दिल्ली

Term Path Alias

/regions/delhi

बद से बदतर होती मनरेगा
Posted on 16 Jan, 2013 03:23 PM देश की बहुप्रतिक्षित योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानि ‘मनरेगा’ बद से बदतर होती जा रही है। ग्राम प्रधान से लेकर अधिकारी तक सभी लूट-खसोट में लगे हैं। मनरेगा के तहत जिनको जॉबकार्ड की जरूरत है उनको न दे करके अपने सगे-संबंधियों को जॉबकार्ड बांटा जा रहा है तथा तालाब केवल कागजों पर ही खोदे जा रहे हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 30 नए काम जोड़कर मनरेगा को मनरेगा-2 क
अभाव एवं बर्बादी से बनती पानी की राजनीति
Posted on 16 Jan, 2013 10:32 AM धरती पर सभी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है मगर किसी के भी लालच के लिए काफी नहीं।– महात्मा गांधी
संकट में जैवविविधता
Posted on 08 Jan, 2013 03:47 PM भारत में जिन पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है उनमें उपरोक
जल चालीसा
Posted on 07 Jan, 2013 04:17 PM जल मंदिर, जल देवता, जल पूजा जल ध्यान।
जीवन का पर्याय जल, सभी सुखों की खान।।
जल की महिमा क्या कहें, जाने सकल जहान।
बूंद-बूंद बहुमूल्य है, दें पूरा सम्मान।।
अनियोजित शहरीकरण के खतरे
Posted on 01 Jan, 2013 11:23 AM

हमारे देश में संस्कृति, मानवता और बसावट का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। सदियों से नदियों की अविरल धारा और उ

Global Urbanization in india
खेती से अनजान लोग
Posted on 31 Dec, 2012 12:30 PM फसलों के साथ-साथ फसल आधारित कुटीर उद्योग भी हमारे देश में प्रचुर
जलनीति का मकड़जाल
Posted on 29 Dec, 2012 11:38 AM राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद ने अंततः ‘राष्ट्रीय जल नीति-2012’ को स्वीकार कर लिया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अध्यक्षता में हुई राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद की छठी बैठक में राष्ट्रीय जल नीति का रास्ता साफ हो गया। हालांकि भारत सरकार का तर्क यह है कि यह जल नीति पानी की समस्याओं से निपटने के लिए सरकार के निचले स्तरों पर जरूरी अधिकार देने की पक्षधर है। पर दरअसल सरकारों की मंशा पानी जैसे बहुमूल्य संसाधन को कंपनियों के हाथ में सौंपने की है। आम आदमी पानी जैसी मूलभूत जरूरत के लिए भी तरस जाएगा, बता रहे हैं डॉ. राजेश कपूर।

प्रस्ताव की धारा 7.4 में जल वितरण के लिए शुल्क एकत्रित करने, उसका एक भाग शुल्क के रूप में रखने आदि के अलावा उन्हें वैधानिक अधिकार प्रदान करने की भी सिफारिश की गयी है। ऐसा होने पर तो पानी के प्रयोग को लेकर एक भी गलती होने पर कानूनी कार्यवाही भुगतनी पड़ेगी। ये सारे कानून आज लागू नहीं हैं तो भी पानी के लिए कितना मारा-मारी होती है। ऐसे कठोर नियंत्रण होने पर क्या होगा? जो निर्धन पानी नहीं ख़रीद सकेंगे उनका क्या होगा? किसान खेती कैसे करेंगे? नदियों के जल पर भी ठेका लेने वाली कंपनी के पूर्ण अधिकार का प्रावधान है।

भारत सरकार के विचार की दिशा, कार्य और चरित्र को समझने के लिए “राष्ट्रीय जल नीति-2012” एक प्रामाणिक दस्तावेज़ है। इस दस्तावेज़ से स्पष्ट रूप से समझ आ जाता है कि सरकार देश के नहीं, केवल मेगा कंपनियों और विदेशी निगमों के हित में कार्य कर रही है। देश की संपदा की असीमित लूट बड़ी क्रूरता से चल रही है। इस नीति के लागू होने के बाद आम आदमी पानी जैसी मूलभूत ज़रूरत के लिए तरस जाएगा। खेती तो क्या पीने को पानी दुर्लभ हो जाएगा।

29 फरवरी तक इस नीति पर सुझाव मांगे गए थे। शायद ही किसी को इसके बारे में पता चला हो। उद्देश्य भी यही रहा होगा कि पता न चले और औपचारिकता पूरी हो जाए। अब जल आयोग इसे लागू करने को स्वतंत्र है और शायद लागू कर भी चुका है। इस नीति के लागू होने से पैदा भयावह स्थिति का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। विश्व में जिन देशों में जल के निजीकरण की यह नीति लागू हुई है, उसके कई उदहारण उपलब्ध हैं।
जल प्रबंधन में राज्यों के अधिकारों में दखल नहीं : प्रधानमंत्री
Posted on 29 Dec, 2012 10:34 AM भूजल स्तर में आने वाली गिरावट के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि
National water policy
कल्याण का अंत
Posted on 20 Dec, 2012 02:58 PM कोचाई मंडल के जीवन में पानी ही पानी था। वह अपना समय ज़मीन पर कम और पानी पर ज़्यादा गुज़ारता था। वह अपने को पानी का पहरेदार कहता था और लोग उसे पानी का मेंढक कहते थे। पानी के अंदर या पानी के ऊपर कोई कारोबार चलाना हो तो कोचाई से उपयुक्त व्यक्ति दूसरा कोई नहीं हो सकता था। नदी में, तालाब में, समुद्र में कोई दुर्घटना हो जाए, कोचाई का झट बुलावा आ जाता। कहते हैं जो काम सेना के गोताखोरों से भी संभव नहीं हो पाता, उसे कोचाई कर डालता था। पता नहीं किस अर्जुन ने या किस राम ने अग्निबाण चलाया कि सौ वर्षों से भी ज्यादा उम्र वाला कल्याण तालाब सूख गया। इसके लगातार घट रहे जल स्तर को देखकर सारे बूढ़े-बुजुर्ग हैरान थे। बचपन से लेकर आज तक ऐसा उन्होंने कभी नहीं देखा था कि इस तालाब का अक्षय कोष तिल भर के लिए भी घट जाए। अगम, रहस्यमय, अनेक क्रियाओं की रंगशाला और जीवंतता, गतिशीलता व शीतलता का अमृत-कुंड आज जैसे किसी श्मशान में परिवर्तित हो गया था। कल्याण सूख गया, इससे शायद बहुतों का जीवन अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुआ होगा लेकिन प्रत्यक्ष रूप से इससे जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, उसका नाम था कोचाई मंडल। कल्याण क्या सूखा जैसा उसके जीवन के सारे स्रोत ही सूख गए। कल्याण उसकी संजीवनी था, कर्म-स्थल था, ऊर्जा-स्रोत था और कुल जमा पूँजी था।
नदीः एक लम्बी कविता
Posted on 20 Dec, 2012 12:10 PM आंखों की नमी
बचा सको तो बचाओ
पर्वत पुत्र

यह समय की धार
लोहे को जलाकर
कुदाली बनाये या तलवार
तय करना है यही

जैसे
कांच की तरह
चट्टानों से बहती धार

नदी बने या भाल
मुनाफा बने या
संस्कृति का हार

इस नदी का काम बहना है
वह बह रही है
उसके जंगल, उसके लोग

भाषा में उसकी ही
कह रहे हैं
×