दिल्ली

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पर्यावरण की संस्कृति
Posted on 14 Nov, 2014 01:25 PM प्रकृति के गर्भ से उत्पन्न मानव उसकी सर्वोत्कृष्ट कृति है। किंतु प्रकृति का यह विशिष्ट जीव आज एक विचित्र-सी स्थिति में खड़ा है। विकास की सीमाओं को लांघता हुआ वह कहां से कहां पहुंच गया। विकास की यह गति प्रारंभिक काल में धीमी थी, किंतु आज़ आश्चर्यचकित कर देने वाली इसकी गति अब बेकाबू जा रही है। किसी भी देश या समाज की सभ्यता-संस्कृति उसकी प्रतिष्ठा का प्रतीक है। इसी सभ्यता-संस्कृति का एक आवश्यक अंग होता है पर्यावरण। पर्यावरण का कुछ अंश हमें प्रकृति से हस्तगत होता है और कुछ हम स्वयं निर्माण करते हैं।

Environment
बढ़ता तापमान घटती पैदावार
Posted on 12 Nov, 2014 03:57 PM अगर देखा जाए तो विश्व की करीब एक चौथाई जमीन बंजर हो चुकी है और यही
बदलती जलवायु का खेती पर प्रभाव
Posted on 12 Nov, 2014 12:31 PM

कृषि की उत्पादकता पूरी तरह से मौसम,जलवायु और पानी की उपलब्धता पर निर्भर होती है; इनमें से किसी

कैसे बचाएं कृषि को ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से
Posted on 11 Nov, 2014 11:22 AM विश्व बैंक द्वारा जलवायु परिवर्तन के संबंध में दी गई रिपोर्ट के अनु
Agriculture
जलवायु परिवर्तन से निबटने को हम हैं तैयार
Posted on 10 Nov, 2014 02:01 PM जलवायु परिवर्तन का असर भारत ही नहीं पूरे विश्व में पड़ रहा है। स्व
Agriculture
झींगा पालन की आधुनिक तकनीक
Posted on 10 Nov, 2014 10:49 AM
भारत में अभी तक झींगा उत्पादन का कार्य प्राकृतिक रूप से समुद्र के खारे पानी से किया जाता था, लेकिन कृषि में हुए तकनीकी विकास और अनुसंधान के चलते झींगा का सफल उत्पादन मीठे पानी में भी सम्भव हो चला है। देश में लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर मीठे जल क्षेत्र के रूप में जलाशय, पोखर, तालाब आदि उपलब्ध हैं। इन जल क्षेत्रों का उपयोग झींगा पालन के लिए बखूबी किया जा सकता
झींगा मछली की खेती
चुनाव से पहले दिल्ली की जल कुंडली भी बांच लो
Posted on 08 Nov, 2014 01:48 PM

दिल्ली की पिछली 49 दिन वाली सरकार उम्मीदों के जिस रथ पर सवार होकर आई थी उसमें सबसे ज्यादा प्यासा अश्व ‘‘जल’’ का ही है- हर घर को हर दिन सात सौ लीटर पानी, वह भी मुफ्त। उसकी घोषणा भी हो गई थी लेकिन उसकी हकीकत क्या रही? कहने की जरूरत नहीं है। दिल्ली एक बार फिर चुनाव के लिए तैयार है और जाहिर है कि सभी राजनीतिक दल बिजली, पानी के वायदे हवा में उछालेंगे। जरा उन उम्मीदों पर एतबार करने से पहले यह भी जानना जरूरी है कि इस महानगर में पानी की उपलब्धता क्या सभी के कंठ तर करने में सक्षम है भी कि नहीं।

दिल्ली में तेजी से बढ़ती आबदी और यहां विकास की जरूरतों, महानगर में अपने पानी की अनुपलब्धता को देखें तो साफ हो जाता है कि पानी के मुफ्त वितरण का यह तरीका ना तो व्यावहारिक है, ना ही नीतिगत सही और ना ही नैतिक। यह विडंबना ही है कि अब हर राज्य सरकार सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए कुछ-ना-कुछ मुफ्त बांटने के शिगूफे छोड़ती है जबकि बिजली-पानी को बांटने या इसके कर्ज माफ करने के प्रयोग अभी तक सभी राज्यों में असफल ही रहे हैं।

<i>दिल्ली जलबोर्ड</i>
गंगा योजना बनाम विकास नीति
Posted on 08 Nov, 2014 11:33 AM महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान में आती रहती है कि संदेह के अवसरों पर अंत:करण की आवाज को प्रमाण मानना चाहिए। ठीक बात है। लेकिन आत्मबोध, ज्ञन-बोध दोनों के बीच संदेह झूल रहा है। यह संदेह संस्कृति रूपी चित्त की खेती को बर्बाद करने का जाल बिछा रहा है। विश्वास का अंत कर रहा है। और संशय का हुदहुद सभी को ढहाए दे रहा है।

भारतीय जन मानस की अवधारणा की अर्थ ही समझ से परे हो गया है और लोक में आलोक न पाकर अंधकार उमड़ रहा है। मन का संदेह कह रहा है कि भारतीय जन को जीवन देने वाली गंगा नदी का होगा क्या?
Ganga Nadi
गंगा सफाई पर सख्त हो सरकार
Posted on 08 Nov, 2014 09:14 AM

शीर्ष अदालत गंगा नदी की सफाई के प्रति लापरवाही बरते जाने पर गंभीर है। अपनी चिंता व्यक्त करते हुए अदालत ने सफाई की कार्ययोजना के बाबत केंद्र सरकार को हाल ही में कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही देश की जीवनरेखा मानी जाने वाली गंगा नदी के उद्धार के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह गंगा नदी को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रव

Polluted Ganga
तालाब पुनरोद्धार अभियान का रोडमैप
Posted on 06 Nov, 2014 03:33 PM


इन दिनों पूरे देश में नदियों और तालाबों के पुनरोद्धार की चर्चा है। चर्चा के असर से उनके पुनरोद्धार के अभियान शुरू हो रहे हैं। वे, धीरे धीरे देश के सभी इलाकों में पहुंच रहे हैं। अभियानों के विस्तार के साथ-साथ, आने वाले दिनों में इस काम से राज्य सरकारें, जन प्रतिनिधि, नगरीय निकाय, सरकारी विभाग, अकादमिक संस्थान, कारपोरेट हाउस, स्वयं सेवी संस्थाएं, कंपनियां, ठेकेदार एवं नागरिक जुड़ेंगे। सुझावों, परिस्थितियों तथा विचारधाराओं की विविधता के कारण, देश को, तालाबों पुनरोद्धार के अनेक मॉडल देखने को मिलेंगे। यह विविधता लाजिमी भी है।

कुछ मॉडल अधूरी सोच और सीमित लक्ष्य पर आधारित होंगे तो कुछ तालाब की अस्मिता की समग्र बहाली को अभियान का अंग बनाएंगे। इसी कारण कुछ मॉडल तात्कालिक तो कुछ दीर्घकालिक लाभ देने वाले होंगे। अभियान में कहीं-कहीं समाज भागीदारी करेगा तो कहीं-कहीं वह केवल मूक दर्शक की भूमिका निबाहेगा।

Talab
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