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बेंगलुरु का गला सूखा, दुबई में बाढ़ : सबक क्या है
वर्तमान में जिस प्रकार झीलों का शहर बेंगलूरू जल बिना तड़प रहा है, तो दूसरी ओर रेगिस्तान में स्थित दुबई और ओमान जल की अधिकता से डूबते दिखे, उससे स्पष्ट है कि प्रकृति में जल तत्व का संतुलन बिगड़ रहा है। Posted on 25 May, 2024 01:11 PM

लोकनायक तुलसीदास जी ने अपने महान ग्रंथ 'रामचरितमानस' में लिखा है 'क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व मिलि रचा शरीरा।' स्पष्ट है कि बिना जल के शरीर की रचना संभव नहीं है। जब रचना ही संभव नहीं है तो जीवन का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसीलिए जल को जीवन कहा जाता है। जल मनुष्य ही नहीं अपितु समस्त जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिये एक जीवनदायी तत्व है। इस संसार की कल्पना जल के बिना नहीं की जा सकती है

जलसंकट का दौर
जल जीवन मिशन का सुफल : करोड़ों घरों में नल से स्वच्छ जल
भारत आज जल क्षेत्र में सर्वाधिक निवेश और व्यापक लक्ष्यों के लिहाज से सबसे अहम है जल जीवन मिशन (जेजेएम) की सफलता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा भी है कि जल जीवन मिशन का विजन लोगों तक पानी पहुंचाने का तो है ही, साथ ही यह विकेंद्रीकरण का भी एक बहुत बड़ा माध्यम है। यह ग्राम-संचालित और नारी शक्ति-संचालित है। इसका मुख्य आधार जन आंदोलन और जन भागीदारी है। Posted on 24 May, 2024 06:20 AM

भारत आज जल क्षेत्र में सर्वाधिक निवेश और व्यापक लक्ष्यों के साथ कार्य करने वाला दुनिया का शीर्ष देश है। इस लिहाज से सबसे अहम है जल जीवन मिशन (जेजेएम) की सफलता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा भी है कि जल जीवन मिशन का विजन लोगों तक पानी पहुंचाने का तो है ही, साथ ही यह विकेंद्रीकरण का भी एक बहुत बड़ा माध्यम है। यह ग्राम-संचालित और नारी शक्ति-संचालित है। इसका मुख्य आधार जन आंदोलन और जन भागीदारी

जल जीवन मिशन में बड़ी मात्रा में ढांचागत निर्माण हुए हैं
जलवायु परिवर्तनः रोगवाहक जन्य रोगों के विशेष संदर्भ में मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव
वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्ष 2100 तक तापमान में 1.4 से 5.8°C तक की वृद्धि के साथ समुद्र के स्तरों में 18-59 से.मी. तक की वृद्धि की संभावना है जिसके चलते तटवर्ती क्षेत्रों में जल प्लावन के कारण वर्ष 2050 तक 200 मिलियन लोग अपनी जगह से अलग हो जाएंगे। Posted on 18 May, 2024 06:51 AM

पृथ्वी पर प्राणियों का अस्तित्व तथा उनका सतत विकास वातावरण के साथ उनके सकारात्मक सामंजस्य का द्योतक है। परन्तु विगत कुछ वर्षों से गरमाती धरती, तेजी से महामारियों एवं विलुप्त होती प्रजातियों से यह सम्बन्ध  हिलता सा दिख रहा है। फरवरी 2007 में पेरिस में कुल 130 देशों के 2500 वैज्ञानिकों के दल के साथ जलवायु परिवर्तन पर निगरानी के लिए गठित अंतर शासकीय पैनल (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेन्ज) (IP

जलवायु परिवर्तनः रोगवाहक जन्य रोगों के विशेष संदर्भ में मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव
सूखी ही बहने को मजबूर नदियाँ
दुनिया में ज्यादातर नदियां अपने तटवर्ती क्षेत्रों के लिए जीवनदायिनी रही हैं। यह भी कटु सत्य है कि सभ्यताओं का विकास ही नदियों के विलोपन का कारण भी बन रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में आज नदियों का अस्तित्व खतरे में है। अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह का कारण, नदी से मिलने वाली रेत व जलराशि है। Posted on 17 May, 2024 06:50 PM

बीसवीं सदी के पहले कालखण्ड तक भारत की अधिकांश नदियाँ बारहमासी थीं। हिमालय से निकलने वाली नदियों को बर्फ के पिघलने से अतिरिक्त पानी मिलता था। पानी की आपूर्ति बनी रहती थी अतः उनके सूखने की गति अपेक्षाकृत कम थी। नदी के कछार के प्रतिकूल भूगोल तथा भूजल के कम रीचार्ज या विपरीत कुदरती परिस्थितियों के कारण, उस कालखण्ड में भी भारतीय प्रायद्वीप की कुछ छोटी-छोटी नदियाँ सूखती थीं। इस सब के बावजूद भारतीय नद

नदियों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह
पर्यावरण-प्रबन्धन और प्रकृति-संरक्षण: एक वैदिक दृष्टिकोण
अथर्ववेद के ‘पृथ्वीसूक्त’ में पृथ्वी को माता और हमें इसके पुत्र कहा गया है। यह सूक्त प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का आह्वान करता है और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को दर्शाता है। रवीन्द्र कुमार जी का लेख हमारे आदिग्रन्थों में पर्यावरण संबंधी मान्यताओं को दर्शाता है। Posted on 16 May, 2024 06:46 PM

सौर मण्डल में जीवन से भरपूर सुन्दर गृह पृथ्वी की उत्पत्ति विज्ञान के अनुमानानुसार लगभग 4.

प्रकृति-संरक्षण पर वैदिक दृष्टिकोण
पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) का महत्व क्या है? और भारत में पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो प्रस्तावित परियोजनाओं, नीतियों या कार्यक्रमों को लागू करने से पहले उनके संभावित पर्यावरणीय परिणामों का मूल्यांकन करती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर किसी परियोजना के संभावित प्रतिकूल प्रभावों की पहचान करना और उनका आकलन करना है, साथ ही इन प्रभावों को कम करने या कम करने के उपायों का प्रस्ताव करना है Posted on 15 May, 2024 03:53 PM

भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 27.01.1994 को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत जारी की गई विभिन्न गतिविधियों के लिए एक अधिसूचना के माध्यम से अनिवार्य किया गया था। उक्त ईआईए अधिसूचना 1994 के कार्यान्वयन के दौरान, कई छोटी-छोटी कमियां देखी गई और इन लघु कमियों को समय-समय पर संशोधन करने के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया गया। ईआईए का उपयो

पर्यावरण प्रभाव आकलन प्रक्रिया
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा
बेहिसाब भूजल दोहन भूकंप के खतरे को विनाशकारी बना देगा। हाल फिलहाल के दो अध्ययन हमारे लिए खतरे का संकेत दे रहे हैं। एक अध्ययन पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भूकंप के आवृत्ति और तीब्रता बढ़ने की बात कर रहा है। तो दूसरा भूजल का अत्यधिक दोहन से दिल्ली-NCR क्षेत्र के कुछ भाग भविष्य में धंसने की संभावना की बात कर रहा है। दोनों अध्ययनों को जोड़ कर अगर पढ़ा जाए तस्वीर का एक नया पहलू सामने आता है। Posted on 15 May, 2024 09:10 AM

देहरादून। ‘वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी’ के वैज्ञानिकों ने भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में इंडो-यूरेशियन प्लेटों के टक्कर से उत्पन्न होने वाले भूकंपों के अध्ययन डाटा को एकत्रित किया है और डाटा से उन क्षेत्रों की पहचान की है जो भूकंप से अत्यधिक प्रभावित और जोखिम में हैं। इस अनुसंधान के अनुसार, पूर्वी हिमालय के दार्जिलिंग, सिक्किम, अरुणाचल, असम और भूटान क्षेत्रों में भवि

भूजल का अत्यधिक दोहन
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित चुनौतियां (भाग 2)
जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ रहा है। पहले से ही खाद्य व आवास की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बदलती जलवायु व इसका प्रभाव त्रासदी पूर्ण है। वैसे समाजशास्त्रियों की मानें तो गरीबी अपने आप बीमारियों का समुच्चय है। जलवायु परिवर्तन बहुत सारी बीमारियों के होने की प्रक्रिया को बहुत भयानक कर देगा। Posted on 14 May, 2024 03:32 PM

जलवायु परिवर्तन एवं जैविक प्रदूषण का प्रभाव 

रोगकारक सूक्ष्म जीवों से संक्रमित कर मनुष्यों, फसलों, फलदायी वृक्षों व सब्जियों का विनाश करना जैविक प्रदूषण है। सन 1846 में जीनीय एकरूपता के कारण यूरोप में आलू की समस्त फसल नष्ट हो गयी, जिसके फलस्वरूप 10 लाख लोगों की मृत्यु हो गयी और 15 लाख लोग अन्यत्र पलायन कर गये। चूंकि समस्त आलू में एक ही प्रकार का जीन था अतः सब एक ही प्रकार के रोगाणुओं

स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित चुनौतियां (भाग 1)
जलवायु परिवर्तन से मिट्टी पर पड़े प्रभाव का सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि होती है और वाष्पीकरण का संतुलन खराब हो जाता है व हमारी मिट्टी की आर्द्रता असंतुलित हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप हमें सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है। अगर यह स्थिति लगातार बनी रही तो मिट्टी मरुस्थल में तब्दील हो जाती है। मिट्टी एक समय ऊसर व बंजर हो जाती है। अर्थात हमारे पास भोज्य पदार्थ के उत्पादन के लिए पर्याप्त उर्वर भूमि नहीं बचेगी और हमें भूख व कुपोषण की चपेट में आकर अपनी जान गंवानी पड़ेगी। हालांकि यह स्थिति अभी भी बनी हुई है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इसका स्वरूप और विकराल हो सकता है। Posted on 14 May, 2024 02:43 PM

वर्तमान में जलवायु परिवर्तन का बढ़ता स्तर मानवीय स्वास्थ्य के लिए दिन-प्रतिदिन चिंता का सबब बनता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन का सीधा असर मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ रहा है जिससे अनेक बीमारियां जन्म ले रही हैं। जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर एशिया के क्षेत्रों पर पड़ेगा क्योंकि यहाँ ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था कृषि व प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है। ऐसे में भारत जैसे देशों को जलवायु परिवर्त

जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
बढ़ते तापमान और मौसम में बदलाव से गर्मी की लहरों और चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है, जिससे बीमारी, चोट और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही जलवायु-संवेदनशील रोगजनकों के फैलाव में बदलाव आता है, जिससे डेंगू और डायरिया जैसी बीमारियाँ कुछ क्षेत्रों में अधिक आम हो सकती हैं। जलवायु परिवर्तन से फसलों की पैदावार में कमी, खाद्य कीमतों में वृद्धि, खाद्य असुरक्षा और अल्पपोषण का खतरा बढ़ता है। इससे जल सुरक्षा भी प्रभावित होती है। ये परिवर्तन गरीबी, मानव प्रवास, हिंसक संघर्ष और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकते हैं। Rising temperatures and climate change are increasing the frequency and intensity of heat waves and extreme weather events, increasing the risk of disease, injury, and death. It also changes the spread of climate-sensitive pathogens, which could cause diseases like dengue and diarrhea to become more common in some areas. Climate change increases the risk of reduced crop yields, increased food prices, food insecurity and undernutrition. This also affects water security. These changes may increase poverty, human migration, violent conflict, and mental health problems. Posted on 12 May, 2024 07:48 AM

पिछले कुछ दशकों में यह स्पष्ट हो गया है कि मानवीय बुनियादी ढांचे में बदलाव हो रहा है, जिससे वैश्विक जलवायु परिर्वतन हो रहा है। भारत एक बड़ा विकसित देश है जिसमें 7500 किमी लंबा हिमालय, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बर्फ भंडार और दक्षिण में घुटने की आबादी वाली तट रेखा है।  ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली उनकी एक अरब आबादी में लगभग 700 मिलियन लोग अपने निर्वाह और कृषि के लिए सीधे जलवायु संवेदनशील क्षेत

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
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