पेयजल और स्वच्छता - मुद्दे

सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल तथा स्वच्छता की सुविधा हमारे देश के लोगों की तन्दुरूस्ती की कुंजी है। कार्यकुशल और आधुनिक ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए शुरू किए गए भारत निर्माण कार्यक्रम के मुख्य अवयवों में पेयजल का अहम स्थान है।सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल तथा स्वच्छता की सुविधा हमारे देश के लोगों की तन्दुरूस्ती की कुंजी है। कार्यकुशल और आधुनिक ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए शुरू किए गए भारत निर्माण कार्यक्रम के मुख्य अवयवों में पेयजल का अहम स्थान है। इसीलिए, इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के लिए पर्याप्त संसाधनों की व्यवस्था की गई हैं। पेयजल आपूर्ति हेतु वर्ष 2006-07 के दौरान आवण्टित 45 अरब 60 करोड़ रुपए की राशि में पर्याप्त रूप से वृद्धि कर वर्तमान वितवर्ष में इसे 65 अरब रुपए कर दिया गया है। अब यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है कि वे इन संसाधनों को सही रूप से इस्तेमाल कर आम आदमी की भलाई के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराएँ और बेहतर सेवा प्रदान करें।

1972-73 में जब से त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम शुरू हुआ, तब से लेकर अब तक देश भर की बस्तियों और बसाहटों में सुरक्षित जल प्रदाय के मामले में काफी प्रगति हुई है। परन्तु प्रतिवर्ष ऐसी बसाहटों की संख्या बढ़ती जा रही है, जहाँ स्रोतों की विफलता के कारण अब तक सुरक्षित पेयजल पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हो सका है। अब तक यह कार्यक्रम जिस प्रकार चलाया जा रहा है, उसमें सबसे बड़ी खामी यही रही है। अतः यह जरूरी है कि जल स्रोतों को दीर्घजीवी बनाए रखने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएँ।

जल स्रोतों का पता लगाने वाली वैज्ञानिक दक्षता के साथ-साथ पानी को रिचार्ज करने के लिए सामूहिक संस्थागत व्यवस्था की आवश्यकता है। वैज्ञानिक दक्षता और सामुदायिक कार्रवाई को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना होगा। दुर्भाग्यवश, स्रोत खोज समितियों जैसी राज्य स्तरीय संस्थाएँ आमतौर पर अक्षम साबित हुई हैं। इनको पुनर्जीवित किया जाना चाहिए और हमारे पास जो उन्नत वैज्ञानिक विशेषता उपलब्ध है, उसका इस उद्देश्य के लिए पूर्ण उपयोग किया जाना चाहिए।

पेयजल क्षेत्र के प्रबन्धन से जुड़ी हमारी एक समस्या यह है कि ग्रामीण विकास कार्यक्रमों से सम्बन्धित यह एक ऐसी गतिविधि है जिस पर प्रान्तीय स्तर पर कार्रवाई राज्य की राजधानी में होती है, जिला स्तर पर नहीं। जिन कार्यक्रम से इसको जोड़े जाने की जरूरत है, उनका संचालन भी जिला स्तर पर होता है। समय आ गया है जब आपूर्ति सम्बन्धी अन्य कार्यक्रमों के लिए भी वैसे ही कदम उठाए जाएँ।

पानी की आपूर्ति के प्रबन्धन के लिए राज्य सरकारों को जिला स्तरीय संस्थागत ढाँचों को ही अधिकार प्रदान करने के बारे में विचार करना चाहिए। यह एक संवैधानिक दायित्व भी है; क्योंकि संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के अनुसार जलापूर्ति ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों द्वारा किए जाने वाले बुनियादी कार्यों में से एक है।

दूसरा प्रमुख मुद्दा है वितीय संसाधनों और जल स्रोतों की सम्पोषणीयता का। जहाँ साधनों का अभाव हो, वहाँ पानी की रिचार्ज सम्बन्धी गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम और कृषि एवं सिंचाई विभागों के जिला आधारित योजनाओं के माध्यम से संसाधनों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए। पंचायती राज्य संस्थाओं को इन नवनिर्मित जल प्रणालियों के संचालन और पोषण के लिए आवश्यक वितीय व्यवस्था करने और प्रबन्धन के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

तीसरा मुद्दा पेयजल आपूर्ति प्रणालियों के प्रबन्धकों की तकनीकी क्षमता से सम्बन्धित है। पेयजल आपूर्ति क्षेत्र में आजकल जो अधिकारी कार्यरत हैं, उनमें से अधिकांश की पृष्ठभूमि सिविल यान्त्रिकी की है, जबकि भूजल आधारित प्रणालियों के लिए भूजल विज्ञान की पृष्ठभूमि की विशेषज्ञता की जरूरत होती है। इसलिए लोक स्वास्थ्य अभियान्त्रिकी विभागों के कर्मचारियों की क्षमता के विकास के लिए उन्हें भूजल विज्ञान का प्रशिक्षण दिलाने के लिए योजना बनाए जाने की जरूरत है, ताकि ये कर्मचारी पर्यावरण-सम्पोषणता के मुद्दों को प्रभावी ढंग से समझ कर अपना काम कर सकें।

पेयजल प्रणाली के पीछे यदि पर्यावरण का मुद्दा जुड़ा है, तो उसके आगे आता है, स्वास्थ्य। इन दिनों हमें ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जब लोक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या बीमारियों, अनेक प्रकार के संचारी रोगों, विशेषकर जलीय रोगों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। लोगों को सुरक्षित जल और उसके उपयोग के बारे में जागरूक बनाने की जरूरत है। कई बार पानी से होने वाले रोगों की घटनाएँ उन क्षेत्रों में भी होती हैं, जहाँ सुरक्षित पेयजल दिया जा रहा है।

यदि हम बहुमूल्य और दिनोंदिन क्षीण होते जा रहे देश के जल संसाधन के संरक्षण और परिरक्षण के लिए अभी से सावधान नहीं होंगे तो अगले कुछ दशकों में हमें पानी के गम्भीर संकट का सामना करना पड़ेगा। हमें अपने देश में जल संरक्षण के लिए नागरिकों और सरकार के बीच भागीदारी को मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाना होगा, आगे बढ़ना होगा। सरकारी एजेंसियों को गैर-सरकारी संगठनों और समाज के व्यापक हित के लिए दोनों के साथ मिलकर सामूहिक कार्रवाई के लिए माकूल ढाँचागत व्यवस्था करनी होगी।

(पेयजल और स्वच्छता पर वार्षिक सम्मेलन में दिए गए प्रधानमन्त्री के भाषण से)

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