने आए हैं। आत्महत्या के इसी तरह के मामले बुंदेलखंड के महोबा, ललितपुर और हमीरपुर जिलों से भी प्रकाश में आए हैं। क्षेत्र में गत वर्ष सामान्य से बेहतर मानसून आया और फसल भी अच्छी हुई।

अत्यधिक फसल


इस वर्ष में गेहूं की 3.5 करोड़ टन बंपर फसल हुई है। कृषि अधिकारियों के अनुसार बुंदेलखंड के महोबा, हमीरपुर एवं झांसी जिलों में प्रति एकड़ गेहूं उत्पादन पंजाब से ज्यादा हुआ है। राज्य में गेहूं की खरीद में रिकॉर्ड 144 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह वर्ष 2011 में 16.40 लाख टन था, जो वर्ष 2012 में बढ़कर 40 लाख टन तक पहुंच गया है। वैसे सरकार का गेहूं की खरीदी में थोड़ा ही हिस्सा रहता है। परंतु क्षेत्र के छोटे किसानों के लिए समर्थन मूल्य बहुत मायने रखता है। सरकार द्वारा नियत न्यूनतम समर्थन मूल्य बाजार मूल्य से अधिक होता है। यहां कर्ज में डूबे हरनारायण चौरसिया के रिश्तेदार शोक मना रहे हैं। जबकि कर्जे में डूबे किसानों के लिए तो यह अच्छा समय माना जाना चाहिए था क्योंकि छः वर्ष से चले आ रहे अकाल का अभी तो अंत हुआ था और विपरीत मौसम और बढ़ती लागत के चलते किसान कर्ज में उलझ चुके थे। बुंदेलखंड में ग्रामीण बैंकों का कुल बकाया 4370 करोड़ रुपए है। सरकारी सर्वेक्षण बताते हैं कि राज्य के 70 प्रतिशत किसान कर्ज में डूबे हैं।

इस साल आई बंपर फसल ने भी किसानों की बहुत मदद नहीं की। खरीदी के प्रारंभ होते ही आत्महत्याओं की खबरें आने लगीं। इस क्षेत्र में मई-जून में 15 किसानों ने आत्महत्या की है। इस वर्ष जनवरी से 80 किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं को सीधे-सीधे कर्ज से जोड़ा जा सकता है। प्रचुर उत्पादन वाले वर्ष 2011 में भी इस क्षेत्र के 519 किसानों ने आत्महत्या की थीं।

हताशा से प्रेरित बिक्री


बुंदेलखंड के सभी जिलों में 10 जून से खरीदी रोक दी गई थी। किसानों का कहना है कि बोरों की अनुपलब्धता तो महज बहाना है। ओरई के गरहर गांव के नेता लालूराम निरंजन का कहना है ‘खरीदी केंद्र में नियुक्त अधिकारी जानबूझकर खरीदी में देरी कर रहे हैं, जिससे कि किसान अपना गेहूं कम कीमत पर निजी व्यापारियों को बेचने पर मजबूर हो जाएं। इसके बाद व्यापारी इसी गेहूं को न्यूनतम समर्थन मूल्य, जो कि खरीदे गए मूल्य से अधिक है, पर सरकार को बेच देंगे।’ सामाजिक कार्यकर्ता संजय सिंह का कहना है कि ‘यह थोपी हुई दुखद बिक्री है।’ पचास वर्षीय जसोदा बाई चिंतित हैं क्योंकि बारिश सिर पर है और वे महोबा खरीदी केंद्र पर अपना गेहूं बेचने के लिए ट्रैक्टर किराए पर लेकर आई हैं। उनका कहना है ‘मुझे नहीं पता सरकार कब खरीदना शुरू करेगी। मैं क्या कर सकती हूं।’ वैसे कुछ मीटर दूर स्थित दुकान पर अपना गेहूं बेचकर जसोदा बाई बारिश में गेहूं खराब हो उसके पहले कुछ पा सकती हैं।

खरीदी केंद्रों पर हो रही इस देरी के फलस्वरूप ललितपुर जिले के कई गांवों ने तय कर लिया है कि वे अपना गेहूं सरकार के पास नहीं ले जाएंगे। भले ही कम मूल्य मिले लेकिन वे इसे सीधे व्यापारियों को बेच देंगे। जिले की बुडवानी तहसील के सरपंच का कहना है कि ‘हम कम से कम ट्रैक्टर किराए में तो धन नष्ट नहीं करें।’ (30 जून को सरकार आधिकारिक तौर पर खरीदी बंद कर दी गई है।) देश के अन्य भागों से अलग बुंदेलखंड में ठंड में अधिक फसलें उगाई जाती हैं। मानसून के आते ही किसान अपने खेतों को पशुओं के चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं। यह पुरानी पद्धति ‘अन्नप्रथा’ कहलाती है, जो कि किसानों को गर्मियों में फसल उगाने की अनुमति नहीं देती। कानपुर स्थित क्राइस्ट चर्च कॉलेज के लेक्चरर के. वर्मा, जिन्होंने इस क्षेत्र की किसान आत्महत्याओं पर शोध किया है, का कहना है ‘ग्रामीण कृषि ऋण प्रणाली आत्महत्याओं में बड़ी भूमिका अदा करती है। यही वह समय होता है जब बैंक और वित्तीय संस्थान कर्ज वसूली प्रक्रिया में तेजी लाते हैं और किसान के सामने अपनी सम्पत्ति एवं सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने का संकट खड़ा हो जाता है।’

तेजुआ साहू जिनके 65 वर्षीय पिता ने 14 जून को आत्महत्या कर ली थी, का कहना है ‘पहले हमें उम्मीद रहती थी कि हम बुरा समय काट लेंगे। पर अब ऐसी कोई उम्मीद नहीं हैं क्योंकि अब हमें कहीं से भी मदद नहीं मिलती है।’ अंतिम संस्कार से लौटते हुए उसने अपने पिता का किसान क्रेडिट कार्ड दिखाते हुए कहा कि यही उसके पिता की मृत्यु के पीछे का कारण है। वे कहते हैं ‘सरकार ने हमारी जमीन गिरवी रख ली। मेरे पिता को डर बैठ गया कि अब यह चली जाएगी।’ किसान क्रेडिट कार्ड को लेकर यदि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के दिशानिर्देशों का पालन किया जाए तो किसानों को कर्ज के जाल से बचाया जा सकता है। इसके अंतर्गत एक लाख रुपए तक के ऋण पर जमीन गिरवी रखने से छूट है और यह भी अनुमति दी गई है कि कर्ज की वसूली 10 वर्षों की किश्तों में की जाए। जिन किसानों ने आत्महत्या की हैं, उनमें से अधिकांश ने 20 से 80 हजार रुपए के मध्य ही कर्जा लिया था। किसान भी साहूकारों को कर्ज वापसी में प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वे उन्हें बहुत हैरान करते हैं और उनकी ब्याज दरें भी बहुत ज्यादा होती हैं। इस वर्ष गेहूं की जबरदस्त फसल को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी कर्ज वसूली हेतु आक्रामक हो गए और गिरवी रखी भूमि की जब्ती हेतु धमकियां देने लगे। निरंजन का कहना है ‘अपनी एकमात्र सम्पत्ति गवां देने के डर ने किसानों को आत्महत्या करने को प्रेरित कर दिया। इससे उनकी जमीन सरकार के शिकंजे से मुक्त हो जाती है।’

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