कृष्णदत्त पालीवाल

कृष्णदत्त पालीवाल
गंगा योजना बनाम विकास नीति
Posted on 08 Nov, 2014 11:33 AM
महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान में आती रहती है कि संदेह के अवसरों पर अंत:करण की आवाज को प्रमाण मानना चाहिए। ठीक बात है। लेकिन आत्मबोध, ज्ञन-बोध दोनों के बीच संदेह झूल रहा है। यह संदेह संस्कृति रूपी चित्त की खेती को बर्बाद करने का जाल बिछा रहा है। विश्वास का अंत कर रहा है। और संशय का हुदहुद सभी को ढहाए दे रहा है।

भारतीय जन मानस की अवधारणा की अर्थ ही समझ से परे हो गया है और लोक में आलोक न पाकर अंधकार उमड़ रहा है। मन का संदेह कह रहा है कि भारतीय जन को जीवन देने वाली गंगा नदी का होगा क्या?
Ganga Nadi
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