जयपुर जिला

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मानसागर में फिर खिला जलमहल
Posted on 18 Dec, 2011 09:44 AM

मानसागर झील दुर्दशा की शिकार थी। चार नाले जयपुर शहर की गंदगी को इसमें बरसों से डाल रहे थे। लिह

बच गई राजस्थान की कृषि
Posted on 13 Dec, 2011 03:51 PM

राजस्थान के कृषि निदेशक को सहमति पत्र की गंभीर समीक्षा के बाद जो जवाब भेजा उससे स्पष्ट था कि व

उपजाऊ भूमि के बंजर होने का खतरा
Posted on 22 Nov, 2011 09:05 AM

धरती के मरुस्थलीकरण और मिट्टी की ऊपरी परत के क्षरण को रोकने का सबसे बेहतर तरीका है जल प्रबंधन, वृक्षारोपण, सूखा रोधी बीज और मिट्टी बचाने वाले समुदायों की आर्थिक सहायता। पृथ्वी पर कार्बन का 25 फीसदी मिट्टी में ही है। ऐसे में मिट्टी के संरक्षण से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और वैश्विक तापवृद्धि रोकने में भी मदद मिलेगी। दुर्भाग्यवश जलवायु परिवर्तन के इस महत्वपूर्ण पहलू की ओर दुनिया नजर फेरे हुए है। अगर इस तरफ ध्यान दिया जाए तो कुछ समस्याएं हल हो सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक समिति के मुताबिक रेगिस्तान के फैलते दायरे को रोकने की गंभीर कोशिश नहीं की गई तो आने वाले समय में अनाज का संकट खड़ा हो जाएगा। आज उपजाऊ भूमि के बंजर में तब्दील होने के खतरे बढ़ रहे हैं। हर साल खाद्यान्न उत्पादन में काफी कमी आ रही है। इसके लिए वन विनाश, खनन नीतियां, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, नकदी खेती आदि जिम्मेदार हैं। देखा जाए तो मिट्टी की ऊपरी 20 सेंटीमीटर मोटी परत ही हमारे जीवन का आधार है। यदि यह जीवनदायी परत नष्ट हो गई तो खाद्य पदार्थों की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी और दुनिया भर में संघर्ष की नई स्थितियां पैदा होंगी। गहन खेती के कारण 1980 से अब तक धरती की एक-चौथाई उपजाऊ भूमि नष्ट हो चुकी है। इसी को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2010-2020 को मरुस्थलीकरण विरोधी दशक के रूप में मनाने का निश्चय किया।

वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार 25 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की ऊपरी परत के नवीकरण में 200 से 1000 साल का समय लगता है। इसके बावजूद वह सरकारों व किसानों
कम पानी और मिट्टी के बिना खेती कैसे करें?
Posted on 04 Oct, 2011 12:14 PM

शेखावाटी के किसानों को मोरारका फाउंडेशन की देन

इंसानी बंधन के शिकार बांध
Posted on 25 Sep, 2011 01:18 PM

भरपूर बरसात के बावजूद राजस्थान में सैकड़ों बांध ऐसे रह गए जिनमें एक बूंद भी पानी नहीं आया। कार

पोखर के लिए बहा दी खून की नदी
Posted on 19 Sep, 2011 01:45 PM

छोटे छोटे विवाद कितने विनाशकारी रूप अख्तियार कर सकते हैं उसका अंदाज इस घटना से लगाया जा सकता है। राजस्थान के भरतपुर जिले में पोखर पर कब्जे के एक विवाद ने इतना वीभत्स रूप से लिया कि दर्जनभर लाशों का ढेर लग गया। पोखर का पानी तो ठहरा रह गया लेकिन गांव में खून की नदी बह निकली। राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ गांव में बुधवार को हुए दंगे के बाद अब इसकी गूंज दिल्ली तक पहुंच गई है। बृहस्पतिवार को द

पानी के लिए खून बहाते लोग
पूर्वजों ने संजोया हमने खोया
Posted on 18 Jul, 2011 09:57 AM राजस्थान में प्राचीन काल से ही पानी को घी से भी ज्यादा मूल्यवान माना गया है। विडंबना की बात यह है कि पूर्वजों द्वारा संजोकर रखी गई यह अनमोल धरोहर अब धरती के गर्भ में समाती जा रही है । सतही जल के अंधाधुंध दोहन और बेजां इस्तेमाल के कारण राजस्थान में 239 में से 207 ब्लॉक डार्क जोन (सूखा क्षेत्र) घोषित किए जा चुके है । इन 207 ब्लॉक में बस इतना ही पानी बचा है जिससे कुछ साल तक यहां के बाशिंदों की प्यास तो बुझ सकती है लेकिन खेती-बाड़ी और पानी का दूसरे कामों में इस्तेमाल मुश्किल है । अंधाधुंध दोहन का ही नतीजा है कि पिछले तीस साल में राजस्थान में भूजल स्तर दस से 30 मीटर तक नीचे चला गया है।

जल से लौटा जीवन
Posted on 25 Apr, 2011 10:16 AM

पिछले एक दशक से जल-संकट झेल रहे केवलादेव घना राष्ट्रीय अभयारण्य को अब इंद्रदेव की मेहरबानी से

जल विरासत की कहानी कहते जलाशय
Posted on 02 Mar, 2011 01:13 PM

यह किसी कल्पनालोक की कथा या फिर किसी कहानी का हिस्सा नहीं, बल्कि हकीकत है। याद करें साठ-सत्तर का दशक जब जीवन की अहम जरूरत जल छोटे-छोटे गांवों, कस्बों व शहरों के तालाब, नाड़ियों, सरों व कुओं में लबालब भरा रहता था। मनुष्यों की ही नहीं, पशु-पक्षियों तक की जल जरूरतें स्थानीय स्तर पर ही पूरी हो जाया करती थीं। इसके पीछे लोगों की वह मेहनत काम कर रही होती थी, जिसके बल पर जलाशयों का निर्माण कराया गया था

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