दिल्ली

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एक तालाब का कायाकल्प
Posted on 14 May, 2015 01:34 PM आज से 200 वर्ष पूर्व इस नगर के सुप्रसिद्ध मुगलकालीन पर्यटन स्थल खु
जल ही जीवन है
Posted on 14 May, 2015 11:43 AM जल को विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। लैटिन में इसे एक्वा, अंग्रेजी में वाटर, हिन्दी में जल या पानी, संस्कृत में पानीय या सलिल या अम्बु, मराठी व गुजराती में पाणी, बंगाली में जल, कन्नड़ में नीरू, तेलुगू में नीलू तथा फारसी में आब कहते हैं।
जल क्या वास्तव में सामाजिक वस्तु है
Posted on 12 May, 2015 11:54 AM इस बात पर गौर करना हमेशा ही दिलचस्प रहा है कि समय के साथ-साथ हमारी विचार शैली कैसे बदलती रहती है। सौ वर्ष पहले किसी ने शायद कभी सोचा भी न होगा कि एक दिन हमें खरीदकर पानी पीना पड़ेगा, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आजकल हम सब स्वच्छ हवा के बारे में सोचते हैं कि यह तो प्रकृति की देन है, इसे भी क्या खरीद कर सांस लेनी होगी?
जल के अधिकार का क्रियान्वयन
Posted on 10 May, 2015 06:18 PM यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि आबादी के सभी वर्गों को पानी औ
पेयजल और स्वच्छता - मुद्दे
Posted on 10 May, 2015 06:10 PM सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल तथा स्वच्छता की सुविधा हमारे देश के लोग
नई नीति : नया प्रयास
Posted on 09 May, 2015 09:03 PM भारतवर्ष अपने भौगोलिक एवं जलवायुगत कारणों से आपदाओं की सम्भावनाओं
नेपाल में पुनर्वास की चुनौती
Posted on 08 May, 2015 03:23 PM घोर मानव पूंजी का नाश देखना हो तो हिमालय में बसे नेपाल को इन दिनों निहारा जा सकता है। बीते 25 अप्रैल को नेपाल सहित उत्तर भारत की भूमि भूकम्प से थर्रा गई। नेपाल इस एक सप्ताह में आपदा के कई अनचाहे पहलुओं से भी कहीं न कहीं वाकिफ हुआ होगा। पौने तीन करोड़ की जनसंख्या वाला नेपाल इन दिनों जिस वेदना से गुजर रहा है, उसके दर्द को भारत से बेहतर शायद ही किसी और ने समझा हो। नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में हुई तब
प्राकृतिक आपदाओं के आघात का शमन (Mitigation of Natural Disasters, trauma)
Posted on 08 May, 2015 09:48 AM 1985-94 के दौरान मौतों के लिहाज से सबसे अधिक जानलेवा प्राकृतिक आपद
आपदा प्रबन्धन में रोजगार की सम्भावनाएँ (Employment in Disaster Management)
Posted on 08 May, 2015 09:39 AM आपदाओं से किसी समाज की कार्यप्रणाली में गम्भीर व्यवधान आता है, जिससे मानव, सामग्री या पर्यावरण को व्यापक क्षति पहुँचती है, जो प्रभावित समाज की स्वयं के संसाधनों से निपटने की क्षमता से अधिक होती है। आपदाएँ आकस्मिक (भूकम्प/सुनामी) अथवा धीरे-धीरे आने वाली (जैसे सूखा) या प्राकृतिक अथवा मानवजन्य हो सकती हैं।
विकास के सम्मुख खड़ी चुनौती
Posted on 05 May, 2015 02:18 PM यह आलेख इण्टरनेशनल काँफ्रेंस ऑन स्पेशल डाटा इनफ्रास्ट्रक्चर एण्ड इट
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