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विदिशा के जल सेवकों को विष्णु प्रभाकर समाज सेवा सम्मान
Posted on 18 Jun, 2015 04:47 PM तारिख : 20 जून 2015
समय : 05 - 08 बजे तक
स्थान : गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभागार, निकट अम्बेडकर स्टेडियम जवाहर लाल नेहरू रोड, नई दिल्ली


बाजार में पानी बेचने के बढ़ते निर्मम व्यापार के दौर में प्यासे को मुफ्त में पानी पिलाने की परम्परा और सामाजिक उपक्रम अब एकदम खत्म सा होता जा रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश के विदिशा रेलवे स्टेशन पर वहाँ के स्थानीय निवासी बाजार के बहाव में नहीं बहकर लोगों की मदद में जुटे हुए हैं। यहाँ सार्वजनिक भोजनालय समिति के प्रयास से पिछले बत्तीस सालों में सैकड़ों जल सेवक तैयार हुए हैं, जो खासकर गर्मी के दिनों में रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के लिये मुफ्त जल सेवा करते हैं वे ज्यादातर रेल डिब्बों की खिड़कियों के पास जाकर यात्रियों को पीने का पानी मुहैया कराते हैं। विदिशा के इन जल सेवकों के कार्य को अब अनूठा बताकर उनकी सराहना करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

इन जल सेवकों को तैयार करने वाली सार्वजनिक भोजनालय समिति (विदिशा) को गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान और अनिल संदेश (राष्ट्रीय मासिक पत्रिका) की ओर से विष्णु प्रभाकर के 104वें जन्म दिवस पर विष्णु प्रभाकर समाज सेवा सम्मान से सम्मानित करने का फैसला किया है।
पर्यावरण के लिये खतरा है बोतलबन्द पानी
Posted on 18 Jun, 2015 04:08 PM मसला था घर में नलों में आने वाले पानी की कीमतें बढ़ाने के फैसले के विरोध का, बड़े-बड़े नेता एकत्र हुए थे व उनका कहना था कि स्थानीय निकाय का यह कदम गरीब की कमर तोड़ देगा। उन सभी नेताओं के सामने प्लास्टिक की बोतलों में पानी रखा हुआ था, जिसके एक लीटर की कीमत होती है, कम-से-कम पन्द्रह रुपए।
bottled water
पर्यावरण बचाने हेतु हमें भी कुछ करना होगा
Posted on 18 Jun, 2015 01:21 PM आजकल पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन का सवाल बहस का मुद्दा बना हुआ है कारण इसके चलते आज समूची दुनिया का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरणविद् इस बारे में समय-समय पर चेता रहे हैं और वैज्ञानिकों के शोध-अध्ययनों ने इस तथ्य को साबित कर दिया है। सच यह है कि जीवनदायिनी प्रकृति और उसके द्वारा प्रदत्त प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा उपयोग और भौतिक सुख सुविधाओं की चाहत की अन्धी दौड़ के चलते आज न केवल प्रदूषण
global warming
पर्यावरण और महिलाएँ
Posted on 18 Jun, 2015 11:46 AM इन सब आन्दोलनों के दबाव के कारण 1988 में जो राष्ट्रीय वन नीति बनी उ
हमारी सभ्यता संस्कृति और नदियाँ
Posted on 16 Jun, 2015 03:21 PM

नदियों के बिना हम भारतीय संस्कृति की कल्पना ही नहीं कर सकते। जन्म से मृत्यु तक नदियों का हमार

नाजायज कब्जा-बनाम वन अधिकार
Posted on 16 Jun, 2015 12:33 PM

हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह कहते हैं कि सच तो यह है कि प्रदेश सरकार ने उच्च न्याया

Forest
मानसून का बदलता मिजाज
Posted on 16 Jun, 2015 09:03 AM

देश में इस साल सूखा पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। मौसम वैज्ञानिकों के नए पूर्वानुमानों के अनुसा

पर्यावरण और विकास में सृजनात्मक सम्बन्ध जरूरी
Posted on 15 Jun, 2015 04:07 PM सन्तुलित पर्यावरण के लिये स्वच्छ जल, शुद्ध हवा और खेती के लिये ज़म
पेयजल का घटता स्तर, बढ़ता दबाव
Posted on 15 Jun, 2015 03:38 PM

आज हम बिना सोचे-समझे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते जा रहे हैं और आवश्यकता से अधिक उनका इस्तेम

गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पेयजल व्यवस्था
Posted on 15 Jun, 2015 02:10 PM

विकास के मुद्दे पर भारत ही नहीं पूरी दुनिया में गुजरात माॅडल की चर्चा हो रही है। चूँकि विपरी

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