दिल्ली

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सरिता संगम-संस्कृति
Posted on 28 Feb, 2010 07:48 AM जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है और जहां वर्षा के आधार पर ही खेती हुआ करती है , उस भूमि को ‘देव मातृक’ कहते है, इसके विपरीत, जो भूमि इस प्रकार वर्षा पर आधार नहीं रखती, बल्कि नदी के पानी से सींची जाती है और निश्चित फसल देती है, उसे ‘नदी मातृक’ कहते हैं। भारतवर्ष में जिन लोगों ने भूमि के इस प्रकार दो हिस्से किए, उन्होंने नदी को कितना महत्व दिया था, यह हम आसानी से समझ सकते है। पंजाब का
वाटरलेस यूरिनल टैक्नोलॉजी विकास पर कार्यशाला
Posted on 27 Feb, 2010 03:55 PM तिथिः 6 मार्च 2010, दिन शनिवार

समयः प्रातः 10 बजे से सांय 4 बजे तक

आईआईटी दिल्ली वाटरलेस यूरिनल टैक्नोलॉजी में विकास पर, 6 मार्च 2010, दिन शनिवार को माइक्रो मॉडल कॉम्प्लेक्स, आईआईटी दिल्ली में, एक कार्यशाला का आयोजन कर रही है।

कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नीतिनिर्माताओं, प्रयोक्ताओं, निर्माताओं और साधारण जनता के बीच वाटरलेस यूरिनल टैक्नोलॉजी की क्षमता और संभावनाओं पर जागरूकता पैदा करना है।
कार्यशाला में भाग लेने वालों में सरकारी कर्मी और नीतिनिर्माता, प्रयोक्ता, तकनीकी विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि और निर्माता सभी शामिल होंगे।
बरसाती गीत
Posted on 27 Feb, 2010 08:25 AM पेली पोथी रे बीमा खोली के राखी
दूजली हांता का मांय म्हारा वीरा
आवो म्हारा मेव राजा बरसो नी बरसो
बरसो नी बरसो, बरसो नी बरसो.........आवो

राम लखन जाग्या, जाग्या सीत मरूर
खेड़ा-खेड़ा पे जाग्या हे हनुमान्या
आवो म्हारा मेव राजा बरसो नी बरसो
बरसो नी बरसो, बरसो नी बरसो.........आवो

तमारा बर्स्या से धरती मां निबजे
लोकगीतों में वर्षा
Posted on 25 Feb, 2010 04:48 PM ग्रीष्म के प्रचंड आतप से झुलसती धरा पावसी झड़ी से उल्लसित हो उठती है। गगन में घहराते बादल उमड़-घुमड़ जब झूम-झूम बरसने लगते हैं तो बड़े सुहावने लगते हैं और वनस्पतियों की सृष्टि के कारण बनते हैं। शीतल बयार के झोंके तन-मन को आह्लादित कर जाते हैं। पर्वत, खेत-खलिहान, मैदान जहाँ तक दृष्टि जाती है, प्रकृति धानी परिधान में सुसज्जित दिखाई पड़ती है। नदी-नाले उमड़ पड़ते हैं। ऐसे मनभावने, सुखद-सुहावने, मौसम म
ए मेघा तू पानी दे
Posted on 22 Feb, 2010 07:08 PM लोक ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को छककर जिया है। हास-परिहास के क्षण, आनन्द-उल्लास के क्षण, सुख-दुख के क्षण सब को कभी हँसकर जीया है, कभी रोकर, तो कभी गाकर। आदमी कुछ जीता है कुछ भोगता है और कुछ झेलता है। लोक इससे परे नहीं। जो कुछ आया उसे सहा और जो कुछ कहते बना, कहा।
एक्‍वाकल्‍चर के जरिये गंदे पानी की सफाई
Posted on 21 Feb, 2010 09:22 AM

हाल के वर्षों में देश में बढ़ती जनसंख्‍या के साथ औद्योगिक कचरे और ठोस व्‍यर्थ पदार्थों से अलग गंदे पानी की मात्रा भी उसके प्रबंधन की क्षमता से कहीं अधिक बढ़ी है। प्राकृतिक जल स्रोतों तक उन्‍हें पहुँचाने के लिए घरेलू सीवर के जरिए तेज प्रयास किए जा रहे हैं।
 

भूमि, जल, वन और हमारा  पर्यावरण 
Posted on 17 Feb, 2010 02:09 PM






देश की माटी, देश का जल
हवा देश की, देश के फल
सरस बनें, प्रभु सरस बनें!

देश के घर और देश के घाट
देश के वन और देश के बाट
सरल बनें, प्रभु सरल बनें !

देश के तन और देश के मन
देश के घर के भाई-बहन
विमल बनें प्रभु विमल बनें!


भूमि, जल. वन और हमारा  पर्यावरण
गैर कानूनी तरीके से निकाला जा रहा है यमुना का पानी
Posted on 17 Feb, 2010 09:15 AM

कैसी विडंबना है कि जनता को पानी का महत्व समझाने वाली दिल्ली सरकार के अनेक सरकारी और अर्ध सरकारी संगठन ही पानी के नियमों की धज्जिया उड़ा रहे हैं। यह संगठन पानी संरक्षण के सभी नियमों को ताक पर रख गैरकानूनी तरीके से यमुना के खादर से पानी निकाल रहे हैं। सरकार इन संगठनों पर लगाम लगाने की बजाय सरकार इन्हीं पर मेहरबान दिख रही है।

यमुना के खादर से बड़ी मात्रा में गैर कानूनी तरीकों से जल का दोहन
वर्षा जल संचयन और इसके लाभ | Rainwater Harvesting Essay in Hindi
जानिए कैसे वर्षा जल संचयन आपके जीवन और पर्यावरण को कैसे बेहतर बना सकता है और इसके लाभों को समझें | Get information about rain harvesting in hindi. Posted on 13 Feb, 2010 10:52 AM
वर्षा जलसंग्रहण क्‍या है ?

वर्षा के पानी का बाद में उत्‍पादक कामों में इस्‍तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है। आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्‍य तरीके से इकट्ठा कर

वर्षा जल संचयन और इसके लाभ
जल
Posted on 09 Feb, 2010 12:11 PM जल संपदा के मामले में कुछेक संपन्नतम देशों में गिने जाने के बाद भी हमारे यहां जल संकट बढ़ता जा रहा है। आज गांवों की बात तो छोड़िए, बड़े शहर और राज्यों की राजधानियां तक इससे जूझ रही हैं। अब यह संकट केवल गर्मी के दिनों तक सीमित नहीं है। पानी की कमी अब ठंड में भी सिर उठा लेती है। दिसंबर 86 में जोधपुर शहर में रेलगाड़ी से पानी पहुंचाया गया है।

देश की भूमिगत जल संपदा प्रति वर्ष होने वाली वर्षा से दस गुना ज्यादा है। लेकिन सन् 70 से हर वर्ष करीब एक लाख 70 हजार पंप लगते जाने से कई इलाकों में जल स्तर घटता जा रहा है।

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