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झारखंड
मछली पालन कला है और खेल भी
Posted on 02 Jul, 2013 12:45 PM डोकाद गांव में अब खेती और जंगल के अलावा मछली पालन भी अहम रोजगार का रूप धारण कर चुका है। जिसके कारण गांव में लोगों की न सिर्फ आमदनी बढ़ी है बल्कि रोजगार के नाम पर होने वाला पलायन भी रुक गया है। अब नौजवान परदेस जाकर कमाने की बजाय विजय ठाकुर की तरह गांव में ही मछली पालन में रोजगार ढ़ूढ़ंने लगे हैं। यहां किसान कर्ज लेने के एक साल में ब्याज समेत चुका देता है। किसी भी इलाके के विकास के लिए केवल सरकार की योजनाएं ही काफी नहीं है। यदि समुदाय चाहे तो सरकारी योजनाओं का इंतजार किए बगैर मिसाल कायम कर सकता है। रांची से 35 किलोमीटर दूर जोन्हा पंचायत इसका उदाहरण है। जिसने विगत 6 सालों से मछली पालन से समृद्धि तो की है साथ ही गांव के विकास और पानी के श्रोत तथा मलेरिया जैसे बीमारियों पर भी काबू पा लिया। अनगड़ा प्रखंड का डोकाद गांव के विजय ठाकुर कभी अखबार से जुड़े हुए थे। लेकिन गांव के विकास और सामाजिक काम करने के प्रति उनकी इच्छाशक्ति के आगे उन्होंने इस काम को छोड़ दिया और गांव में ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करने लगे।मुजफ्फरपुर के मतलूपुर में 85 एकड़ में बने 30 तालाब
Posted on 25 Nov, 2012 01:16 AMमछलीपालन की दिशा में बड़ा प्रयास मुजफ्फरपुर में बंदरा प्रखंड के मतलूपुर के किसानों ने किया है। यहां 85 एकड़ भूमि पर एक साथ मछलीपालन किया जायेगा। इसमें 24 किसानों की भूमि शामिल है। इसकी शुरुआत हो गयी है। तालाब बन गये हैं। दो तालाबों में मछलीपालन का काम शुरू हो चुका है। बाकी में फरवरी तक मछलीपालन शुरू हो जायेगा। यह बिहार का अभी तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट माना जा रहा है, जब यहां से पूरी तरह से मछलीगांव की एटीएम हैं तालाब
Posted on 24 Nov, 2012 12:01 PMसामान्य खेतों में जहां साल भर खूब मेहनत के बावजूद फसल उत्पादन से अच्छी आय नहीं होती है, वहीं तालाब बनवा कर मछलीपालन अधिक लाभकारी है। बिहार में बेगूसराय के किसान जयशंकर कुमार को मात्र 38 कट्ठे की जमीन पर तालाब से चार से छह लाख रुपये सालाना आय हो रही है। जयशंकर की तरह ही राज्य के कई किसान अब सामान्य खेती के बदले समेकित खेती करने लगे हैं। समेकित खेती के लिए तालाब जरूरी है। बिहार में कृषि और मत्स्यतालाब खुदाई में लें सरकारी मदद
Posted on 24 Nov, 2012 01:44 AMतालाब एवं कुएं की महत्ता से हम सभी वाकिफ हैं। हममें से कई लोग तालाब एवं कूप निर्माण कराना चाहते भी हैं, लेकिन पैसे के अभाव में हमारी योजनाएं फेल हो जाती है। ऐसे में निराश होने की जरूरत नहीं है। विभित्र प्रकार की नकारात्मकताएं होने के बाद भी कुछ चीजें साकारात्मक भी है जिसके जरिये स्थिति को बदला जा सकता है। सरकार के ग्रामीण विकास, कृषि, मत्स्य, जल संसाधन, वन आदि विभागों के पास तालाब एवं कूप निर्माणन होने दें तालाबों का अतिक्रमण
Posted on 22 Nov, 2012 09:41 AMतालाब का न केवल मनुष्य बल्कि धरती के विभित्र जीव-जंतुओं के जीवन में बड़ा योगदान है। इसके बिना जीवन संकट से घिर जाता है। ऐसे में तालाब को बचाने के लिए आप आगे आयें। किसी भी परिस्थिति में तालाबों का अतिक्रमण न होने दें। आप इसके खिलाफ लडें.। तालाब अतिक्रमणकारियों के खिलाफ आप शासन-प्रशासन के पास शिकायत करें। इससे भी बात न बने तो कोर्ट से गुहार लगायें। भारत का उच्चतम न्यायालय आपके साथ है। जगपाल सिंह एवंजलसंग्रह में मनरेगा का है योगदान
Posted on 22 Nov, 2012 09:26 AMजल संग्रह में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की योजनाओं का भरपूर योगदान है। पूरे झारखंड में मनरेगा के जरिये एक लाख से ज्यादा तालाब एवं बांध बनाये गये हैं। लगभग 79 हजार सिंचाई कूपों का निर्माण हुआ है। चूंकि मनरेगा मजदूर के हित पर आधारित है, इसलिए इसके निर्माण कार्य बिना मशीन के किया जाता है। ऐसे में तालाबों या बांधों की संरचना भी बहुत छोटी होती है। निर्माण के दौरान तालाब के मतालाब हैं तो गांव हैं
Posted on 21 Nov, 2012 09:45 AMझारखंड की कुल आबादी का 80 प्रतिशत कृषि एवं इससे संबंधित कार्यों पर निर्भर है। जबकि कृषि योग्य भूमि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 48 प्रतिशत ही है। इसमें भी सिंचाई सुविधा महज 10 प्रतिशत पर ही उपलब्ध है। जबकि राष्ट्रीय औसत 40 प्रतिशत है। रबी में तो यह और घट जाता है। यानी 90 प्रतिशत से अधिक कृषि वर्षा पर आधारित है। जिस साल बारिश अच्छी हुई उस साल ठीक-ठाक उत्पादन होता है और जिस साल बारिश नहीं हुई, उस साल स्थिति चिंताजनक हो जाती है। पलायन एवं बेरोजगारी बढ़ जाती है।सामुदायिक वन प्रबंधन से जंगलों का लौटाया जीवन
Posted on 01 Aug, 2012 05:48 PMडम-डमा-डम-डम-डम, वन की रक्षा अपनी सुरक्षावनों का न करो नाश, जीवन हो जाएगा सत्यानाश
डम-डमा-डम-डम-डम, वन की रक्षा अपनी सुरक्षा
रऊफ अंसारी ने वनों की सुरक्षा व संवर्धन के लिए गांव वालों को संगठित करने की मुहीम शुरू की। पंचायत मुख्यालय डमडोईया गांव के चौपाल पर ग्रामीणों की बैठक बुलाई। बैठक में जंगल की सुरक्षा व संवर्धन की बात उठाई, तो सबने उनका समर्थन किया। राजेश्वर मोची और बलि महतो उनकी मुहीम के अहम कड़ी बने। राजेश्वर ने बैठक में ही जंगलों की सुरक्षा को लेकर प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया। बलि महतो ने जंगल बचाने के लिए आजीवन जंगल की सुरक्षा में लगे रहने का वचन दिया। गांव के अन्य लोगों ने भी उन्हें साथ देने का वादा किया।
जंगल बचाने के लिए 36 वर्षीय राजेश्वर मोची का प्रचार का तरीका थोड़ा अलग है। वह अपने बाएं कंधे से लटकाए ढाक के ताल से तान मिलाकर लोगों से जंगल बचाने की गुजारिश करते फिरता है। वह ढाक बजाकर लोगों को बड़े ही अनोखे अंदाज में यह बताता है कि जंगल जीवन के लिए जरूरी है। अगर जंगल नहीं बचेंगे तो जीवन भी संकट में पड़ जाएगा।उग्रवाद की गोद में विकास की पहल
Posted on 22 Feb, 2011 01:37 PMलगभग सत्ताइस साल पहले चार सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नेतरहाट के वीरान इलाके बिशुनपुर में आदिवासियों के बीच विकास का अलख जगाना शुरू किया। आज वह प्रयास जादू की तरह अपना असर दिखा रहा है। उग्रवाद से गंभीर रूप से ग्रसित जिन इलाकों में पुलिस भी नहीं घुसती वहाँ भी इस संस्था की सहज पहुँच है।
झारखंड विधानसभा से सेवानिवृत्त होने के बाद विकास भारती से जुड़कर सामाजिक विकास में योगदान कर रहे अयोध्यानाथ मिश्र बताते हैं कि झारखंड में ऐसी संस्थाओं के प्रयासों की बेहद आवश्यकता है।विकास भारती की स्थापना 1983 में अशोक भगत, डॉ. महेश शर्मा, रजनीश अरोड़ा और स्वर्गीय डॉ. राकेश पोपली की पहल पर हुई थी। विकास भारती के वर्तमान सचिव अशोक भगत बिशनपुर के आदिवासी समुदाय के बीच कार्य करने के मिशन के साथ आए थे। उन्होंने क्षेत्र का सर्वेक्षण किया तो महसूस
पानी- सप्लाई 33, खपत 6 और बर्बादी 27 एमजीडी की
Posted on 31 Dec, 2010 09:06 AM
रांची. राजधानी में पेयजल उपभोक्ताओं को सप्लाई किए जाने वाले 33 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) पानी में से सिर्फ छह एमजीडी ही इस्तेमाल होता है। शेष 27 एमजीडी पानी कहां जाता है, इसका हिसाब नगर निगम के पास नहीं है, जबकि इतना पानी राजधानी के लगभग 7.50 लाख उपभोक्ता की जल संबंधी जरूरत पूरी कर सकता है।