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डरबन: तूफानी सत्र की धीमी रफ्तार
Posted on 23 Jan, 2012 04:28 PM

डरबन सम्मेलन में अनेक बार ऐसा लगा कि वार्ता पटरी से उतर रही है क्योंकि वहां अनेक मसलों पर असहम

विचित्र पेड़
Posted on 16 Jan, 2012 10:49 AM प्रकृति ने कई प्रकार के पेड़-पौधे पैदा किए हैं। सामान्य पेड़-पौधे हमारे जीवन और पर्यावरण का एक अभिन्न अंग हैं। लेकिन कई प्रकार के पेड़ के पेड़ ऐसे होते हैं जो अपने अनोखेपन के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें देखकर हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं। अमेरिका के वनों में मैट्रिक नामक ऐसा पेड़ पाया जाता है जिसकी बनावट बच्चे की तरह होती है। अगर इस पेड़ को हिलाया, उखाड़ा या मारा जाए तो यह बच्चे की तरह रोने लगता है।
बर्फ खात्मे की कगार पर
Posted on 04 Jan, 2012 01:47 PM आर्कटिक सागर पर सफेद बर्फ की मोटी चादर जल्द ही अतीत का हिस्सा बन सकती है। ब्रिटेन के एक शीर्ष महासागर विशेषज्ञ ने दावा किया है कि 2015 के ग्रीष्म तक वहां से बर्फ खत्म हो जाएगी। बर्फ कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रो.
आर्कटिक सागर
धुंध में क्योटो प्रोटोकॉल का भविष्य
Posted on 31 Dec, 2011 09:58 AM

बांग्लादेश, गांबिया, मोजांबिक और नेपाल जैसे देशों ने विकसित यूरोपीय देशों के साथ मिलकर नए समझौ

समझना होगा डरबन से निकल रहे संकेतों को
Posted on 29 Dec, 2011 12:12 PM

विकसित देशों को विकासशील देशों के पास उपलब्ध पारिस्थितिकीय स्थान के उपभोग के बदले मुआवजा अवश्य

डरबन से क्या हासिल हुआ
Posted on 20 Dec, 2011 06:03 PM

डरबन शिखर वार्ता ने सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा कई वर्षों के लिए टाल दी है। सारे परिणाम भविष्य, संभावनाओं और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों पर निर्भर हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार अक्षय ऊर्जा में निवेश न किए जाने से जलवायु संकट से निपटने की कीमत साढ़े चार गुनी बढ़ जाती है। विश्व के नेता जब तक इस संकट से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और अनुकूल राजनीतिक वातावरण नहीं बना पाते हैं तब तक यह निष्क्रियता संसार को महंगी पड़ेगी।

डरबन में जलवायु संकट पर अपने निश्चित समय से छत्तीस घंटे देर तक चली अंतर्राष्ट्रीय शिखर वार्ता की सबसे खास बात यह थी कि किसी भी महत्त्वपूर्ण पहलू पर समझौता हुए बिना इसके परिणाम को एक बड़ी कामयाबी की तरह पेश किया गया। बकौल आयोजक और विकसित देश, समझौता अत्यधिक सफल रहा। मंत्री मशाबेन, जो कि वार्ता की अध्यक्ष थीं, ने पिछली अध्यक्ष मैक्सिको की पैट्रीशिया एस्पिनोजा को भी पछाड़ दिया। वार्ता में क्योतो करार की दूसरी और बाध्यकारी अवधि पर समझौता हुआ, हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड) की शुरुआत की घोषणा की गई और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एक नई कानूनी व्यवस्था की घोषणा थी, जिसके तहत विकसित और विकासशील देश मिलकर जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझने में बराबर की साझेदारी करेंगे। इससे अच्छा और क्या हो सकता था लेकिन क्या यह समझौता सही मायने में विश्व को पर्यावरणीय संताप से बचा पाएगा?
डरबन का हासिल
Posted on 15 Dec, 2011 10:39 AM

क्योतो समझौते का प्रमुख आधार यह था कि जो देश ऐतिहासिक तौर पर ग्रीनहाउस गैसों का ज्यादा उत्सर्ज

विकसित देशों को धरती की चिंता नहीं
Posted on 08 Dec, 2011 03:55 PM

ऑक्यूपाई वॉल स्ट्रीट की तर्ज पर डरबन में भी ऑक्यूपाई द कॉप आंदोलन पहुंच गया है। पूरी तरह से यु

जलवायु संकट और कृषि
Posted on 02 Dec, 2011 03:13 PM

जलवायु संकट को लेकर विकसित देशों की नीयत कभी भी साफ नहीं रही। कभी कृषिगत उत्सर्जन के शमन और अन

चुकन्दर से निर्मित घुलनशील प्लास्टिक
Posted on 12 Nov, 2011 09:58 AM

यूरोपीय देशों में चुकंदर से चीनी बनती है। चीनी बनाने के बाद बचा वेस्ट जिसे फेंक दिया जाता था, उसी से यह घुलनशील प्लास्टिक बनाया गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह प्लास्टिक दस दिन में पूरी तरह घुल जाएगा और पानी पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। तेल उत्पादित प्लास्टिक की तुलना में बायो प्लास्टिक का बाजार अभी काफी छोटा है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में यह उत्पाद दफ्तरों व घरों में दिखने लगे क्योंकि इटली की कम्पनियां बायो प्लास्टिक उत्पाद क्षमता को तेजी से आगे बढ़ा रही हैं।

न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद देश में पॉलीथिन का उपयोग बंद नहीं हो पाया है। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर भारत सरकार व देश की राज्य सरकारों ने शासनादेश जारी कर स्थानीय निकायों व अन्य विभागों को हिदायत दे दी कि बीस माइक्रान से पतले पॉलीथिन का उपयोग सख्ती से रोका जाये लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश की केंद्र व राज्य सरकारों के आदेश से प्रतिबंधित पॉलीथिन का उपयोग बंद हो सका! कूड़े के ढेर में पड़े पॉलिथिन खाने से जहां सालाना सैकड़ों पशुओं की मौत होती है, वहीं इसके दुष्प्रभाव से भूमि की उर्वरा शक्ति का क्षरण हो रहा है। यही नहीं पॉलिथिन कचरा शहरों के सीवर सिस्टम को चौपट कर रहा है।

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