देवघर ज़िले में चल रही दो बड़ी बहुप्रतीक्षित एवं बहुचर्चित जलाशय परियोजना का निर्माण कार्य अनियमितता, भ्रष्टाचार, लापरवाही एवं राजनीतिक दावपेंच के चंगुल में फंस कर रह गया है। दोनों ही जलाशय परियोजनाओं पर अब तक अरबों रुपये ख़र्च किए जा चुके हैं। फिर भी निर्माण कार्य अब तक पूरा नहीं हुआ है। यह निर्माण कार्य जल संसाधन विभाग के अंतर्गत सिंचाई प्रमंडल देवघर द्वारा किया जा रहा है। पुनासी जलाशय परियोजना का निर्माण कार्य 1977 में शुरू हुआ। इसकी अनुमानित लागत 56 करोड़ रुपये थी। 33 वर्ष बीतने के बाद भी इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है। अब तक इस पर 117 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। ग़ौरतलब है कि योजना राशि में चार बार संशोधन कर कुल अनुमानित राशि को बढ़ाकर 482 करोड़ रुपये कर दिया गया, फिर भी निर्माण कार्य अधूरा है।
विभागीय पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की लापरवाही के कारण आज सरकार को करोड़ों रुपये का ऩुकसान हो रहा है, जिसे रोकने अथवा बचाने हेतु स्थानीय राजनीतिज्ञों ने भी कोई दिलचस्पी नहीं ली। वहीं दूसरी ओर, इस पर राजनितिक रोटियां खूब सेंकी गईं। देवघर के एक चर्चित नेता, जिनका निवास स्थान परियोजना क्षेत्र के निकट है, इस परियोजना में उनकी भूमिका भी का़फी सक्रिय रही है।सच तो यह है कि जो भी थोड़ा बहुत काम पहले हुआ था, वह भी ध्वस्त होने लगा है। इस योजना को पूरा करने में चार प्रमंडलीय एवं एक सर्किल कार्यालय कार्यरत हैं, जहां 200 कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों पर लगभग 35 लाख रुपये प्रतिमाह ख़र्च हो रहे हैं। सिंचाई प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता अमरेंद्र कुमार सिंह के अनुसार 2007-08 से आवंटन बंद है, जिसके कारण काम ठप है। पदाधिकारी एवं कर्मचारी स़िर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रहे हैं। इस स्थिति में आश्चर्य वाली बात यह है कि परियोजना के कार्य हेतु स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया बोकारो से विशेष गुणवत्ता वाली 700 मीट्रिक टन छड़ मंगवाई गई थी, जिसमें जंग लग रहा है। इसे बचाने की कोशिश नहीं की गई। छड़ की वर्तमान स्थिति के बारे में अभियंताओं कहना है कि छड़ परियोजना में लगने लायक नहीं रह गई है। इसकी नीलामी ही करनी होगी ताकि विभाग को बची-खुची राशि मिल सके। अभियंता के अनुसार विभागीय आलाधिकारियों को नीलामी हेतु पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई है।
विभागीय पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की लापरवाही के कारण आज सरकार को करोड़ों रुपये का ऩुकसान हो रहा है, जिसे रोकने अथवा बचाने हेतु स्थानीय राजनीतिज्ञों ने भी कोई दिलचस्पी नहीं ली। वहीं दूसरी ओर, इस पर राजनितिक रोटियां खूब सेंकी गईं। देवघर के एक चर्चित नेता, जिनका निवास स्थान परियोजना क्षेत्र के निकट है, इस परियोजना में उनकी भूमिका भी काफी सक्रिय रही है। पिछले दो दशकों से उनकी राजनितिक धुरी पुनासी जलाशय परियोजना ही रही है। योजना हेतु अधिगृहीत ज़मीनों के विस्थापितों को मुआवजा का मामला उनका राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार अब तक 450 विस्थापितों को मुआवजे की राशि का भुगतान किया जा चुका है और 302 लोगों को भुगतान किया जाना है। दूसरी ओर ग्रामीणों की सूची में का़फी अंतर है तथा मुआवजे की राशि 10 लाख करने की मांग भी विवाद का कारण बनी हुई है, जिसके कारण ग्रामीण काम में बाधा उत्पन्न करते हैं। राज्य के मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी दी जा चुकी है, लेकिन आज तक इस दिशा में सार्थक पहल नहीं हो पाई है। हालांकि उक्त चर्चित राजनीतिज्ञ हमेशा ही बैठकों व सभाओं में पुनासी जलाशय परियोजना को पूरा होने की बात करते हैं। मगर, सच्चाई जनता के सामने है। पिछले दो दशकों से देवघरवासियों को पेयजल की समस्या से जूझना पड़ रहा है और ज़िला प्रशासन पेयजल समस्या का समाधान करने में नाकाम साबित हो रहा है। पूरे इलाक़े का जल स्तर का़फी नीचे चला गया है। पुनासी जलाशय योजना से ही पेयजल आपूर्ति कर शहर को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध किया जा सकता है। साथ ही आसपास के क्षेत्रों में कृषि हेतु सिंचाई की व्यवस्था हो सकेगी। वर्तमान हालातों में दूर-दूर तक इन समस्याओं का हल होता नहीं दिखता। दूसरी ओर अजय बराज परियोजना का भी कुछ ऐसा ही हाल है। नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से 8643.56 लाख रुपये की लागत से बनी अजय बराज परियोजना आज उद्घाटन की बाट जोह रहा है। परियोजना कार्य 10.08.2006 में ही पूरा हो चुका है, लेकिन विस्थापितों की समस्या आज तक लंबित है। यहां भी विस्थापितों की सूची एवं मुआवजे की राशि गले की हड्डी बनी हुई है। यहां भी स्थानीय दबंग राजनीतिज्ञ विस्थापितों के साथ हैं।
उक्त दोनों ही परियोजनाओं में सरकार की अरबों की राशि ख़र्च हो रही है, लेकिन स्थानीय राजनीतिज्ञों की इच्छाशक्ति की कमी एवं चुनावी मुद्दा बने रहने के कारण ज़िले की बहुचर्चित एवं बहुप्रतीक्षित जलाशय परियोजना अधर में लटक कर रह गई है। ज़िले में समुचित सिंचाई और पेयजल की समस्या से जनता कराह रही है, बेरोज़गारी बढ़ रही है और मज़दूर पलायन कर रहे हैं। इस पूरे मामले में ज़िला प्रशासन के साथ सरकार भी मूकदर्शक बनी हुई है।
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