मछलीपालन की दिशा में बड़ा प्रयास मुजफ्फरपुर में बंदरा प्रखंड के मतलूपुर के किसानों ने किया है। यहां 85 एकड़ भूमि पर एक साथ मछलीपालन किया जायेगा। इसमें 24 किसानों की भूमि शामिल है। इसकी शुरुआत हो गयी है। तालाब बन गये हैं। दो तालाबों में मछलीपालन का काम शुरू हो चुका है। बाकी में फरवरी तक मछलीपालन शुरू हो जायेगा। यह बिहार का अभी तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट माना जा रहा है, जब यहां से पूरी तरह से मछली उत्पादन शुरू हो जायेगा। बिहार के साथ अन्य प्रदेशों में यहां की मछली जाने लगेगी। पूसा विवि के पूर्व कुलपति गोपाल जी त्रिवेदी के मार्गदर्शन में इस प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है।
मुजफ्फरपुर के मतलूपुर में इतिहास रचने की तैयारी हो रही है। यहां चवर की जमीन पर मछली पालन के लिए तालाब बनाये गये हैं। 85 एकड़ में एक साथ तीस तालाब बने हैं। इसके लिए 24 किसान साथ आये हैं। इन सभी ने अपनी जमीन दी है। प्रोजेक्ट में सबसे अधिक जमीन पूसा विवि के पूर्व कुलपति डॉ गोपालजी त्रिवेदी की है। यह बिहार में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। इसके मैनेजर फिसरीज में बैचलर की डिग्री लेनेवाले शिवराज हैं, जो पूरे प्रोजेक्ट की जिम्मेवारी को संभाल रहे हैं। मछली पालन के अलावा यहां ट्रेनिंग सेंटर बनाये जाने की योजना है, जिसमें मछली पालन की ट्रेनिंग दी जायेगी।
प्रोजेक्ट का उद्घाटन मंत्री गिरिराज सिंह ने किया था। मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार डॉ मंगला राय इसे देखने के लिए आये थे। उन्होंने प्रोजेक्ट की जम कर तारीफ की थी। डॉ राय ने कहा था, प्रोजेक्ट देख कर लगता है बिहार बदल रहा है। आनेवाले दिनों में यह प्रोजेक्ट मील का पत्थर साबित होगा।
प्रोजेक्ट के सलाहकार रमन त्रिवेदी हैं, जो डॉ गोपालजी त्रिवेदी के बेटे हैं। उन्होंने बताया, इतने ब.डे पैमाने पर मछली पालन शुरू करने के पीछे तीन कारण हैं। पहला बिहार में अभी आंध्र प्रदेश व अन्य जगहों से मछली आयात की जाती है। हम लोग चाहते हैं, अगर अपने प्रदेश में मछली का उत्पादन बढे.गा तो बाहर से मछली आयात नहीं करनी प.डेगी। हम लोग मछली उत्पादन के मामले में आत्म निर्भर ही नहीं बनना चाहते हैं, बल्कि हमारी चाहत है, हम दूसरे प्रदेशों को भी मछली सप्लाई करें।
दूसरी वजह यह है, जिस जमीन पर यह पूरा प्रोजेक्ट लगा है। वह लो लैंड (चवर) का इलाका है। यहां कभी खेती नहीं होती थी। साल भर इस जमीन पर पानी भरा रहता था। हम लोगों को इसके जरिये यह बताना चाहते हैं, वह चाहें तो चवर के इलाके को भी इस तरह के प्रोजेक्ट लगा कर मुनाफा कमा सकते हैं। जो जमीन सालों से खाली पड़ी है। वह कमाई का जरिया बन सकती है।
तीसरी वजह, इस प्रोजेक्ट में युवा प्रतिभाएं काम कर रही हैं। प्रोजेक्ट मैनेजर भी युवा हैं। शिवराज के जरिये नये तरह के इंटरप्रेन्योरशिप को प्रोजेक्ट करना है। साथ ही जब प्रोजेक्ट चल जायेगा तो, इसके जरिये हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भी निभायेंगे। इलाके के मछली उत्पादकों को इसका लाभ मिले। इसका ध्यान रखा जायेगा। मछुआरों को कैसे हम लोग सहयोग कर सकते हैं। इस पर भी विचार किया जायेगा। तालाब बनने के दौरान सक्रिय रहे डॉ गोपाल जी त्रिवेदी कहते हैं, हम लोगों ने इसके लिए सरकार से कई तरह की मांग की है। सरकार की ओर से सकारात्मक जवाब आया है। प्रोजेक्ट के लिए अलग से ट्रांसफार्मर लगा है, ताकि बिजली की समस्या नहीं हो। इसके अलावा सोलर प्रोजेक्ट लगाने की बात हो रही है। इसमें बड़ी कंपनी से बात चल रही है, जो अपना प्रोजेक्ट यहां लगायेगी। वह प्रोजेक्ट के लिए बिजली मुहैय्या करायेगी।
प्रोजेक्ट के लिए पानी बड़ी समस्या है। इसके लिए सरकार से भी सहयोग मांगा गया है। पानी की वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी है, क्योंकि केवल बोरिंग से पानी की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है। हम लोग पास में बहने वाले गंडक नदी से पानी सप्लाई की व्यवस्था कैसे हो सकती है, इस पर काम कर रहे हैं। इसके लिए सरकार से सहयोग मांगा जायेगा।
डॉ त्रिवेदी बताते हैं, प्रोजेक्ट के अंतर्गत बहुत बड़ा इलाका आता है, इसलिए इस तरह की व्यवस्था की गयी है, ताकि किसी भी तालाब पर जाने में समस्या नहीं हो। तालाब के किनारे ऐसी सड़क बनायी गयी है, जिस पर गाडियां। सुगमता से आ सकें। बारिश के दिनों में कटाव नहीं हो। इसके लिए तालाब के किनारे फलदार पेड़ लगाये जायेंगे। इसके लिए भी योजनाएं तैयार की जा रही हैं।
मुजफ्फरपुर के मतलूपुर में इतिहास रचने की तैयारी हो रही है। यहां चवर की जमीन पर मछली पालन के लिए तालाब बनाये गये हैं। 85 एकड़ में एक साथ तीस तालाब बने हैं। इसके लिए 24 किसान साथ आये हैं। इन सभी ने अपनी जमीन दी है। प्रोजेक्ट में सबसे अधिक जमीन पूसा विवि के पूर्व कुलपति डॉ गोपालजी त्रिवेदी की है। यह बिहार में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। इसके मैनेजर फिसरीज में बैचलर की डिग्री लेनेवाले शिवराज हैं, जो पूरे प्रोजेक्ट की जिम्मेवारी को संभाल रहे हैं। मछली पालन के अलावा यहां ट्रेनिंग सेंटर बनाये जाने की योजना है, जिसमें मछली पालन की ट्रेनिंग दी जायेगी।
प्रोजेक्ट का उद्घाटन मंत्री गिरिराज सिंह ने किया था। मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार डॉ मंगला राय इसे देखने के लिए आये थे। उन्होंने प्रोजेक्ट की जम कर तारीफ की थी। डॉ राय ने कहा था, प्रोजेक्ट देख कर लगता है बिहार बदल रहा है। आनेवाले दिनों में यह प्रोजेक्ट मील का पत्थर साबित होगा।
प्रोजेक्ट के सलाहकार रमन त्रिवेदी हैं, जो डॉ गोपालजी त्रिवेदी के बेटे हैं। उन्होंने बताया, इतने ब.डे पैमाने पर मछली पालन शुरू करने के पीछे तीन कारण हैं। पहला बिहार में अभी आंध्र प्रदेश व अन्य जगहों से मछली आयात की जाती है। हम लोग चाहते हैं, अगर अपने प्रदेश में मछली का उत्पादन बढे.गा तो बाहर से मछली आयात नहीं करनी प.डेगी। हम लोग मछली उत्पादन के मामले में आत्म निर्भर ही नहीं बनना चाहते हैं, बल्कि हमारी चाहत है, हम दूसरे प्रदेशों को भी मछली सप्लाई करें।
दूसरी वजह यह है, जिस जमीन पर यह पूरा प्रोजेक्ट लगा है। वह लो लैंड (चवर) का इलाका है। यहां कभी खेती नहीं होती थी। साल भर इस जमीन पर पानी भरा रहता था। हम लोगों को इसके जरिये यह बताना चाहते हैं, वह चाहें तो चवर के इलाके को भी इस तरह के प्रोजेक्ट लगा कर मुनाफा कमा सकते हैं। जो जमीन सालों से खाली पड़ी है। वह कमाई का जरिया बन सकती है।
तीसरी वजह, इस प्रोजेक्ट में युवा प्रतिभाएं काम कर रही हैं। प्रोजेक्ट मैनेजर भी युवा हैं। शिवराज के जरिये नये तरह के इंटरप्रेन्योरशिप को प्रोजेक्ट करना है। साथ ही जब प्रोजेक्ट चल जायेगा तो, इसके जरिये हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भी निभायेंगे। इलाके के मछली उत्पादकों को इसका लाभ मिले। इसका ध्यान रखा जायेगा। मछुआरों को कैसे हम लोग सहयोग कर सकते हैं। इस पर भी विचार किया जायेगा। तालाब बनने के दौरान सक्रिय रहे डॉ गोपाल जी त्रिवेदी कहते हैं, हम लोगों ने इसके लिए सरकार से कई तरह की मांग की है। सरकार की ओर से सकारात्मक जवाब आया है। प्रोजेक्ट के लिए अलग से ट्रांसफार्मर लगा है, ताकि बिजली की समस्या नहीं हो। इसके अलावा सोलर प्रोजेक्ट लगाने की बात हो रही है। इसमें बड़ी कंपनी से बात चल रही है, जो अपना प्रोजेक्ट यहां लगायेगी। वह प्रोजेक्ट के लिए बिजली मुहैय्या करायेगी।
प्रोजेक्ट के लिए पानी बड़ी समस्या है। इसके लिए सरकार से भी सहयोग मांगा गया है। पानी की वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी है, क्योंकि केवल बोरिंग से पानी की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है। हम लोग पास में बहने वाले गंडक नदी से पानी सप्लाई की व्यवस्था कैसे हो सकती है, इस पर काम कर रहे हैं। इसके लिए सरकार से सहयोग मांगा जायेगा।
डॉ त्रिवेदी बताते हैं, प्रोजेक्ट के अंतर्गत बहुत बड़ा इलाका आता है, इसलिए इस तरह की व्यवस्था की गयी है, ताकि किसी भी तालाब पर जाने में समस्या नहीं हो। तालाब के किनारे ऐसी सड़क बनायी गयी है, जिस पर गाडियां। सुगमता से आ सकें। बारिश के दिनों में कटाव नहीं हो। इसके लिए तालाब के किनारे फलदार पेड़ लगाये जायेंगे। इसके लिए भी योजनाएं तैयार की जा रही हैं।
Path Alias
/articles/maujaphapharapaura-kae-matalauupaura-maen-85-ekada-maen-banae-30-taalaaba
Post By: admin