गंगा सफाई पर सख्त हो सरकार

Polluted Ganga
Polluted Ganga

शीर्ष अदालत गंगा नदी की सफाई के प्रति लापरवाही बरते जाने पर गंभीर है। अपनी चिंता व्यक्त करते हुए अदालत ने सफाई की कार्ययोजना के बाबत केंद्र सरकार को हाल ही में कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही देश की जीवनरेखा मानी जाने वाली गंगा नदी के उद्धार के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह गंगा नदी को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही उनकी बिजली-पानी की आपूर्ति बंद करे।

दरअसल, लंबे समय से सरकारें गंगा को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों के प्रति नरमी का भाव बनाए हुए हैं। ऐसे में शीर्ष अदालत की फटकार उचित ही है। याद रहे कि नरेंद्र मोदी ने गंगा नदी की सफाई को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था और सत्ता में आने के बाद इसके लिए एक अलग मंत्रालय का गठन भी किया। उन्होंने वर्ष 2014-15 के आम बजट में गंगा नदी के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने की घोषणा भी की। गंगा को परिवहन का माध्यम बनाने के लिए नए बजट में 4200 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया। नमामि गंगे विशेष परियोजना के लिए 2037 करोड़ रु. का आवंटन अलग हुआ। इन सबके बावजूद भी गंगा की सफाई के प्रति अभी तक कोई कदम नहीं उठाया जाना निश्चित रूप से चिंता का विषय है।

ध्यान रहे कि गंगा मात्र एक नदी ही नहीं अपितु भारतीय जनमानस की आस्था, आध्यात्मिकता की प्रतीक भी है। आंकड़ों में बात करें तो गंगा की तुलना में दुनिया की कोई भी नदी नहीं ठहर सकती। खास तौर पर उसके द्वारा पोषित आबादी के मुकाबले में। विचारणीय है कि भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लंबी नदी, लगभग 50 करोड़ की आबादी का पोषण करने वाली पवित्र गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदी कैसे बन गई?

.एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गंगा 75 प्रतिशत सीवरेज तथा 25 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण से ग्रस्त है। इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार तत्व भी गंगा के मरते जाने से बेखबर नहीं हैं। उनके कारनामों को जानकर भी अनदेखा करने वाली शासन प्रणाली ही गंगा की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। इससे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का जो नुकसान हुआ है, उसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी।

यह सही है कि गंगा की सफाई के प्रयास हुए, परंतु ये सभी पूर्णतया असफल सिद्ध हुए हैं। अब देखना यह होगा कि मोदी सरकार गंगा की निर्मलता के प्रति कितनी संजीदा होती है। वेदों में कहा गया है कि गंगा के स्मरण और दर्शन मात्र से समस्त पाप धुल जाते हैं। उसके जल का आचमन करने और उसमें स्नान करना हजारों तीर्थ करने के बराबर है। लेकिन, आज ये स्थिति है कि हरिद्वार के बाद से गंगा की गुणवत्ता प्रभावित होने लगती है और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने के बाद तो गंगाजल आचमन योग्य भी नहीं रह जाता।

भगीरथ के पुरखों को तारने से शुरू इसका ये अविरल सफर आज तक तो अनवरत जारी है। और अगर हम चाहेंगे तो हमेशा जारी रहेगा। लेकिन, इसके लिए एक बार फिर गंगा को किसी भगीरथ की आवश्यकता है। फर्क सिर्फ इतना है कि गंगा आज खुद को तारे जाने के लिए टकटकी लगाए मरणासन्न सी हमारी तरफ देख रही है। इसलिए हम सब को अपने अंदर सोए हुए भगीरथ को जगाना होगा, अन्यथा सहस्रों वर्षों का इतिहास संजोने वाली गंगा खुद इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी।

ईमेल :- sunil.tiwari.ddun@gmail.com
 

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