अखबारों ने चफेलवासियों की दुर्दशा को जब प्रमुखता से लेना शुरू किया तो एक समाजसेवी देवानंद जी ने गरीबों की सहायता के लिये राष्ट्रपति को पत्र लिखा। बताया जाता है कि राष्ट्रपति ने बिहार के मुख्य सचिव को इस संबंध में कार्रवाई करने को कहा, लेकिन जब कुछ भी नहीं हुआ तो देवानंद जी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर गरीबों की रक्षा के लिये हाईकोर्ट से गुहार लगायी।
भूख से हो रही लगातार मौतों को लेकर बिहार के नवादा जिले के रजौली प्रखंड में जंगलों व पहाड़ों के बीच बसा गरीबों का गांव चफेल हमेशा अखबारों की सुर्खियों में रहा और इस संबंध में दायर एक जनहितयाचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने भले ही गया के कमिश्नर को चफेल में सरकारी सुविधायें मुहैया कराने का निर्देश दिया पर चफेल आज भी वैसा ही है जैसा गत वर्षनवंबर में परवतिया की भूख से हुई मौत के समय था। गांव की रंगत और गरीबों की गरीबी में कोई फर्क नहीं आया है। हाईकोर्ट के आदेश पर कमिश्नर रजौली आये तो जरूर पर बिना चफेल गये ही अधिकारियों को आदेश देकर वापस गया लौट गये और अधिकारी अपने दूसरे कामों में व्यस्त हो गये। हाईकोर्ट का आदेश भी चफेलवासियों को कोई राहत नहीं दिला सका। गरीब मुसहरों के गांव चफेल में गत दो वर्षों के भीतर एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत भूख से हो चुकी है और भूख ने अभी भी यहां कइयों को रोगग्रस्त बना रखा है।गांव में न तो कोई स्वास्थ्य केंद्र है न स्कूल। पीने के पानी के लिये कुएं तो हैं लेकिन उनका पानी भी गंदा है। सरकार ने दो चापाकल गड़वाये जरूर पर उनमें से भी एक से ही पानी निकलता है। गांव वाले बताते हैं कि गांव में एक भी आदमी पढ़ा-लिखा नहीं है। उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया जंगलों से काटकर लकड़ियों को बेचना है। वे बताते हैं कि एक दिन लकड़ी काटने और बाजार में ले जाकर बेचने से उन्हें अधिकतम तीस रुपये की आमदनी होती है। दिन भर की कमरतोड़ मेहनत के बाद दूसरे दिन बगैर आराम के वे लकड़ी काटने का काम नहीं कर सकते।
इस गरीबी के चलते उनके चूल्हे बराबर बुझे रहते हैं और रोगग्रस्त होकर वे भगवान को प्यारे हो जाते हैं। अखबारों ने चफेलवासियों की दुर्दशा को जब प्रमुखता से लेना शुरू किया तो एक समाजसेवी देवानंद जी ने गरीबों की सहायता के लिये राष्ट्रपति को पत्र लिखा। बताया जाता है कि राष्ट्रपति ने बिहार के मुख्य सचिव को इस संबंध में कार्रवाई करने को कहा, लेकिन जब कुछ भी नहीं हुआ तो देवानंद जी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर गरीबों की रक्षा के लिये हाईकोर्ट से गुहार लगायी।
हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर 2004 को गया के कमिश्नर को महीने भर के भीतर जरूरी कार्रवाई का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक महीने की जगह ढाई महीने बीत गये पर चफेल में कोई सहायता नहीं पहुंचाई गई। हां, गांव में लगभग सौ-डेढ़ सौ मीटर ईंट की सोलिंग और दो चापाकल जरूर गड़वाये गये। इससे गांव वालों को कोई विशेष फायदा नहीं हुआ। गांव के लोगों का कहना था कि प्रशासन ने गांव में एक बार तीन-तीन किलो गेहूं भी बंटवाये। इसके अलावा गांव में कोई भी सहायता नहीं पहुंचाई गई। चफेल में गरीबों की जिंदगी जंगलों की लकड़ी के सहारे ही कट रही है। इसके लिये किसी जांच की जरूरत नहीं है। यह वहां जाने पर स्पष्ट नजर जाता है कि उनके पेट ठीक से अब भी भर नहीं रहे है।
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