एक तालाब का कायाकल्प

आज से 200 वर्ष पूर्व इस नगर के सुप्रसिद्ध मुगलकालीन पर्यटन स्थल खुसरूबाग के निकट नुरूल्ला रोड पर मन्नी लाल अग्रवाल के पूर्वजों ने एक पोखरा खुदवाया था, जिसमें आसपास के क्षेत्रों से बरसात का पानी एकत्रित होता था। तालाब से केवल जलसंरक्षण का ही लाभ नहीं होता, बल्कि यह जलप्लावन से भी बचाता है।जल ही जीवन है। जीवन जल के बिना सुरक्षित नहीं है, इसलिए जल को सुरक्षित करना उतना ही जरूरी हो जाता है, जितना जरूरी जीवन को सुरक्षित रखना है। आज बहुत तेजी से जल का दोहन हो रहा है। धीरे-धीरे जमीन के नीचे के जलस्रोत कम होते जा रहे हैं। यह मानकर चलना चाहिए यदि इसी तरह जल का दोहन होता रहा और जल संरक्षण को बढ़ावा नहीं मिला तो एक दिन पूरी दुनिया जल के अभाव में नष्ट हो जाएगी। हमारे पूर्वज जल को कितना महत्त्व देते थे, यह इसी बात से परिलक्षित होता है कि वे तालाब खुदवाते थे और तालाब खुदवाना एक पुण्य का कार्य माना जाता था। तालाब से कई लाभ होते हैं। पशु-पक्षी और जानवर तालाब के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं और अप्रत्यक्ष लाभ यह है कि तालाबों में बरसात का पानी इकट्ठा होकर जलस्रोत बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करता है। हम सब लोग कुओं, नलकूपों के माध्यम से पृथ्वी तल से पानी निकालकर अपने जीवन की रक्षा और फसलों की सिंचाई के काम में लाते हैं।

एक तालाब का कायाकल्पधीरे-धीरे जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप जल दोहन बढ़ा और तालाबों को पाटकर उस पर भवनों का निर्माण होने लगा। परिणामस्वरूप अधिक जल दोहन होने और जल संरक्षण न करने की प्रवृत्ति के कारण आज हमारे सामने जल संकट की समस्या आ खड़ी हुई है। तालाबों को पाटने की बढ़ती प्रवृत्ति, नये तालाबों का निर्माण न कराया जाना, भूजल स्तर धीरे-धीरे नीचे जाने के कारण, प्रत्येक वर्ष पेयजल की होती कमी एवं राजनेताओं/अधिकारियों द्वारा इस ओर कोई ध्यान न देने के कारण सर्वोच्च न्यायालय को यह आदेश पारित करना पड़ा कि पूर्व के सभी तालाबों की यथास्थिति बहाल की जाए। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा तालाबों के सम्बन्ध में उक्त आदेश पारित कर दिए जाने के कारण लखनऊ जिला प्रशासन पर यह गुरुतर भार आया और प्रशासन कुछ सतर्क हुआ। नगर भ्रमण के दौरान तालाबों की दशा जानने हेतु लखनऊ के पर्यटन स्थल खुसरूबाग के निकट नुरूल्ला रोड पर स्थित गुड़िया तालाब के नाम से विख्यात तालाब की दुर्दशा देखकर इसके जीर्णोद्धार का संकल्प जगा। इस तालाब के जीर्णोद्धार के लिए यह आवश्यक था कि सबसे पहले उसके इतिहास के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जाए। इसके लिए गुड़िया तालाब के निकट रहने वाले कुछ वृद्ध व्यक्तियों से मुलाकात करके जानकारी प्राप्त की गई। उन लोगों ने गुड़िया तालाब के सम्बन्ध में रोचक जानकारी दी।

आज से 200 वर्ष पूर्व इस नगर के सुप्रसिद्ध मुगलकालीन पर्यटन स्थल खुसरूबाग के निकट नुरूल्ला रोड पर मन्नी लाल अग्रवाल के पूर्वजों ने एक पोखरा खुदवाया था, जिसमें आसपास के क्षेत्रों से बरसात का पानी एकत्रित होता था। तालाब से केवल जलसंरक्षण का ही लाभ नहीं होता, बल्कि यह जलप्लावन से भी बचाता है।

सन 1858 के आसपास तालाब पर नागपंचमी का मेला लगने लगा तभी से इस तालाब का नामकरण 'गुड़िया तालाब' हो गया। इस अवसर पर युवतियाँ अपनी बनाई गुड़ियों को पीटकर इस तालाब में डालती थीं। आजादी से पूर्व मन्नी लाल अग्रवाल ने तालाब को देखरेख के लिए नगरपालिका को सौंप दिया था। जन भावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इस तालाब में पानी की सतत उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खुसरूबाग वाटर वर्क्स से एक सुरंगनुमा चैनल बनवाया। इसी चैनल द्वारा तालाब में पानी भरा जाता है।

1970 के दशक में इस तालाब के सौन्दर्यीकरण का ख्याल नगर महापालिका को आया और सौन्दर्यीकरण का कार्य प्रारम्भ भी करा दिया गया, किन्तु तालाबों के वारिसानों ने विरोध कर सौन्दर्यीकरण का कार्य रुकवा दिया। तब से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

धीरे-धीरे गुड़िया तालाब का अधिकांश भाग गन्दगी एवं मलबे से पट चुका था और चारों ओर अवैध अतिक्रमण एवं गन्दगी का बोलबाला था जिसके प्रदूषण से आसपास के लोगों का जीवन नारकीय बन गया था।

धीरे-धीरे गुड़िया तालाब का अधकांश भाग गन्दगी एवं मलबे से पट चुका था और चारों ओर अवैध अतिक्रमण एवं गन्दगी का बोलबाला था। जिसके प्रदूषण से आसपास के लोगों का जीवन नारकीय बन गया था।

स्थानीय नागरिकों के अनुसार, नागपंचमी के एक दिन पहले नगर निगम यहाँ थोड़ी-बहुत सफाई करवा देता है, परन्तु बाकी वर्ष भर इसकी दुर्दशा पर तरस खाने वाला कोई नहीं होता। नागपंचमी का मेला समाप्त हो जाने उपरान्त पानी में सूअर लोटते रहते हैं जिससे जिना दूभर हो जाता है। कूड़ा-करकट और टायर-ट्यूब के दुकानों द्वारा कटे-फटे टायर-ट्यूब तालाब में फेंके जाने से उत्पन्न प्रदूषण से न केवल नागरिकों का जीना मुश्किल हो गया है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

गुड़िया तालाब के सारे पहलुओं पर चिन्तन करने के बाद जनभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए और तालाब के वारिसों व स्थानीय बाशिन्दों एवं जनप्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करने के उपरान्त 'गुड़िया तालाब' का जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण कराए जाने का निर्णय लिया गया।

इस तालाब के जीर्णोद्धार का दायित्व नगर निगम इलाहाबाद के अभियन्त्रण विभाग को सौंपा गया। अभियन्त्रण विभाग ने कड़ी मेहनत कर इस पुनीत कार्य को 3 माह की अल्प अवधि में पूर्ण कर दिया। यहाँ पानी का टैंक, रेलिंग, मुख्य द्वार, शेड, बेंच तथा लॉन का निर्माण कराया गया। पानी का टैंक 2,140 वर्ग मीटर में स्थित है। टैंक के दोनों ओर 670 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में घासयुक्त लॉन विकसित की गई, जिसमें अब साइकिस, पुत्रगीवा, बाटलपाम, कचनार, सप्तपर्णी, गुलाचीन आदि वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करने के साथ-साथ मनमोहन छटा भी बिखेर रहे हैं। तालाब का प्रवेश द्वार आकर्षण का केन्द्र है। तालाब के चारों तरफ आकर्षण रेलिंगों पर लगाए गए 78 प्रकाश स्तम्भ पूरे परिसर को अपने प्रकाश के आगोश में समेट कर मनोहारी बना रहे हैं।

पर्यटकों और आगन्तुकों की सुविधा को ध्यान में रखकर यहाँ विश्राम हेतु 2 शेड तथा बेंच की व्यवस्था की गई है। यह तालाब वर्तमान में आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

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