झारखंड

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शुष्क भूमि कृषि तकनीक
Posted on 11 Dec, 2010 11:32 AM झारखंड में ज्यादातर वर्षा जून से सितम्बर के मध्य होती है। इसलिए किसान सिंचाई के अभाव में प्राय: खरीफ फसल की ही बुआई करते और रबी की कम खेती करते हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय स्थित अखिल भारतीय सूखा खेती अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ऐसी तकनीक का विकास किया गया है, जिसके अनुसार मिट्टी, जल एवं फसलों का उचित प्रबंधन कर असिंचित अवस्था में भी ऊँची जमीन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
मिट्टी जाँच: महत्व एवं तकनीक
Posted on 11 Dec, 2010 10:27 AM मिट्टी के रासायनिक परीक्षण के लिए पहली आवश्यक बात है - खेतों से मिट्टी के सही नमूने लेना। न केवल अलग-अलग खेतों की मृदा की आपस में भिन्नता हो सकती है, बल्कि एक खेत में अलग-अलग स्थानों की मृदा में भी भिन्नता हो सकती है। परीक्षण के लिये खेत में मृदा का नमूना सही होना चाहिए।
कारगर प्रयास हो, तो संभव है सुखाड़ से मुक्ति
Posted on 22 Sep, 2010 09:55 AM सुखाड़ और अकाल पलामू की नियति बन चुकी है। मानसून की तानाशाही के कारण। झारखंड का यह इलाका गुजरे कई सालों से सूखे की चपेट में है। नतीजा यह कि इसने आजीविका के संकट से लेकर भुखमरी, पलायन और कृषि समस्या तक को बुरी तरह प्रभावित किया है। पेश है इस संबंध में शोधपरक रिपोर्ट की पांचवी और अंतिम कड़ी :
सुखाड़ व अकाल में ‘तीसरी फ़सल’
Posted on 22 Sep, 2010 09:45 AM
सुखाड़ और अकाल पलामू की नियति बन चुकी है। मानसून की तानाशाही के कारण। झारखंड का यह इलाका गुजरे कई सालों से सूखे की चपेट में है। नतीजा यह कि इसने आजीविका के संकट से लेकर भुखमरी, पलायन और कृषि समस्या तक को बुरी तरह प्रभावित किया है। पेश है इस संबंध में शोधपरक रिपोर्ट की तीसरी कड़ी :
जुड़ेंगी झारखंड की पांच नदियां
Posted on 22 Sep, 2010 09:16 AM रांची : झारखंड में तीन प्रोजेक्ट के तहत पांच नदियों को जोड़ा जायेगा। जल संसाधन विभाग ने इससे संबंधित प्रस्ताव राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) को भेजा है।

बताया जाता है कि रिपोर्ट की विस्तृत विवरणी भी भेज दी गयी है। डीपीआर तैयार करने के लिए एनडब्ल्यूडीए ने अब राज्य सरकार से एक कार्यालय के लिए जगह मांगी है।
फूलों की खेती से महका जीवन
Posted on 13 Sep, 2010 02:43 PM
झारखंड की उपराजधानी के किसान सोनोत हांसदा ने किसान के रूप में अपनी एक अलग पहचान बना ली है।

हांसदा के जीवन में अचानक परिवर्तन आया और वे मिट्टी से सोना पैदा करने की लगन में आज किसानों के आदर्श बन गए। बी.ए. तक शिक्षित हांसदा को चार साल पूर्व कृषि में कोई रूचि नहीं थी। भूतपूर्व सैनिक के पुत्र होने के कारण एवं जमीन की बहुतायत से उन्हें रोजी रोटी की कोई समस्या नहीं थी।
दसम जल प्रपात
Posted on 16 Aug, 2010 10:28 PM
छोटानागपुर को झरनों और चट्टानी नदियों का क्षेत्र कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।


आबादी बढने के साथ ही वनों में वृक्षों की सघनता भले कम हो गई हो मगर रैयती जमीन पर अब भी हरियाली बुरी नहीं है। दस किलोमीटर रास्ते के दोनों ओर पलास की हरियाली पर कालिमा आने लगी थी। उसकी लालिमा तो करीब छह माह पूर्व ही खत्म हो गई थी। पलास की लाली से आंखों को जो सकून मिलता है, किसानों को उससे कहीं अधिक सकून उस पर होने वाली लाह की खेती से मिलता है

जोगी का डेरा नाम है उस स्थल का, जहां हमें जाना था। पेट्रोल पंप के मालिक बीबी शरण, मेघालय में व्याख्याता रह चुके चौहान जी और कुछ गांव वालों के साथ वहां जाने का

अधर में लटकी जलाशय परियोजना
Posted on 24 Jul, 2010 01:11 PM
देवघर ज़िले में चल रही दो बड़ी बहुप्रतीक्षित एवं बहुचर्चित जलाशय परियोजना का निर्माण कार्य अनियमितता, भ्रष्टाचार, लापरवाही एवं राजनीतिक दावपेंच के चंगुल में फंस कर रह गया है। दोनों ही जलाशय परियोजनाओं पर अब तक अरबों रुपये ख़र्च किए जा चुके हैं। फिर भी निर्माण कार्य अब तक पूरा नहीं हुआ है। यह निर्माण कार्य जल संसाधन विभाग के अंतर्गत सिंचाई प्रमंडल देवघर द्वारा किया जा रहा है। पुनासी जलाशय परियोजना का निर्माण कार्य 1977 में शुरू हुआ। इसकी अनुमानित लागत 56 करोड़ रुपये थी। 33 वर्ष बीतने के बाद भी इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है। अब तक इस पर 117 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। ग़ौरतलब है कि योजना राशि में चार बार संशोधन कर कुल अनुमानित
कोयला खानों की आग और मनुष्य पर मंडराते खतरे - एक वर्कशॉप
Posted on 21 Oct, 2009 02:53 PM झारखण्ड के सेंट्रल कोलफ़ील्डस लिमिटेड की कुज्जू कोयला खदान में लगी आग अब धीरे-धीरे समूचे इलाके के लिये एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। एक तरफ़ जहाँ इस आग से पर्यावरण सम्बन्धी गम्भीर चिंताएं उठने लगी हैं, वहीं दूसरी ओर मानव आबादी और बसाहटों पर मंडराते खतरे के खिलाफ़ भी आवाज़ें उठने लगी हैं।
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