छत्तीसगढ़

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अवस्थापनात्मक सुविधाएँ - परिवहन, विद्युत एवं शासकीय सुविधाएँ
Posted on 11 Sep, 2018 02:32 PM

देश के आर्थिक विकास हेतु कृषि तथा उद्योग के समरूप परिवहन साधनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। कृषि तथा उद्योग के विकास में परिवहन साधन सहायक सिद्ध होते हैं। अतः कहा जाता है कि यदि कृषि और उद्योग राष्ट्ररूपी प्राणी की काया है तो परिवहन एवं संचार उसकी नसें हैं।3 (गुप्ता एवं स्वामी, 1998, 313) परिवहन साधनों का पर्याप्त विकास देश के आर्थिक, सामाजि

छत्तीसगढ़ परिवहन क्षेत्र
महिलाओं ने विकसित किया चाय बागान
Posted on 07 Sep, 2018 03:49 PM
छत्तीसगढ़ में चाय बागान से पत्तियाँ चुनती महिलाएँ (फोटो साभार - दैनिक जागरण)रायपुर / छत्तीसगढ़ स्थित जशपुर का सारूडीह गाँव चाय की खेती के कारण चर्चा में है। गाँव के 20 एकड़ कृषि क्षेत्र को चाय बागान के रूप में विकसित करने का श्रेय वहाँ की महिलाओं को जाता है। महत्त्वपूर्ण यह है कि महिलाओं द्वारा बनाए गए स्
छत्तीसगढ़ में चाय बागान से पत्तियाँ चुनती महिलाएँ
मधेश्वर नेचरपार्क द्वारा ग्राम पंचायत भंडरी का विकास
Posted on 26 Jul, 2018 02:30 PM


मयाली गाँव में मधेश्वर में स्थित वनों का संरक्षण ग्रामीणों द्वारा किया जाता है तथा नए वृक्षों का रोपण वैज्ञानिक पद्धति से किया गया है जिससे वहाँ के वन अब व्यवस्थित नजर आते हैं। सभी ग्रामीण पर्यावरण के महत्त्व को समझते हुए अपने घर में कम-से-कम 5 वृक्ष अवश्य लगाते हैं जिसमें मुनगा, पपीता, नीबू, आँवला तथा आम हैं जिससे भंडरी ग्राम पंचायत में आज चारों ओर हरियाली-ही-हरियाली है।

मधेश्वर नेचरपार्क
नदी किनारे पर्यावरण बचाने का महाभियान है अरपा अर्पण
Posted on 19 Jul, 2018 02:12 PM

गिरते भूजल के बीच जीवनदायिनी अरपा नदी के आँचल को हरा-भरा करने बिलासपुर में श्याम मोहन दुबे व प्रकाश पाठक जुटे हैं। उन्होंने दो वर्ष पूर्व अरपा नदी के किनारे पौधरोपण करने की योजना बनाई। दोनों युवक वन विभाग गये तो अफसरों ने हाथ खड़े कर दिये। तब दोनों नर्सरी से खुद पौधे खरीदकर लाये और अभियान शुरू किया। उनके इस जुनून का अब असर दिखाई देने लगा है। अाज अरपा नदी के किनारे एक हजार से अधिक पौधे लहलहा
अरपा अर्पण अभियान
शौच के पानी को बना रहे हैं उपयोग लायक
Posted on 17 Nov, 2015 03:54 PM

विश्व शौचालय दिवस, 19 नवम्बर 2015 पर विशेष

 

बस्तर के एक गाँव में चल रहे इस विद्यालय ने करीब 15 हजार की लागत से बस्तर का पहला ‘वेस्ट वाटर रिसाइकल प्लांट’ यहाँ बनाया गया है। इस प्लांट में उपयोग हो चुके पानी को फिर से भूमि के अन्दर इस्तेमाल करने लायक बनाया जाता है। इससे आश्रम में कभी पानी की कमी नहीं होती। प्लांट में शुद्ध हुए पानी को फिर दैनिक कर्मों में इस्तेमाल किया जाता है।

बस्तर के अत्यधिक नक्सल प्रभावित इलाकों से गुजरते वक्त क्या ये कल्पना सम्भव है कि यहाँ कुछ सुखद, दिल को आनन्द देने वाला और सन्तोषजनक भी मिल सकता है। इसका जवाब है हाँ। बस्तर में भी ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जो हमें सुकून दे सकता है।

फिलवक्त तो हम बात कर रहे हैं लंजोडा नामक गाँव में बनाए गए “वेस्ट वाटर रिसाइकल प्लांट” की, जो शौचालय में इस्तेमाल होने वाले पानी को न केवल दोबारा उपयोग के लायक बना रहा है, बल्कि कुछ लोग इसका लाभ भी उठा रहे हैं।

जब कांकेर और कोंडागाँव जैसे आदिवासी जिलों में पानी का संकट गहराने लगता है तो इन दोनों जिलों के मध्य स्थित लंजोड़ा गाँव का सदा हराभरा रहने वाले एक कोना सहज ही राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर से गुजरने वाले यात्रियों का ध्यान खींच लेता है।

water treatment plant
मनरेगा कार्यक्रम की सफलता
Posted on 15 Feb, 2015 11:22 PM मनरेगा का मुख्य लक्ष्य है देश के ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों का
हरित-प्रशस्ति गान
Posted on 13 Feb, 2015 03:08 PM ‘ग्रीन कमाण्डो’ के नाम से विख्यात वीरेन्द्र सिंह के मार्गदर्शन में
सरायपाली ग्राम पंचायत और ग्राम सभा
Posted on 11 Feb, 2015 12:42 AM सरायपाली ग्राम पंचायत अपने सराहनीय कार्य के लिए वर्ष 2001 में रायग
तालाबों के कब्रिस्तान पर बनी राजधानी रायपुर
Posted on 20 Sep, 2014 12:00 PM छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में। लेकिन अलग राज्य बनते ही ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी। कोई 181 तालाबों की मौजूदगी वाले शहर में अब बमुश्किल एक दर्जन तालाब बचे हैं और वे भी हांफ रहे हैं अपना अस्तित्व बचाने के लिए। वैसे यहां भी सुप्रीम कोर्ट आदेश दे चुकी है कि तालाबों को उनका समृद्ध अतीत लौटाया जाए, लेकिन लगता है कि वे गुमनामी की उन गलियों में खो चुके हैं जहां से लौटना नामुमकिन होता है। जुलाई के सावन में भी रायपुर में तापमान 40 डिग्री की तरफ लपक रहा है। एक आध बार पानी बरसा तो शहर लबालब हो गया, लेकिन अगली सुबह घरों के नल रीते ही रहे। पानी की किल्लत अब यहां पूरे साल ही रहती है। यहां के रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रशासन ने परिसर और उससे सटे डीडी नगर, आमानाक, डडनिया में तेजी से नीचे जा रहे जल स्तर को बचाने के लिए बीस लाख रुपए की लागत से एक तालाब बनाने का फैसला ले लिया है।

चलो यह अच्छा है कि ज्ञान-विज्ञान, तकनीक से सज्जित आज के समाज को नए तालाब खोदने की अनिवार्यता याद तो आई, लेकिन यह याद नहीं आ रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में। लेकिन अलग राज्य क्या बना, शहर को बहुत से दफ्तर, घर, सड़क की जरूरत हुई और देखते-ही-देखते ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी।
Pond of Raipur
पहले मारा पीलिया ने, अब मारा डॉक्टरों की फीस ने
Posted on 12 Jul, 2014 03:42 PM पीलिया ने अब तक 33 लोगों को लील लिया है। सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर दोषारोपण में व्यस्त हैं, जबकि जनता प्राइवेट अस्पतालों की लूट का शिकार हो रही है
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