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आखिर क्यों उफन जाती हैं नदियां
Posted on 28 Aug, 2010 07:27 AM


मई-जून के महीनों में जब तीन-चौथाई देश पानी के लिए त्राहि -त्राहि कर रहा था, पूर्वोत्तर राज्यों में भी बाढ़ से तबाही का दौर शुरू हो चुका था। अभी बारिश के असली महीने सावन की शुरुआत है और लगभग आधा हरियाणा, पंजाब का बड़ा हिस्सा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार का बड़ा हिस्सा नदियों के रौद्र रूप से पानी-पानी हो गया है।

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निहित स्वार्थ का पर्याय ‘नदी जोड़ परियोजना’
Posted on 18 Sep, 2009 09:02 PM अजीब विरोधाभास है कि एक तरफ तो भारत सरकार की केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय इस परियोजना पर आगे बढ़ने की बात कहती है तो दूसरी तरफ सत्ताधारी दल के ही राहुल गांधी एवं जयराम रमेश सरीखे प्रमुख नेता इसे विनाशकारी बताते हैं। चाहे जो भी हो, जब प्रस्तावित 30 जोड़ों में से एक की भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार न हो तो इस परियोजना के पक्ष में दावे खोखले नजर आते हैं।

अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी के सबसे चहेते नेता राहुल गांधी ने चेन्नई में एक प्रेस सम्मेलन में कहा कि नदी जोड़ योजना भारत के पर्यावरण के लिए बहुत ही विनाशकारी है। राहुल गांधी के बयान के अगले ही दिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री श्री के करूणनिधि ने इस परियोजना के पक्ष में दलील दी। इस तरह यह मुद्दा एक बार फिर जीवंत हो गया है। अब यदि प्रमुख सत्ताधारी दल के एक प्रमुख नेता की ओर से ऐसे बयान आ रहे हैं तो इसका निहितार्थ जानना भी जरूरी है। यह तो जानी हुई बात है कि नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना भारत में जल संसाधन क्षेत्र में अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है। सन 2001 के कीमत स्तर पर इस पूरी परियोजना की प्रस्तावित लागत ‘पांच लाख साठ हजार करोड़’ आंकी गई थी।

कराहती नदियां
Posted on 31 Jul, 2010 09:53 AM आमी का गंदा जल सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिलता है। सोहगौरा से कपरवार तक राप्ती का जल भी बिल्कुल काला हो गया है। कपरवार के पास राप्ती सरयू नदी में मिलती है। यहां सरयू का जल भी बिल्कुल काला नज़र आता है। बताते हैं कि राप्ती में सर्वाधिक कचरा नेपाल से आता है। उसे रोकने की आज तक कोई पहल नहीं हुई। पिछले दिनों राप्ती एवं सरयू के जल को इंसान के पीने के अयोग्य घोषित किया गया। कभी जीवनदायिनी रहीं हमारी पवित्र नदियां आज कूड़ा घर बन जाने से कराह रही हैं, दम तोड़ रही हैं। गंगा, यमुना, घाघरा, बेतवा, सरयू, गोमती, काली, आमी, राप्ती, केन एवं मंदाकिनी आदि नदियों के सामने ख़ुद का अस्तित्व बरकरार रखने की चिंता उत्पन्न हो गई है। बालू के नाम पर नदियों के तट पर क़ब्ज़ा करके बैठे माफियाओं एवं उद्योगों ने नदियों की सुरम्यता को अशांत कर दिया है। प्रदूषण फैलाने और पर्यावरण को नष्ट करने वाले तत्वों को संरक्षण हासिल है। वे जलस्रोतों को पाट कर दिन-रात लूट के खेल में लगे हुए हैं। केंद्र ने भले ही उत्तर प्रदेश सरकार की सात हज़ार करोड़ रुपये की महत्वाकांक्षी परियोजना अपर गंगा केनाल एक्सप्रेस-वे पर जांच पूरी होने तक तत्काल रोक लगाने के आदेश दे दिए हों, लेकिन नदियों के साथ छेड़छाड़ और अपने स्वार्थों के
केन का दर्द
Posted on 24 Feb, 2010 02:51 PM वर्तमान के बुन्देलखंड पर गौर करें तो अकाल से असमय मौतें, आत्महत्यायें, भुखमरी और कर्ज की यात्रा में सुरताल करते हताश किसानों का चित्र उभर कर आता है। शहरों का गंदा पानी, शहरों के कचरे से पटते तालाब, 75 प्रतिशत तालाबों पर जारी अतिक्रमण, खुले में शौच निपटान और बजबजाती नालियों से बुन्देलखंड के शहरों का एक और चित्र बनता है। बांदा जिले की एक मात्र जलधारा केन जो कि उत्तर एवं मध्य विन्ध्य क्षेत्र बुन्देलख
अभिशाप या वरदान : केन- बेतवा गठजोड़
Posted on 08 Feb, 2010 11:14 AM

सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री महोदय, (प्रशासनिक कार्यालय)
भारत सरकार , नई दिल्ली

विषय: केन बेतवा गठजोड़ समझौता 25 अगस्त 2005 के बुंदेलखंड उप्र - मप्र विन्ध्य क्षेत्र के संदर्भ में -


महोदय,
केन बेतवा नदी को जोड़ने के लिये 25 अगस्त 2005 को एक समझौता ज्ञापन पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय मुलायम सिंह यादव, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री प्रिय रंजनदास मुंशी द्वारा आपकी उपस्थिति में हस्ताक्षर किये गये हैं। उक्त समझौता ज्ञापन के मुताबिक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर)

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