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गया जिला
चफेल की कहानी
Posted on 22 Nov, 2014 03:39 PMअखबारों ने चफेलवासियों की दुर्दशा को जब प्रमुखता से लेना शुरू किया तो एक समाजसेवी देवानंद जी ने
गंदे पोखर व कुओं का पानी गर्मी में सहारा
Posted on 09 Jun, 2013 03:45 PMगर्मी में पानी की उपलब्धता को लेकर न सिर्फ शहरवासी चिंतित रहते हैं, बल्कि सरकार व प्रशासन भी। प्रशासन पानी की आपूर्ति को लेकर मैराथन बैठक भी करता है, पर नतीजा हर साल सिफर ही रहता है। गया की भौगोलिक बनावट भी कुछ ऐसी है कि पानी के लिए हाय-तौबा मची ही रहती है। तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरे गया जिले में हर जगह चाहे गांव हो या शहर, पानी की किल्लत बनी ही रहती है। गर्मी की दस्तक के साथ ही जलापूर्ति को लेकअकेले किसान ने खोदा तालाब
Posted on 02 Feb, 2012 11:28 AMदुनिया में इतिहास रचने वालों की कोई कमी नहीं है। कुछ लोग अपना नाम चमकाने के लिए इतिहास रचते हैं तो कुछ लोग निःस्वार्थ रूप से अपना कार्य करते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है कि उन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया है। बिहार के गया जिले के दशरथ मांझी एक ऐसे ही इतिहास रचयिता रहे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी के ईलाज में बाधक बने पहाड़ को काटकर सड़क निर्माण किया था। दशरथ मांझी की कहानी आज बिहार के स्कूली किताबों में दर्ज है जिसका शीर्षक है-पहाड़ से ऊंचा आदमी। ठीक ऐसी ही कहानी है झारखंड के किसान श्यामल चौधरी की है। जिन्होंने अकेले ही अपने अथक प्रयास से तालाब का निर्माण कर डाला और गांव के खेतों के लिए सिंचाई का पानी उपलब्ध करा दिया। दुमका जिला स्थित जरमुंडी ब्लॉक के विशुनपुर-कुरूआ गांव के श्यामल चौधरी आज क्षेत्र के किसानों के लिए आदर्श बन चुके हैं। सौ गुणा सौ की लंबाई तथा 22 फीट गहरे इस तालाब को खोदने का काम उन्होंने 14 वर्ष में पूरा कर डाला।फल्गु मुक्तिदायनी यात्रा
Posted on 11 Oct, 2011 10:18 PMपदयात्रियों का जत्था जब जोरी गांव पहुंचा तो वहां पता चला कि वन माफियाओं द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को पैसा देकर पेड़ कटवाये जाते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों कुल्हाड़ियां पेड़ों पर पड़ती हैं, जिससे आसपास की पहाड़ियां नंगी हो चुकी हैं। जिस झारखंड में थोड़ी गर्मी होते ही बारिश होती थी, वहां के लोग पीने के पानी के लिए जूझ रहे हैं। यात्रा के दौरान पदयात्रियों ने जलस्तर बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे मेड़ बनाने, तालाब की उड़ाही करने, बहते पानी को ठहराकर उससे खेतों की सिंचाई करने के तरीके बताये।
फल्गु नदी को बचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के कार्यकर्ता कौशलेन्द्र नारायण ने शहर के बुद्धिजीवियों व आमलोगों को एकत्र कर ‘फल्गु रक्षा मंच’ का निर्माण किया। इसकी पहली बैठक में फल्गु के उद्गम स्थल से समागम स्थल की यात्रा का प्रस्ताव हुआ। इसका नाम ‘फल्गु मुक्तिदायनी यात्रा’ रखा गया।
मुक्ति मांगती मुक्तिदायिनी
Posted on 01 Apr, 2011 09:46 AMसदियों से सभ्यता का विकास नदियों के किनारे होता रहा है। नदी के बिना जीवन की कल्पना असंभव है। बावजूद इसके नदियों की मौत पर हम कभी अफसोस जाहिर नहीं करते। जबकि उनकी मौत के लिए सिर्फ हम हमेशा से जिम्मेदार रहे हैं। कभी हम विकास के नाम पर उनकी बलि चढ़ाते हैं तो कभी अपनी लालच को साकार करने के लिए।
गया कि फल्गु
Posted on 25 Feb, 2011 11:41 AMसंस्कृत में फल्गु के दो अर्थ होते हैं। (1) फल्गु यानी निःसार, क्षुद्र, तुंच्छ; और (2) फल्गु यानी सुन्दर। गया के समीप की नदी का फल्गु नाम दोनों अर्थों में सार्थक है पुराण कहते हैं कि उसे सीता का शाप लगा है। सीता के शाप के बारे में जो होगा सो सही; किन्तु उसे सिकता का शाप लगा है यह तो हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। जहां भी देखें, बालू-ही-बालू दिखाई देती है। बेचारा क्षीण प्रवाह इसमें सिर ऊंचा करे तो भमगध क्षेत्र के लिए प्रस्तावित जलनीति
Posted on 08 Mar, 2010 10:42 PMजमीन एवं जल स्रोतों की स्थिति
‘‘जल ही जीवन है’’ यह उक्ति मगध क्षेत्र के लिए भी उतनी ही सच है जितनी दुनिया के अन्य क्षेत्रों के लिए मगध क्षेत्र से हमारा तात्पर्य उस भौगोलिक क्षेत्र से है जिसके उत्तर में गंगा नदी है और दक्षिण में झारखंड, पूर्व में क्यूल नदी है और पश्चिम में सोन नदी अर्थात संपूर्ण मगही भाषी क्षेत्र।
भौगोलिक बनावट के लिहाज से मगध क्षेत्र की स्थिति काफी विविधतापूर्ण है। इसका दक्षिणी भाग पठारी है, जिसकी तीखी ढाल उत्तर, कहीं-कहीं पूर्वाभिमुख उत्तर की ओर है। उत्तरी भाग मैदानी है। इसकी ढाल भी इसी दिशा की ओर है, लेकिन ढाल कम (लगभग 1.25 मीटर प्रति किलोमीटर) है। उत्तरी भाग में ढाल नहीं के बराबर है। फलतः इस भाग की जमीन लगभग समतल है। पठारी इलाकों में लम्बी घाटियाँ हैं जो मैदान का आकार लिए हुए हैं। सोन एवं पुनपुन के द्वारा बनाया गया मैदान है। इसमें कहीं कम, तो कहीं अधिक गहराई में बालू है जो मुख्य जल स्रोत है। कहीं-कहीं यह जल प्रवाह ऊपर में भी है। यह स्थिति मुख्यतः औरंगाबाद, अरवल और पटना जिले में है।
‘आहार’ पाईन से खुशहाली
Posted on 31 Dec, 2009 05:37 PMहमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। करीब 40 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद कृषि से उपजता है। अत: जब तक कि गांव की कृषि व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है, तब तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार कर पाना असंभव होगा। अत: स्थानीय समुदायों को जोड़ते हुए जल पंढाल विकास और जल प्रबंधन करने से हमारी कृषि व्यवस्था टिकाऊ विकास की ओर अग्रसर होगी।
जल संरक्षण की अनूठी पहल
Posted on 26 Jul, 2009 08:25 AMप्रभात कुमार शांडिल्य, जे.पी. की सहयोगी रही सुशीला सहाय, नन्द कुमार सिंह, प्रमिला पाठक, फरासत हुसैन और उनके साथियों की पहल पर मगध जल जमात का गठन हुआ और जन सहयोग से तालाबों, आहारों और पईन की उड़ाही और जीणोद्धार का काम शुरू हुआ। देखते ही देखते शहर के सरयू तालाब, गंगा यमुना तालाब, बिरनिया कुआं, पुलिस लाइन तालाब, सिगरा स्थान तालाब, इसके बगल के एक तालाब समेत सात तालाबों की उड़ाही कर दी गई। एक मई से 15 मई 2006 के बीच मात्र 15 दिनों में हजारों लोगों ने श्रमदान करके इन तालाबों को साफ कर दिया। आज उन तालाबों में ब्रह्मायोनी पहाड़ का पानी जमा होता है और शहर का आधा जल संकट दूर हो गया है।